दो खामोश आंखें – 13

योगेन्द्र सिंह छोंकर
जिनके होने का अहसास
है दिल का सुकून
जिनमे  डूबने की हशरत
है मेरा जूनून
पल में
हँसाने और रुलाने वाली
खुद को खुदा
क्यों नहीं कह डालती
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 12

योगेन्द्र सिंह छोंकर तेरे दिए हैं या खुद के रचे जो भोग रहा हूँ पल बेख्याली के बा ख्याली की हर […]

दो खामोश आंखें – 14

योगेन्द्र सिंह छोंकर चंद कतरे उनके लफ़्ज़ों के चंद हर्फ़ उनकी मुस्कराहट के वो मन भावन मिठास उनके जज्बात की […]

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