दो खामोश आंखें 7 Posted on 28th January 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर किसी के रूप से होकर अँधा जो मैं भटका जहाँ में जानता हूँ पीठ पर चुभती रहेंगी दो खामोश ऑंखें
साहित्य वृन्दावनस्थ वानरों से संवाद – अमनदीप वशिष्ठ Yogendra Singh Chhonkar 23rd August 2023 0 कुछ महीने पहले जब वृन्दावन जाना हुआ था तो यमुना किनारे एक बंदर ने चश्मा छीन लिया। फ्रूटी देने की औपचारिक रस्म निभाने के बाद […]
साहित्य दो खामोश आंखें – 13 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर जिनके होने का अहसास है दिल का सुकून जिनमे डूबने की हशरत है मेरा जूनून पल में हँसाने और रुलाने वाली खुद को […]
साहित्य दो खामोश आंखें -32 Yogendra Singh Chhonkar 19th December 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर गणेश जी का दूध पीना सागर जल मीठा होना रोटी प्याज़ वाली डायन कटे बैंगन में ॐ दीवार पर साईं कितनी सहजता […]
You must log in to post a comment.