पूर्वजन्म के कर्ज की वसूली

(कहते हैं अपने पापों की सजा आदमी को इसी जीवन में भुगतनी पड़ती है)

हिंदी कहानी

पायल कटियार

शादी के दस साल बीत जाने पर भी यशोदा संतान के सुख से वंचित थी। बच्चे की ख्वाहिश लिए उसने कितने की मंदिर, मजार और गुरुद्वारों पर माथा टिकाया था पर उसकी अभिलाषा पूरी नहीं हो पा रही थी। पिता न बन पाने का मलाल तो यशोदा के पति नंदन को भी था पर बच्चे न होने का मलाल तो यशोदा के पति नंद को भी था मगर वह व्यस्तता के चलते ज्यादा ध्यान न देता था। ऊपर से यशोदा दुखी न हो इसलिए वह हमेशा यही कहता रहने दो यशोदा नहीं औलाद तो न सही हम किसी के बच्चे को गोद ले लेंगे। यशोदा का पति वैन चलाने का काम करता था।

वह अपनी वैन से शहर आए टूरिस्टों को ऐतिहासिक पर्यटन स्थल घुमाने का काम करता था। पति की व्यस्तता और घर में कोई बच्चा न होने से सूने पड़े घर में यशोदा का मन बाल गोपाल की किलकारी के लिए रात दिन द्रवित होता रहता था।

यशोदा बच्चे के लिए व्रत पूजा पाठ दान पुण्य करती मगर उसकी तपस्या सफल होने का नाम ही नहीं ले रही थी। किसी ने सूर्य उदय से पहले गंगा स्नान करने और सूर्य देव को जल चढ़ाने की सलाह दी। यशोदा माघ की ठंड सर्द रातों में भी सुबह उठती और अपने पति के साथ प्रतिदिन गंगा स्नान को जाती। इधर यशोदा का पति रात को भी सवारियों को इधर से उधर पहुंचाने का काम करता था। लेकिन पत्नी के व्रत और नियम को पूरा करने के लिए वह समय से सुबह चार बजे अपनी वैन लेकर घर पहुंच ही जाता था।

माघ माह में आज पूरा सप्ताह बीत चुका था मगर सूर्य देव थे दर्शन देने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शीत लहर चल रही थी। यशोदा का पति प्रतिदिन की भांति सुबह चार बजे वैन लेकर अपने घर पहुंच गया। वैन की आवाज सुनकर यशोदा अपनी शॉल को संभालते हुए कपड़ों के बैग के साथ बाहर आई और वैन में बैठ गई। वैन में बैठी यशोदा की नजर वैन में पड़े एक बोरे पर पड़ी उसमें कुछ भरा हुआ था, उसने अपने पति से पूछा- क्यों यह क्या है? लगता है कोई सवारी अपना बोरा भरा हुआ छोड़ गया है?

बोरे को वैन की सीट के नीचे सरकाते हुए यशोदा के पति ने जबाव दिया-कुछ नहीं एक व्यापारी का सामान है मुझे उसके गोदाम तक पहुंचाना है। तू जल्दी बैठ तुझे छोड़कर इसे भी पहुंचाता हूं। यशोदा वैन में बैठकर प्रतिदिन की भांति अपने भजन संध्या में मस्त हो गई। गंगा जी के किनारे घाट पर पहुंचकर यशोदा को पति ने वैन से उतरने का इशारा किया तो यशोदा ने पूछा क्यों यहां क्यों तुम तो मुझे बिल्कुल किनारे तक छोड़कर आते हो?

पति- मुझे जल्दी है तू जा यहां से।वैन से उतरते हुए यशोदा- जैसी तुम्हारी मर्जी है, कहते हुए वह अपने कपड़ों के बैग के साथ वैन से उतर गई। आज स्नान पूजा करके घर वापस लौटी तो सूर्य देव ने चमकना शुरू कर दिया। सूर्य आराधना कर आज सात दिन बाद कहीं यशोदा ने अन्न ग्रहण किया था। वरना सप्ताह भर से सूर्य देव को जल न चढ़ा पाने के कारण वह सिर्फ जल और दूध और चाय पर ही जी रही थी। तपस्या कठिन की मगर दो माह बाद ही यशोदा को डॉक्टरों ने खुश खबरी दी कि वह मां बनने वाली है।

