समाजसेवा के बाहरी आवरण के पीछे एक हृदयहीन औरत की असलियत

हिंदी कहानी

पायल कटियार

समाज सेविका सावित्री देवी की शहर में अच्छी खासी पहचान थी। शहर के तमाम छोटे-बड़े कार्यक्रमों में उन्हें मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाता था। बहु-बेटियों के अधिकार लिए वे सदैव तैयार रहती थीं। महिलाओं के हक के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों से भिड़ जातीं थीं। हर एक के लिए बहुत ही मान्य थीं। अखबार की सुर्खियों में भी हर पल छाई रहती थीं। लोग उनको दया और ममता की मूर्ति मानते थे। उनके महिला संगठन की शहर में बहुत पहचान थी। कई बार सम्मानित भी हो चुकी थीं। पर क्या सच में वह ऐसी थीं?

आज एक महिलाओं के कार्यक्रम में उन्हें जाना था, तैयार हो रहीं थीं तभी फोन की घंटी बजती है- 

हैलो कौन- कहते हुए सावित्री ने फोन उठाया।

 दूसरी ओर से क्या आवाज आई पता नहीं, पर सावित्री देवी टेंशन में आ चुकी थीं।

टेंशन उनके चेहरे से साफ झलक रही थी। उन्होंने तुरंत पास रखे टेबल से पानी का जग उठाकर पानी को गिलास में उड़ेलते हुए पास रखे सोफे पर धम्म से बैठकर एक सांस में पूरा गिलास का पानी पिया।

फिर कुछ ही पल में खुद को संभालते हुए अपने मेकअप को सही करते हुए मोतियों की माला पहनी। एक मिनट में अपने चेहरे से टेंशन को हट गई और उनकी चिरपरिचित सदाबहार मुस्कराहट चेहरे पर झलकने लगी।

पास खड़ी उनकी बहु उनके चेहरे के बनते बिगड़ते भावों को देख रही थी। पास आकर बहु- मम्मी जी कुछ हेल्प करूं?

सावित्री देवी – रहने दे कर लूंगी मैं। अब तू जा तैयार हो जा, विजय आता ही होगा। चुपचाप उसके साथ चली जाना और हां किसी से कोई बात करने की जरूरत नहीं है। समझी, घर में कोई नौकर पूछे तो कह देना सर दर्द है दवा लेने जा रही हूं। समझी, अब जा यहां से सारा मूड खराब हो गया।

कहते हुए उन्होंने बहु को तैयार होने का आदेश दिया। 

बहु चुपचाप अपने कमरे में तैयार होने चली जाती है। वह जानती थी कि उसे तैयार होकर कहां जाना है?

आज उसे अपने तीसरे एबॉर्शन के लिए जाना था। वह परेशान हो उठती है मगर वह जानती है कि उसकी परेशानी से इस घर में किसी को कोई लेना देना नहीं है। उसे तो बस एक बेटा ही पैदा करके देना है, इसके लिए अब चाहे कितने ही उसके बच्चों को क्यों न मार दिया जाए या वह खुद ही क्यों न मर जाए मगर उसकी तकलीफ को सुनने वाला समझने वाला कोई नहीं है।

कमरे में आकर पहले तो वह बैड पर जाकर तकिये से अपना मुंह दबाकर जोर-जोर से रोने लगती है मगर जल्द ही उठकर अपना मुंह धोने बाथरूम में चली जाती है। 

इधर सावित्री अपने रूम में मैचिंग की लिपस्टिक, मैचिंग के सैंडल, मैचिंग के इयररिंग पहन कर तैयार हो जाती हैं। पूरी तरह से तैयार होकर याद आता है कुछ रह गया है, और फिर परफ्यूम को अपने ऊपर उड़ेलती हुईं अपना इंपोटेंट बैग लेकर बाहर निकल जाती हैं।

बाहर ड्राइवर उनकी गाड़ी लेकर सामने आ चुका है गेट खोलकर उसमें जाकर बैठ जाती हैं और ड्राइवर को कार्यक्रम में चलने का इशारा करती हैं। 

