सत्संग का सही अर्थ

कहानी

पायल कटियार

सुनो मुझे कल सत्संग में जाना है। नेहा ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को सचेत करते हुए कहा। नेहा नियम से सत्संग में जाती थी। उसकी उम्र ढलने पर आ गई थी। नियम कायदे कानून की पक्की नेहा सत्संग जाने के लिए अपने सभी कामों को समय से निपटा लिया करती थी। पति को और बच्चों को भी मालूम था कि कुछ भी हो मां सत्संग का नियम नहीं तोड़ सकतीं हैं। सो किसी ने आज तक कभी भी विरोध नहीं किया था। 

हमेशा की तरह से दूसरे दिन नेहा उठी नहाना धोना करते हुए तैयार होकर बहू को आदेश दिया कि आज कुछ मेहमान आने वाले हैं अपने सभी कामों को निपटा लेना जल्दी से। जी मां जी बहू ने सर हिलाते हुए कहा। 

 तुम्हारे कभी भी काम समय पर नहीं निपटते, नेहा ने बड़बड़ाना शुरू किया। कर तो रही है, पति ने बहू के सपोर्ट में कहा तो नेहा ने पति को घूरते हुए कहा सुनो ज्यादा सर पर मत चढ़ाओ। पति गहरी लंबी सांस लेते हुए चुपचाप अपना अखबार लेकर दूसरे कमरे में चले गए। तभी नेहा का बेटा अपने कमरे से बाहर आ गया। क्या मां आप फिर शुरू हो गईं सुबह-सुबह कितनी बार कहा है कि संडे को तो मुझे सो लेने दिया करो। तुझे किसने जगाया जा तू सो जाकर, नेहा ने अपने बेटे को लाड़ परोसते हुए कहा। कहां से सो लूं आप तो सुबह से ही इतना तेज आवाज में सभी को डांट रही हो बेटे ने जम्हाई लेते हुए कहा। तू जा अपने कमरे में, मैं तो तेरी बीवी से कह रही हूं कि समय से काम निपटा ले आज मेरे सत्संग की कुछ बहनें आएंगी। घर गंदा न रहे, बच्चे हमेशा इधर से उधर सामान फैलाए रहते हैं। और तेरी बीवी है कि कुछ संभाल ही नहीं पाती है। नेहा ने क्रोध में कहा।

 नेहा पहले अक्सर सत्संग की कुछ बहनों को अपने जन्मदिन या फिर अपनी शादी की सालगिरह पर बुलाया करती थी। लेकिन जब से उसके बेटे की शादी क्या हुई वह अपनी सत्संग की बहनों को घर पर कम ही बुलाती थी। क्योंकि जब भी वह लोग आतीं तो कुछ न कुछ ऐसा कह जाती कि नेहा को अपने घर में और अपने परिवार के सदस्यों में सिर्फ कमियां ही कमियां नजर आतीं थीं। उम्र बढ़ने के साथ ही नेहा अब कुछ चिड़चिड़ी सी भी होती जा रही थी शायद वह घर गृहस्थी से दूर भागने लगी थी। नेहा के पति और बेटे को अपने आफिस से फुर्सत नहीं मिलती थी सो उसने सत्संग में जाकर अपना समय को सदुपयोग में लगाना शुरू कर दिया था। अब उसकी दुनियां परिवार से बढ़कर सत्संग की सहेलियां हो गईं थीं। बेटे की शादी के बाद तो नेहा ने जैसे गृहस्थी से नाता ही तोड़ लिया था। सारी जिम्मेदारी अपनी बहू के ऊपर डाल दी थीं।

 नेहा की बहू एक दम ढीली ढाली लापरवाह टाइप की थी। उससे अपने काम भी नहीं संभलते थे। दिन भर घर में कपड़े तो कहीं सामान बिखरा ही रहता था। सत्संग से लौटकर नेहा जब भी आती उसे घर हमेशा अव्यवस्थित ही मिलता था। नेहा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर सब कैसे संभले?

