दो खामोश आंखें -32

योगेन्द्र सिंह छोंकर  गणेश जी का दूध पीना सागर जल मीठा होना रोटी प्याज़ वाली डायन कटे बैंगन में ॐ […]

दो खामोश आंखें पीठ में सुराख किये जाती हैं

योगेन्द्र सिंह छोंकर दो खामोश ऑंखें मेरी पीठ में सुराख़ किए  जाती हैं! माना इश्क है खुदा क्यों मुझ काफ़िर को पाक […]

दो खामोश आंखें – 31

योगेन्द्र सिंह छोंकर मंदिर हो या कोई मजार किसी नदी का पुल हो, कटोरा किसी भिखारी  का या शाहजहाँ की कब्र एक […]

दो खामोश आंखें – 30

योगेन्द्र सिंह छोंकर ज़बर के जूतों तले मसली जाने के बाद ज़माने के साथ साथ खुद अपनी आँखों से भी […]

दो खामोश आंखें – 29

योगेन्द्र सिंह छोंकर चंद गहने रुपये रंगीन टीवी या किसी दुपहिया की खातिर जल  भी जाती हैं दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 28

योगेन्द्र सिंह छोंकर कमनीय काया और करुण कोमल  कंठ  का मार्ग में  प्रदर्शन करने वाली कंजरी की ओर सिक्का उछालती हुई उसकी […]

दो खामोश आंखें – 27

योगेन्द्र सिंह छोंकर अपने बच्चे का निवाला कोयल कुल के कंठ में डालने वाले कौए को सदा ही दुत्कारती हैं दो […]

दो खामोश आंखें – 26

योगेन्द्र सिंह छोंकर ऊपर से एक वचन नीचे से बहु वचन बताती हैं पैजामे को पर देख लहंगे को पशोपेश […]

दो खामोश आंखें – 25

योगेन्द्र सिंह छोंकर आधी रात के वक़्त बन संवर कर रेड लाइट एरिया में गाड़ियों की हेड लाइटों से चुंधियाती […]

दो ख़ामोश आंखें -24

योगेन्द्र सिंह छोंकर महबूबा की, मजलूम की, कवि की, किसान की, इंसान की भगवान की सबकी हैं दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 23

योगेन्द्र सिंह छोंकर मेरी ही बदकिस्मती थी जो न हो सका उनका मुझे अपना बनाना ही तो चाहती थी दो […]

दो खामोश आंखें – 22

योगेन्द्र सिंह छोंकर जाकर मुझ से दूर न छीन पायीं मेरा सुकूं शायद इसलिए  मुझसे  दूर हो गयीं दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 21

योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती […]

दो खामोश आंखें – 20

योगेन्द्र सिंह छोंकर जी जाऊं पी विसमता विष रस समता बरसाऊँ रहे सदा से रोते जो उनको जाय हसाऊँ जो […]

दो खामोश आंखें – 19

योगेन्द्र सिंह छोंकर उमड़ते मेघ सावनी दमकती चपल दामिनी मंद शीतल बयार बारिश की फुहार कुदरत का देख रूमानी मिजाज़ […]

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