सीमा रेखा के पार

कहानी

पायल कटियार

तेज वेग से बहती लहरों में आज एक उस कहानी का अंत हो गया जिसके चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे। दर्दनाक कहानी का अंत हुआ मगर यह कहानी युग युगांतर तक लोगों को याद भी रहेगी और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सुनाई भी जाती रहेगी। कहते हैं समाज से हटकर अगर हम अपनी मनमर्जी से जीने की इच्छा रखते हैं तो अंजाम ज्यादातर बुरा ही होता है। क्योंकि समाज अपने बनाएं हुए दस्तूर को तोड़ने नहीं देता। और जो तोड़ते हैं उन्हें समाज जीने नहीं देता। हमेशा से समाज में अपनी अलग राह पर चलने वाले लोग या तो पागल कहलाते हैं या फिर तंग आकर आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं जैसे कि सीमा और रेखा ने किया। आज इन दोनों ने भी समाज से लड़ते हुए अपनी कहानी का अंत कर दिया।

 सीमा और रेखा एक ही गांव में जन्मी थीं। सीमा के जन्म पर पूरे गांव में मिठाई खिलाई गई थी‌। सभी को दावत दी गई थी। जमींदार के घर लक्ष्मी आई है कहते हुए नाइन ने सीमा की मां से कहा मुझे चांदी की पायल चाहिए। हां हां ले लेना कहते हुए तुरंत खुश होते हुए सीमा की मां ने अपने पैरों की भारी पायल पैरों से उतारते हुए नाइन के सामने डाल दी। खुश होते हुए हजारों दुआएं देती हुई पूरे गांव में जमींदार के गुणगान कर आई थी नाइन। उस वक्त माता-पिता को नहीं मालूम था कि जिस बच्ची का नाम सीमा रख रहे हैं वह एक दिन समाज की हर सीमा को तोड़ देगी। 

वहीं दूसरी ओर उसी दिन रेखा ने भी उसी गांव में जन्म लिया था। रेखा के माता-पिता भी बहुत खुश थे बड़ी मन्नतें मांगी थी एक बेटी के लिए। हाथों की ओर निहारते हुए एकाएक रेखा के पिता के मुंह से निकल पड़ा कि मेरे हाथों की रेखाओं में बेटी का सुख था इसलिए मिला है। पत्नी की ओर निहारते हुए कहने लगे इसका नाम रेखा ही रखें? हां हां क्यों नहीं आपने अच्छा नाम रखा है। रेखा भी समाज की रेखाएं लांघ जाएगी परिवारवालों ने सोचा न था। 

एक ही गांव में एक ही दिन में दो अलग-अलग परिवार में खुशियां मनाई गई। गांव वाले भी खुश थे। समय के साथ दोनों का बचपन एक साथ बीतने लगा। अब दोनों एक स्कूल एक कक्षा में ही पढ़ती थीं। सीमा के पिता गांव के जमींदार थे तो रेखा के पिता एक मामूली किसान। प्राथमिक विद्यालय में एक साथ प्रवेश कर दोनों ने एक ही क्लास में एडमिशन लिया था। पढ़ाई में रेखा काफी होनहार थी वहीं सीमा उससे कम लेकिन खेलकूद में वह हमेशा आगे ही रहती थी। दोनों के बीच जमीन आसमान का अंतर था। रेखा शांत और गंभीर थी वहीं सीमा के अंदर अल्हड़पन कूट-कूट भरा हुआ था। हर पल उसे कुछ न कुछ ऊटपटांग हरकतें करने की कोशिश में लगी रहती थी। इतना अधिक अंतर होने के बाद भी दोनों के बीच अब गहरी दोस्ती हो गई कि दोनों को पता नहीं चला। एक गुड़िया के खेल में दोनों की सुबह शाम बीतने लगी। 

स्कूल छूटने के बाद दोनों एक साथ घर जाती थी रास्ते में पड़ने वाले आम के पेड़ से कच्चे आम तोड़कर खाना दोनों की आदत बन गई थी।

