दो खामोश आंखें – 8

योगेन्द्र सिंह छोंकर
पीने को दो घूँट
जो रोपी अंजुली
उसके गोल घड़े के सामने
पाया
घड़ा खाली है
हर प्यास बुझाने को
काफी हैं
उसकी
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें 7

योगेन्द्र सिंह छोंकर किसी के रूप से होकर अँधा जो मैं भटका जहाँ में जानता हूँ पीठ पर चुभती रहेंगी […]

दो खामोश आंखें – 9

योगेन्द्र सिंह छोंकर जो बेखुदी न दे पाया तेरा मयखाना साकी दे गईं दो खामोश ऑंखें

One thought on “दो खामोश आंखें – 8

  1. "पीने को दो घूँट
    जो रोपी अंजुली
    उसके गोल घड़े के सामने
    पाया
    घड़ा खाली है
    हर प्यास बुझाने को
    काफी हैं
    उसकी
    दो खामोश ऑंखें"
    बहुत सुंदर – शुभकामनाएं

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