कार्यक्रम में बेसब्री से सामाज सेविका सावित्री देवी का इंतजार हो रहा था। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते ही माइक पर एनाउंस होता है- हमारे बीच हमारी मुख्य अतिथि सावित्री देवी जी आ चुकी हैं। पुष्प वर्षा के साथ उनका स्वागत होता है माला पहनाने वालों की होड़ लग जाती है। 

तभी एक महिला पास आकर- आइए मैडम अपना स्थान ग्रहण करें। एक महिला उन्हें माला पहनाते हुए गुलाब के फूलों का खूबसूरत सा गुलस्ता भेंट करती है।

मंद मुस्कान के साथ अपनी दरियादिली का प्रर्दशन करते हुए वह वहां बैठ जाती हैं। आज बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के कार्यक्रम में मैडम को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

सावित्री देवी माइक के समक्ष आते ही सबसे पहले सभी उपस्थित लोगों का अभिवादन करती हैं उसके बाद अपने विचारों को व्यक्त करना शुरू करती हैं-

हमारे समाज में आज भी लोग भ्रूण हत्या कर रहे हैं जबकि बेटियां आज किसी भी स्तर पर पुरुषों से पीछे नहीं हैं। हमें अपनी बेटियों को बचाना है उन्हें जन्म देने के साथ-साथ आगे पढ़ाना और बढाना भी है। अगर किसी भी बेटी के साथ अगर कोई गलत करता है उनका शोषण करता है तो मैं उसके साथ हूं वह बेहिचक मेरे पास आकर अपनी बात कर सकती है। आप सभी मेरे इस नेक कार्य में मेरा सहयोग करेंगे मुझे पूर्ण विश्वास है।

उनके ओजपूर्ण भाषण से सभी प्रभावित होते हैं। सभी उनकी जय जयकार कर रहे थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही सावित्री देवी तुरंत सर दर्द का बहाना कर अपने घर निकल लेती हैं।

घर आते ही सबसे पहले उन्होंने अपने बेटे विजय को फोन लगाया।

सावित्री देवी फोन पर – हां विजय क्या हुआ? काम हो गया? 

दूसरी ओर से फोन पर विजय- नहीं, मां डॉक्टर का कहना है इस बार संभव नहीं हैं। 

सावित्री- पागल हो गया है डॉक्टर, मैं बात करती हूं, कहते हुए वह विजय का फोन काट देती हैं।

बिना टाइम लगाए डॉक्टर को फोन लगा देती हैं। 

सावित्री देवी – हैल्लो, डॉक्टर क्या हुआ आपने विजय को मना क्यों कर दिया? आपको जितने पैसे चाहिए मिल जाएंगे मगर आप मेरा काम करिए। 

दूसरी ओर फोन पर डॉक्टर की आवाज आती है – मैडम आपकी बहु में खून की बहुत ज्यादा कमी है, अब वैसे भी पांच माह हो चुके हैं इस बार संभव नहीं हैं। आप समझती क्यों नहीं? 

सावित्री देवी – मैं कुछ समझना नहीं चाहती बस, आपसे जितना कहें करिए।

सावित्री देवी के बेटे की शादी को दो साल बीत चुके थे मगर अभी तक उन्होंने किसी पोते-पोती का मुंह नहीं देखा था। पहले तो उनके शराबी बेटे की शादी बमुश्किल से हुई अब नाती का मुंह देखने को तरस रहीं थीं। 

खुद को मॉडल कहने वाली सावित्री देवी अपनी ऐसी बहु लेकर आईं थी जिसे सिर्फ घर में शोपीस की तरह से रखा जा सके। देखने में सुंदर हो मगर उसके मुंह में आवाज न हो। क्योंकि उन्हें पसंद नहीं था कि कोई उनके काम में बाधा डाले इसलिए गरीब घर की कहीं दूर रिश्तेदारी से उन्होंने अपने बेटे का विवाह किया था। 

दिखावे के लिए उन्होंने शहर के एक बड़े होटल में शादी का रिस्पेशन रखा था। रिस्पेशन का सारा खर्चा स्वयं किया था। वहीं पोते की ख्वाइश के चलते वह बहु के तीन एबॉर्शन करवा चुकी थीं। अल्ट्रासाउंड द्वारा भ्रूण का पता कर तीन बच्चियों की हत्या करवा चुकी सावित्री देवी की आत्मा शायद मर चुकी थी। 