 वक्त बीतता चला गया और अब दोनों उम्र की उस दहलीज पर कदम रख चुकी थी जहां गुड्डे-गुड़ियों के स्थान पर लड़कियां अपने भावी राजकुमार के सपने बुनने लगतीं हैं लेकिन इन दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं था। न कोई सपने में राजकुमार था न कोई किसी दूसरे के लिए सपना ही देखता था। बस एक आस रहती कि वह हर पल एक दूसरे के साथ ही रहें। एक दिन सीमा आम के पेड़ पर आम तोड़ रही थी और रेखा नीचे से उठा उठा कर एकत्र कर रही थी तभी वहां पर सीमा का चचेरा भाई आ जाता है। वह रेखा को देखकर कहता है- सीमा अपनी सहेली से मेरी भी मित्रता करवा दो।

सीमा- भाई क्यों नहीं आज घर पहुंचो पहले चाची से पूछ लेती हूं।

सीमा का भाई- पागल हो गई क्या? मरवाएगी, अम्मा को मत कहना, पागल मैं तो मजाक कर रहा था।

कहते हुए तुरंत वहां से चला जाता है। दोनों ज़ोर ज़ोर से हंसती हैं। 

क्यों रेखा करेंगी मेरे भाई से दोस्ती – सीमा ने ठिठोली करते हुए रेखा से पूछा।

तू ही काफी है दोस्ती के लिए अभी तो एक को संभाल रही हूं फिर दो-दो को न बाबा न – कहते हुए ज़ोर से हंसने लगी रेखा।

आज पहली बार दोनों को एहसास हुआ कि उन्हें अपने बीच किसी किसी तीसरे की उपस्थिति कितना खलती है। दोनों घंटों आम के बाग में बैठकर एकसाथ जीने-मरने की कसमें खाते हुए आम तोड़ कर खाती और एक दूसरे से जुदा न होने की बात करतीं हैं। 

चोरी से आम तोड़ कर खाने की आदत को लेकर कई बार दोनों के घर तक शिकायत भी पहुंची लेकिन किसी ने भी आम तोड़कर खाना न छोड़ा। रेखा से दोस्ती न कर पाने के कारण सीमा का भाई अक्सर दोनों की चुगली किया करता था। वह कोई कसर नहीं छोड़ता दोनों के घर कोई न कोई प्रतिदिन शिकायत करने की। एक दिन अपनी ताई यानी सीमा की मां से कहने लगा इन दोनों ने आम के बाग उजाड़ दिए हैं माली रोज डंडा लेके इन्हें भगाता है। मुझसे शिकायत कर रहा था। बड़ी बदनामी करवातीं है आप इसे समझाती क्यों नहीं है। भतीजे की बात सुनकर सीमा की मां का आपा खो गया। कहने लगी आने दो टांगें तोड़ती हूं। 

 सीमा की मां अक्सर सीमा पर बरसती थीं कि तुम्हारे पिता के खुद के कई आम के बाग हैं जितना खाने है मंगा लिया कर। सीमा की मां सीमा पर बरसते हुए कहने लगी तुझे कितने आम खाने हैं बता दे घर बैठे माली खुद ही दे जाएगा और अपनी सखी रेखा से कह जितने आम चाहिए ले जाए। 

सीमा- मां! वसुदेव जी के घर मक्खन की कमी थी नहीं न लेकिन कृष्ण फिर भी दूसरे के घर मक्खन चुरा कर ही खाते थे, कृष्ण की तो आप बड़े गुणगान करतीं हो फिर आपको मेरी चोरी क्यों बुरी लगती है। 

सीमा की मां- मुझसे बहस मत कर वो भगवान थे। 

सीमा- अच्छा आप थी उस वक्त। कहते हुए हंसते हुए वहां से निकल जाती है।

 सीमा अक्सर मां की बातें एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया करती थी। जैसे जैसे समय बीतता गया दोनों की दोस्ती भी गहरी होती गई। सीमा के पिता अक्सर सीमा की पढ़ाई को लेकर उसे शहर भेजना चाहते थे लेकिन उसकी मां हमेशा यही कह कर मना कर दिया करतीं कि यह लड़की यहां पर तो कुछ संभाल नहीं पाती है शहर में इसका कौन ख्याल रखेगा। 

