दो खामोश आंखें – 1 Posted on 28th January 2011 by Yogendra Singh Chhonkar कैसे लिखूं मैं वो प्यारे पल जिनका साक्षी मैं और दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 15 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला भी पाएंगी दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 17 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर करने को सुबह शाम क्यों देती हो होठों को थिरकन हो जाएगी दिन से रात जो एक बार पलक झुका लें दो […]
साहित्य मेरी बेटी (मां और बेटी के प्रेम का दर्पण) Yogendra Singh Chhonkar 17th June 2024 0 (पायल कटियार) बेटी पाकर धन्य हो गई जब से वह बड़ी हो गई मैं टेंशन फ्री हो गई मानो जिम्मेदारी से मुक्त हो गईजब से […]
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