दो खामोश आंखें – 12

योगेन्द्र सिंह छोंकर
तेरे दिए हैं
या खुद के रचे
जो भोग रहा हूँ
पल
बेख्याली के
बा ख्याली की
हर डगर
मिटाती गयीं
दो खामोश ऑंखें

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