असल में सीमा एकदम लापरवाह लड़की थी रेखा ही हमेशा उसका ख्याल रखती थी स्कूल के होमवर्क की कॉपी से लेकर उसके घर के कवर्ड के सामानों को सलीके से रखने में मदद करतीं थीं। सीमा की मां अक्सर यह कहकर उसे डांटती रहतीं थीं कि रेखा तेरे साथ तेरे ससुराल नहीं जाएंगी वहां तुझे कौन संभालेगा कौन तेरे घर को। सीमा की मां का जबाव रेखा हंसते हुए देती और कहती इसका ब्याह मेरे साथ ही कर दो चाची फिर आपको कोई फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। रेखा की बातें सुनकर सीमा की मां हंस देती और कहती बाबरी हो गई है सहेली खातिर। अपने- अपने ससुराल जब पहुंच जाओगी तब सब पागलपन दूर हो जाएगा। सहेली का जो बुखार चढ़ा है सब उतर जाएगा। दोनों की इस जोड़ी को देख कर गांव के लोग हमेशा यही कहते कि एक ही गांव में ब्याह करवा देना दोनो का। 

उम्र बीतने के साथ ही अब रेखा के पिता ने रेखा के लिए घर और वर तलाशना शुरू कर दिया। एक दिन सीमा के पिता सीमा की मां से कहा सुनो मेरे एक मित्र ने मुझे एक रिश्ता बताया है, लेकिन लड़का विदेश में रहता है, सीमा की मां- नहीं जी, हम नहीं भेजेंगे विदेश। चाहे जो हो। सीमा सुन रही थी पास आते ही बोली मुझे कहीं नहीं जाना है । सीमा की मां – कोई दूसरा रिश्ता तलाश करो। सीमा के पिता भी मन ही मन सीमा को बाहर न भेजने का विचार कर रहे थे अब मां बेटी की मुहर लगने से उन्होंने और इस रिश्ते को दिमाग से निकाल दिया। 

इधर रेखा भी एक के बाद एक रिश्ते ठुकराती गई किसी लड़के में कमी तो किसी के घरबार में कमियों को निकाल कर शादी को टाल देती। वहीं सीमा की मां भी सीमा के पिता पर सीमा की शादी को लेकर दबाव बनाने लगी थी।‌ अब दोनों के लिए एक दूसरे के साथ पहले से ज्यादा समय बिताने लगीं थीं घर वाले बहुत समझाते कि इतनी देर तक एक दूसरे के घर रहना उचित नहीं है पर दोनों में से कोई भी समझने के लिए तैयार नहीं था। अक्सर बंद कमरे में घंटों एक दूसरे को न छोड़ने की कसमें खाने लगीं। 

इस असीम प्रेम के पागल पन की हद तब हो गई जब सीमा और रेखा ने स्पष्ट शब्दों में अपने अपने घरवालों को शादी करने से इन्कार कर दिया। जिन सहेलियों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी दूर-दूर तक आज दबी जुबान में बुराईयां होने लगी थी। सीमा के पिता के कानों में जब यह बात पहुंची तो उन्होंने सीमा को शहर ले जाकर उसकी शादी करवाने का फैसला कर लिया। एक दिन सीमा के पिता ने सीमा की मां से कहा जल्दी से सामान बांध लो हमें कल ही शहर जाना है मैंने एक रिश्ता तय कर दिया है। इतनी जल्दी सब कैसे होगा सीमा की मां ने कहा। तुम्हारी बेटी के नसीब में नहीं है धूमधाम से शादी करना, अब बहस मत करो चलों जाओ सामान बांध लो ‌। 

