दो खामोश आंखें – 19

योगेन्द्र सिंह छोंकर
उमड़ते मेघ सावनी
दमकती चपल दामिनी
मंद शीतल बयार
बारिश की फुहार
कुदरत का देख
रूमानी मिजाज़
क्यों नहीं
मुस्कुराती
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 18

योगेन्द्र  सिंह छोंकर देख बर्तन किसी गरीब के चढ़ते सट्टे की बलि आखिर क्यों नहीं सुलगती दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 20

योगेन्द्र सिंह छोंकर जी जाऊं पी विसमता विष रस समता बरसाऊँ रहे सदा से रोते जो उनको जाय हसाऊँ जो […]

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