वैसे तो लोकदेवता तल्लीनाथ जी राठौड़ की मान्यता सारे पश्चिमी राजस्थान में है पर जालौर जिले में इनकी मान्यता सर्वाधिक है। पशु बीमार होने या किसी जहरीले कीड़े के काटने की दशा में इनकी उपासना की जाती है।
पारिवारिक परिचय
राव तल्लीनाथजी राठौड़ का मूल नाम गांगदेव राठौड़ था। इनके पिता का नाम वीरमदेव राठौड़ था। इनके पिता शेरगढ ठिकाने (जिला जोधपुर) के जागीरदार थे। इन्होंने नाथ पंथ के संस्थापक मत्स्येन्द्र नाथ जी के शिष्य जालंधरनाथ जी से दीक्षा लेकर उन्हें अपना गुरु बनाया था।
पंचोटा गांव में की तपस्या
राव तल्लीनाथ जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के बालक थे। इन्होंने जालंधरनाथ जी का शिष्यत्व ग्रहण किया। जालंधरनाथ जालौर के किले के बाहर बने सिरे मन्दिर (यह एक शिव मंदिर है) पर रहकर तपस्या किया करते थे। तल्लीनाथ जी अपने गुरु के पास जालौर चले गए और वहीं रहने लगे। वहीं के पंचोटा गांव में रहकर उन्होंने अपनी तपस्या की। पंचोटा गांव में ही उनका मुख्य उपासना स्थल व समाधि है। जालोर की पंचमुखी पहाड़ी पर उनका मन्दिर व समाधि बनी हुई है। मान्यता है कि किसी का पशु बीमार होने पर या किसी के जहरीले कीड़े द्वारा काट लिए जाने पर तल्लीनाथ जी की तांती बांधने से उसका उपचार हो जाता है।
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