सीमा की मां खुश होने के बजाय दुःखी मन से सामान पैक करने लगती है। सीमा के जन्म के साथ ही उसकी मां ने उसके लिए जो सपने संजोए हुए थे सब एक झटके में चूरचूर हो गए थे। वह अक्सर गांव की महिलाओं से यही कहा करती थी एक बेटी है शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे हर बिरादरी को न्यौता दिया जाएगा। दावत के लिए शहर के हलवाई को बुलाया जाएगा और शहर की तरह खड़े होकर खाना खिलाएंगे और जो बैठकर खाएं उसकी अलग से व्यवस्था की जाएगी। ऐसी जोर-शोर से शादी करेंगे कि आसपास के गांव में आज तक कभी किसी ने ऐसी शादी नहीं की होगी। पहले जो सीमा की मां रेखा तारीफ़ करते हुए नहीं थकतीं थीं आज वह उसे कोसते हुए कहती हैं इसने पता नहीं क्या जादू टोना टोटका कर दिया है मेरी बेटी पर जो शादी के लिए तैयार नहीं हैं।

  वहीं रेखा की मां अपनी बेटी को यह कहकर कोसतीं कि अमीरों की सौ गलतियां माफ़ हो जाती है पर गरीब परिवार की बेटी अगर एक बार बदनाम हो गई तो कौन ब्याह करेगा। दोनों ही पर अब अंकुश लग गया था। मिलने के लिए उन्हें चोरी छिपे घर से बाहर आना पड़ता था। इस तरह अपने घरवालों से दोनों चोरी छिपे मिलने लगीं लेकिन गांव के लोगों की नजर से खुद को न बचा पाईं नतीजा यह हुआ कि इस तरह से आपस में मिलने की खबर घर तक गांव के लोगों ने पंहुचा ही दी। दोनों घर में अब दुश्मनों के जैसा व्यवहार होने लगा सीमा के पिता रेखा के पिता को नीचा दिखाने के लिए कोई कसर न छोड़ते थे यही कारण था कि आज वह अपनी पत्नी और बेटी को लेकर शहर जाने की तैयारी कर रहे थे ताकि रेखा से पहले वह सीमा की शादी कर सकें। 

सीमा अपने पिता को जानती थी इसलिए उसने बिना कोई विरोध किए शहर जाने के लिए अपनी सहमति जता दी और शहर जाने के लिए वह कपड़े पहनने कमरें में चली गई। सीमा के पिता घर के नौकरों को निर्देश देने लगे कि जब-तक वह शहर से वापस न लौट आएं तबतक खेत-खलिहान और घर का पूरा ध्यान रखा जाए। आंखों में आसूं लिए सीमा की मां बेटी के लिए बनवाएं हुए कुछ गहने कपड़े सहेजने लगीं। मन ही मन बुदबुदाते हुए – चलो अब जैसे भी सही बेटी को कुछ गहने कपड़े देकर पहले उसे अपनी ससुराल पहुंचा दे बाकी लेना-देना तो उसे जीवन पर्यन्त करतीं रहेगीं। 

रात 10 बजे की ट्रेन थी एक घंटा गांव से स्टेशन तक पहुंचने में लग जाता इसलिए जल्दी ही निकलना था। इसलिए सबकुछ जल्दी जल्दी हो रहा था। सीमा जल्दी करो पिता जी अभी बरसने लगेंगे सीमा की मां ने दरवाजा पीटते हुए कहा। तीन चार बार आवाज देने के बाद भी जब कोई जवाब नहीं आया तो घबराए हुए सीमा की मां ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था अनहोनी की आंशका में सीमा की मां ने पति को आवाज दी। दरवाजा खोलने के लिए सीमा के पिता ने जोर से धक्का लगाया लेकिन न खुलने पर नौकरों को तोड़ने का आदेश दिया गया। दरवाजा तोड़ दिया गया। अंदर पहुंच सीमा की मां पिता के पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि सीमा घर की खिड़की से रस्सी के सहारे कूद कर भाग चुकी थी।

माता-पिता को पता था वह कहां गई होगी। रेखा के घर के सिवाय और कोई दूसरा ठिकाना नहीं था। सीमा के पिता का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था और वह घर से अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर लेकर रेखा के घर के लिए निकल पड़े। आज किसी कीमत पर नहीं छोडूंगा, चीखते हुए दौड़ने लगे‌।