सावित्री देवी की असलियत सिर्फ उनके परिवार के लोग ही जानते थे। दया की देवी घर में किसी पर दया नहीं करती थीं। घर में काम कर रही कामवाली के साथ उनका किसी भी तरह से प्रेम व्यवहार न था। उसके साथ वह हमेशा बदतमीजी से ही पेश आती थीं। बात बात पर तनख्वाह काटने की धमकी दे देती थीं।

घर के नौकर से लेकर उनकी बहु भी उनकी बात की अवहेलना नहीं कर सकती थी। घर के बाहर बैठा चौकीदार 12 घंटे की नौकरी करता था अगर आने में एक मिनट भी लेट हो जाता था तो मां बहन की पूजा करने वाली सावित्री देवी उसे सीधे मां बहन की गालियों से सराबोर कर देती थीं। यही वजह है कि हर छह माह में उनके चौकीदार बदल जाते थे।

उनकी बदतमीजियों को कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता था और वह नौकरी छोड़कर चला जाता था। सर्दी व कोहरे के दिनों में खुद खाल के जैकेट पहने हुए मैडम जब रात दो बजे भी आती थी तो उन्हें चौकीदार बाहर टहलता हुआ ही मिलना चाहिए था। अगर गलती से भी वह केबन में चला गया तो समझो उस दिन की उसकी तनख्वाह काट दी जाती थी। 

जुल्मों की इंतहा थी सावित्री देवी। कहने को उनका एक चेरिटेबल ट्रस्ट था हॉस्पिटल था मगर वह दर्द किसी के नहीं समझती थीं। आज भी यही हुआ था बहु को एक बार फिर से मरने के लिए उन्होंने उसे अपने बेटे के साथ एबार्शन के भेजा था। डॉक्टर के लाख समझाने के बाद भी वह नहीं मानती हैं और डॉक्टर को एबार्शन के लिए आदेश दे देती हैं।

रात हो चुकी थी। अभी तक विजय और बहु घर नहीं लौटे थे। चिंतित होते हुए भी अपने चेहरे से चिंता को छिपाते हुए नौकरानी को आदेश देती हैं- जाओ मेरे लिए एक कप कॉफी ले आओ।

नौकरानी कॉफी बनाने चली जाती है तभी फोन की घंटी बजती है। फोन पर बात करते ही तुरंत बिना कॉफी पिये ही कमरे में चली जाती हैं। थोड़ी ही देर में घर के बाहर तेजी से किसी एंबूलेंस के आने की आवाज आती है घर के सभी नौकर एक दम शॉक्ड होते हुए बाहर की ओर जाकर देखते हैं। 

एंबूलेंस घर के मेन गेट से प्रवेश करते हुए अंदर दरवाजे तक आ जाती है। एंबूलेंस से विजय उतरता है। उसके उतरने के बाद ही वह पीछे से अस्पताल का वार्ड बॉय उतरते हैं और किसी की लाश को एंबूलेंस से उतारकर नीचे रख देते हैं। अब एंबूलेंस बिना आवाज के ही वहां से चली जाती है। 

थोड़ी ही देर में बहु के घरवालों को खबर कर दी जाती है कि पैर फिसलने के कारण बहु का मिसकेरेज हो गया था जिससे उसकी मौत हो गई। रिश्तेदार और शहर के जिस किसी को पता चलता है सब धीरे-धीरे सावित्री देवी के घर पहुंच जाते हैं। इधर सावित्री देवी दहाड़े मार-मार कर रोने का नाटक करती हैं। 

भीड़ से पूरा घर भर चुका था। तभी उसी भीड़ में से सावित्री देवी को रोता देखकर कोई कहता पता नहीं क्यों ईश्वर हमेशा अच्छे लोगों के साथ क्यों बुरा करता है? सावित्री देवी जैसी दया की मूर्ति जो दूसरों की बहु बेटियों को इतना प्यार करती थीं भला अपनी बहु को न जाने कितने प्रेम से रखती होंगी आज देखो बेचारी कितना रो रही हैं बेटी के समान बहू के लिए।

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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