अब यशोदा और उसके पति की खुशी का ठिकाना न था। यशोदा ने मन ही मन अपने आने वाले बच्चे के लिए ढेरों सपने बुनना शुरू कर दिए। पूरे घर की अब रौनक ही बदल चुकी थी। सूने घर में अब चारों ओर अलग सी ही एक चहक जाग रही थी।

नौ माह बाद यशोदा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। आज बेटे के नाम संस्कार के लिए पंडित जी को बुलाया गया। पंडित जी ने अपनी पत्री निकाली और म से नाम रखने की सलाह दी। पंडित जी की बात सुनकर अनायास ही यशोदा के मुख से निकल पड़ा कि इसका नाम मनोहर रखते हैं। मनोहर सुनते ही जैसे यशोदा के पति को करंट लग गया हो वह चीख पड़ा नहीं।

यशोदा ने आश्चर्य से अपने पति की ओर निहाराते हुए पूछा – क्या हुआ तबियत तो सही है आपकी? नाम सुनकर आप चीख क्यों पड़े कुछ हुआ क्या? यशोदा के पति ने खुद को संभाला और कहने लगा नहीं-नहीं कुछ नहीं हुआ है बस यूं ही कहा कि क्या पुराना सा नाम है? अरे कृष्णा रखो कान्हा रखो तुम तो यशोदा हो।

यशोदा – हां ताकि मैं पालू और बड़ा होकर यह मुझे छोड़कर चला जाए। नहीं नहीं मुझे नहीं बनाना इसे कान्हा। मेरे मन को हरने वाला मेरा तो मनोहर ही सही है।पत्नी की जिद देखकर यशोदा का पति चुप हो गया। रिश्तेदारों के जाने के बाद एक बार यशोदा ने फिर से अपने पति से पूछा कि तुम्हें आखिर मनोहर नाम से चिढ़ क्यों है?

यशोदा की बात को नजरंदाज करते हुए पति ने कहा कि मैं तो तुम्हारे नाम की वजह से कह रहा था कि बेटे का नाम कृष्णा रख लो, फिर मुझे नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता जो चाहे नाम रख लो। मैं घर पर कितना रहता हूं तुम्हें ही दिन भर उसे पुकारना है कहते हुए वह अपने काम पर निकल गया।

इधर यशोदा का बेटे ने जब से जन्म लिया था बीमार ही रहता था। इधर यशोदा की समस्या समाप्त न हुई। पहले यशोदा बच्चे के जन्म के लिए मारी मारी फिरती थी अब जब एक बेटे ने जन्म ले लिया तो उसके इलाज के लिए जगह-जगह भटक रही थी। बीमार बच्चे के साथ यशोदा और उसके पति का जीवन नर्क बन चुका था। बच्चे के इलाज में यशोदा की सारी जमापूंजी सबकुछ समाप्त हो चुकी थी बात वैन बेचने की आ चुकी थी। एक दिन पैसे के लिए परेशान हुई यशोदा ने जब अपने पति से वैन बेचकर इलाज के लिए कहा तो उसका पति परेशान हो गया और रोने लगा।

पति को रोता देख यशोदा को लगा कि वैन बेचने के कारण उसका पति रो रहा है तो यशोदा ने कहा कि चलो वैन नहीं बेचना चाहते हो तो मत बेचो यह मकान ही बेच दो। बेटा अगर सही हो गया तो मकान तो हम फिर भी बनवा सकते हैं। यशोदा के पति ने यशोदा की निहारा और एकदम भावुक हो गया कहने लगा- नहीं यशोदा हम अब कुछ नहीं बचा सकते हैं। उसकी आंखों से आंसू के झरने बह रहे थे।

पति को रोता देख यशोदा आश्चर्य में पड़ गई और कहने लगी- आप ऐसे कैसे कह सकते हैं? ऐसी क्या बीमारी है मेरे बेटे को जो हम इसका इलाज नहीं करवा सकते हैं? या हम अपना मकान दोबारा नहीं बनवा सकते हैं?