पीछे पीछे सीमा की मां भागते हुए पति को रोकने के लिए जाने लगीं। गांव के कुछ लोग उनके पीछे-पीछे चलने लगे कुछ तमाशा देखने तो कुछ बुजुर्ग रोकने के लिए दौड़े। रेखा के घर पहुंचते हुए उन्हें रास्ते में मालूम हुआ कि वह लोग तो सुबह ही घर से बाहर कहीं जा चुके हैं। फिर कहां गई होगी सीमा अब उसे कहां तलाश की जाए जरूर उसे रेखा बता कर गई होगी। गांव से बाहर जाने के लिए दो ही विकल्प थे एक अपने निजी वाहन या फिर गांव के कुछ लोग इक्के यानी तांगे से बाहर जाते है मगर अब तो वह भी नहीं जाएंगे क्योंकि शाम छह बजे के बाद वह भी बंद हो जातें हैं । 

गांव में अक्सर जंगली जानवरों का डर बना रहता है इसलिए अब वह भी नहीं जा सकते हैं। फिर कहां जा सकती है। सीमा के पिता के मन में विचार चल ही रहा था कि किसी ने बताया कि उसने सीमा को नहर के पास जाते हुए देखा है। 

वहीं दूसरी ओर रेखा भी आधे रास्ते से अपने घरवालों को चकमा देकर वापस गांव आ गई थी और दोनों ने शाम को नहर के पास मिलने का एक दूसरे को समय दिया था। जब दोनों घर से बाहर निकल नहीं सकती थी तो एक दूसरे से मिलने का समय निश्चित किसने किया? पर कोई नहीं जानता था कि इस कार्य में उनकी मदद सीमा के घर के पास का ही एक बच्चा कर रहा था जो एक दूसरे के संदेश को पहुंचाने का काम किया करता था। सीमा के पिता ने आज ठान ली थी कि आज भले ही कुछ हो जाए इस कहानी का अंत करना है। अब रेखा को मारकर ही अपनी बेटी का ब्याह रचाएंगे। नहर के पास पहुंच कर उन्होंने जोर से आवाज़ दी सीमा सीमा। सीमा और रेखा एक दूसरे का हाथ पकड़ कर साथ ही खड़ी थी। सीमा के पिता ने गुस्से में रिवाल्वर तान दी। पिता जी अब कुछ भी हो जाए हमें कोई अलग नहीं कर सकता दोनों एक साथ चिल्लाई।‌ बहुत हो गया तुम दोनों का ड्रामा सीमा के पिता ने गुस्से से कहा। इससे पहले वह कुछ करते दोनों ने एक दूसरे के गले लगते हुए तेज बहती हुई नदी में छलांग लगा दी। उनके इस तरह के कदम से पूरा गांव सकते में आ गया। रात के अंधेरे में दोनों की चीखने की आवाज दूर-दूर तक फैल गई। सीमा के पिता को मानों सैकड़ों सांपों ने एक साथ कांट लिया हो वह वहीं सिर पकड़ कर बैठ गए। सीमा की मां वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ी। उधर रेखा के पिता मां उसे तलाशते हुए गांव पहुंच गए थे। जब दोनों के नदी में कूदने की बात पता चली तो वह भी पागल हो गए और चीखने लगें मैं तो तुझे अपने साथ दूर ले जा रहा था क्यों वापस आ गई। 

रेखा की मां को गांव की औरतों ने संभाला वह बार-बार नदी की ओर बेटी के साथ मरने की बात कर रहीं थीं। रात को ही दोनों के एक साथ इस तरह मरने की खबर आग की तरह एक गांव से दूसरे गांव पहुंच गई। रात को ही गांव के लोग पानी में कूदकर उन्हें खोजने लगे। सुबह शहर से आए गोताखोरों ने दोनों को आखिरकार ढूंढ निकाला और दोनों के शव उनके माता-पिता को उनके हवाले कर दिए गए। जीते जी जिन्होंने एक नहीं रहने दिया आज दोनों को एक साथ ही एक चिता में सुला दिया गया।

(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती है और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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