दो खामोश आंखें – 6

योगेन्द्र सिंह छोंकर
अपनी अपनी
वासनाओं में
हस्तमैथुनरत दुनिया में
बेइरादा डोलती
कुछ बावरी भी हैं
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 5

योगेन्द्र सिंह छोंकर हो जाऊं जहाँ के लिए मसीहा या फिर कातिल मैं क्या हूँ जानती हैं बखूबी दो खामोश […]

दो खामोश आंखें 7

योगेन्द्र सिंह छोंकर किसी के रूप से होकर अँधा जो मैं भटका जहाँ में जानता हूँ पीठ पर चुभती रहेंगी […]

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