योगेन्द्र सिंह छोंकर
किसी के रूप से
होकर अँधा
जो मैं भटका
जहाँ में
जानता हूँ
पीठ पर
चुभती रहेंगी
दो खामोश ऑंखें
किसी के रूप से
होकर अँधा
जो मैं भटका
जहाँ में
जानता हूँ
पीठ पर
चुभती रहेंगी
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर अपनी अपनी वासनाओं में हस्तमैथुनरत दुनिया में बेइरादा डोलती कुछ बावरी भी हैं दो खामोश ऑंखें
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