दो खामोश आंखें – 14

योगेन्द्र सिंह छोंकर
चंद कतरे उनके
लफ़्ज़ों के
चंद हर्फ़
उनकी मुस्कराहट के
वो मन भावन मिठास उनके
जज्बात की
सहेजने को ताउम्र
मुझे सौंप गयी है
सौगात
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 13

योगेन्द्र सिंह छोंकर जिनके होने का अहसास है दिल का सुकून जिनमे  डूबने की हशरत है मेरा जूनून पल में हँसाने […]

दो खामोश आंखें – 15

योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला […]

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