यशोदा का पति अब सर पकड़कर बैठ गया। यशोदा उसकी ओर निहार ही रही थी उसने देखा उसका पति उसके बेटे के पास पहुंचा और सोते बेटे के सर पर हाथ रखकर कहने लगा- मुझे माफ कर दो मनोहर मैं तुम्हारा गुनहगार हूं। मगर मेरे कर्मो की सजा इस मासूम को मत दो। कहते हुए वह जोर-जोर से रोने लगा।

यशोदा एकदम शॉक्ड होते हुए पति के पास पहुंचकर चीखकर बोली क्या किया है आपने? आप जरूर कुछ छिपा रहे हैं मुझे बताइए क्या बात है? मैं कई दिनों से देख रही हूं कि आप दिन रात किसी गहरी चिंता में घुल रहे हैं मगर मुझे कुछ बता नहीं रहे हैं? यशोदा के पति ने अपनी पत्नी की ओर देखा और रोते हुए कहने लगा- यशोदा मैने बहुत बड़ा पाप किया है जिसका आजतक किसी को पता नहीं।

यशोदा अपनी बड़ी बड़ी आंखों से अपने पति की ओर निहारते हुए- पाप, कौन सा पाप किया है? क्या कह रहे हैं आप साफ साफ बताइए यूं पहेलियां मत बुझाओ।

यशोदा का पति- मैने मनोहर की हत्या की है उसका सबकुछ लूट लिया। आज वह बदला ले रहा है मुझसे। ईश्वर मेरे गुनाहों की सजा दे रहा है मुझे कहते हुए मनोहर फूट-फूटकर रोने लगता है।यशोदा घबराते हुए- मनोहर की हत्या? किस मनोहर की बात कर रहे हो?

यशोदा का पति- यशोदा मैने तुमसे छिपाया है। मनोहर मेरा एक मिलने वाला था उससे मैने वैन खरीदने के लिए कर्जा लिया था। वह जब भी कर्जा वापस मांगता तो मैं उसे टाल देता। एक दिन मुझे पता चला कि वह दस लाख रुपये लेकर किसी को देने के लिए जा रहा है मेरे मन में लालच आ गया और मैने उसे कर्जा वापस करने के बहाने बुलाया और उसकी हत्या कर दी। एक दिन तुम्हें याद है तुम गंगा स्नान के लिए एक बोरे के साथ गईं थीं? असल में उस बोरे में मनोहर की लाश थी।

यशोदा एक दम चीखकर- क्या कह रहे हो? हे भगवान उसदिन मैं एक लाश के साथ बैठकर गंगा स्नान के लिए गई थी? तुमने कहा था कि तुम किसी व्यापारी के पास बोरे को देने के लिए जा रहे हो।यशोदा का पति- हां यशोदा वह कोई सामान नहीं, बल्कि उस बोरे में मनोहर की लाश थी।

यशोदा के हाथ पांव कांप उठे भर्राए स्वर में उसने पति से पूछा- उस बोरे का क्या किया तुमने?

यशोदा का पति- तुम्हें वहां छोड़कर मैने पुल से उस बोरे को गंगा नदी में बहा दिया। कोहरे के कारण पुल पर सन्नाटा था। अंधेरे में किसी ने मुझे नहीं देखा और मैं यह सोचकर निश्चंत हो गया कि किसी ने मुझे नहीं देखा और आजतक मुझे पुलिस ने भी नहीं पकड़ पाई। मगर यशोदा वह तो (ईश्वर) सब देख रहा है उसके कैमरे मे मैं कैद हो चुका था। मेरे कर्जे को उसने चुकाने के लिए बेटे के रूप में फिर से मनोहर को भेज दिया।

यशोदा- अब समझ आया कि आप मनोहर नाम पर इतना क्यों चौक पड़े थे। देखा आपने ईश्वर भी मेरे जिव्हा पर मनोहर नाम को यूं ही अनायास लेकर आया और नाम रखवा दिया ताकि आप एक दिन भी मनोहर को न भूल सकें। आज मनोहर अपने कर्जे को लेने आया हुआ है और अगर आपने पहले ही इसके कर्ज को चुका दिया होता तो इस तरह से कर्जा न उतारना पड़ता।

यशोदा का पति- हां यशोदा तुम सही कह रही हो। (कहते हुए वह अपने बेटे मनोहर के पास बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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