कभी आबाद घर यां थे

जहां वीराना है, पहले कभी आबाद घर यां थे,

शगाल अब हैं जहां बसते, कभी रहते बशर यां थे।

जहां फिरते बगूले हैं, उड़ाते खाक सहरा में,

कभी उड़ती थी दौलत रक्स करते सीमे-बरयां थे।

‘जफ़र’ अहवाल आलम का कभी कुछ है कभी कुछ है,

कि क्या-क्या रंग अब हैं और क्या-क्या पेश्तर यां थे।

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