शाम को नेहा के सत्संग की कुछ बहनें उसके घर पर आईं उन्हें बैठाकर उसने बहू को आदेश दिया कि आठ दस कप चाय बनाकर दे जाए। नेहा की आदेश सुनकर बहू ने अपने दूसरे कामों को छोड़ चाय गैस पर चढ़ा दी। तभी एक बहन ने नेहा से कहा घर तो काफी बड़ा है। 

 इधर बहू अपने बच्चे को छोड़कर किचन में गई ही थी तभी उसका तीन साल का नाती जिसने शायद अभी ही स्कूल जाना शुरू किया था वह अपना बैग लेकर आंगन में आ गया। अरे वाह आप पढ़ते भी हैं? एक बहन ने उसकी ओर देखते हुए कहा। हां मैं स्कूल जाता हूं, कहते हुए उसने अपने बैग की सारी किताब कॉपी आंगन में बिखेर दीं। सभी किताब कॉपी के कवर फटे हुए थे। कॉपी में वर्क नहीं हो रहा था। रीमार्क से कॉपी पटी हुई थी।

 नेहा इसको काम नहीं करवाती हो देखो इसकी मैडम ने कितनी बार लिखा है एक सत्संग की बहन ने उस बच्चे की कॉपी को खोलते हुए कहा। अरे बहन मैं कहां से ध्यान दे सकती हूं? इसे फुर्सत नहीं है बहू को कोसते हुए नेहा बोली। तभी सत्संग की एक दूसरी बहन बीच में बोल पड़ी क्यों क्या करते हो आप लोग जो इसके लिए वक्त नहीं है? 

 मुझे सुबह होते ही सत्संग में जाना होता है फिर दोपहर में थक कर सो जाती हूं। शाम को मंदिर जाना होता है। मुझे कहां टाइम है? नेहा ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा। अच्छा बाकी सब? बेटा पति को ऑफिस से फुर्सत नहीं यह बहू दिन भर घर के काम से ही फुर्सत नहीं पाती। वैसे हमने इसकी ट्यूशन लगा रखी है। पता नहीं क्या पढ़ातीं हैं इसकी ट्यूशन टीचर कल जाकर बात करती हूं। नेहा सभी के सामने शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, और इस शर्मिंदगी का कारण बहू की लापरवाही बता रही थी। तब तक चाय नाश्ता तैयार हो गया था। सभी ने चाय नाश्ता किया। सभी बहने अपने अपने घर चली गईं। 

 नेहा का आज पारा हाई था उसकी बेज्जती हो गई थी नाती और बहू की वजह से। शाम को खाने के वक्त नेहा ने अपने पति से कहा बहू से काम नहीं होता है आज तो हद कर दी। धैर्य (नाती) की स्कूल कॉपी में काम ही नहीं हो रहा है बताओ देखती ही नहीं है यह, बहू की शिकायत करते हुए नेहा ने कहा। नेहा के पति चुपचाप खाना खाते रहे कुछ बोले नहीं। 

नेहा दूसरे दिन सुबह सत्संग के लिए तैयार हो रही थी तभी नेहा के पति ने उससे पूछा कहां जा रही हो? नेहा ने बड़े अचरज भरी नजरों से पति को घूरा कि कहां जाती हूं प्रतिदिन? सत्संग, पति ने कहा। हां और कहां? नेहा ने जबाव देते हुए कहा। सत्संग का मतलब जानती हो नेहा? पति ने मुस्कराते हुए पूछा। हां हां क्यों नहीं अच्छी संगत अच्छे लोगों के साथ बैठना उठना सही राह पर चलना ही सत्संग है, आज आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं? नेहा ने पति की ओर आश्चर्य भरी नजरों से देखते हुए कहा। 

 नेहा जिस तरह से एक मछली पूरा जीवन पानी में रहती है फिर भी उसके पास से दुर्गंध नहीं जाती है उसी प्रकार हम रात दिन भजन संध्या में लीन रहें अगर अपने कर्मों को सही से नहीं करेंगे व्यर्थ है हमारा सत्संग। मैने कौन से कर्म खराब किये हैं नेहा ने गुस्से में आ गई थी। मैंने कब कहा तुम्हारे कर्म खराब हैं? नेहा के पति ने नेहा के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा। फिर क्या कहना चाहते हो आप नेहा ने कंधे से हाथ को झिड़कते हुए अपने पति से पूछा‌? नेहा पहले एक गिलास पानी पिओ और मेरे कुछ सवालों के जबाव शांति से दो, पति ने नेहा को बड़े प्यार से सोफे पर बैठाते हुए उसके हाथ में पानी का गिलास थमाते हुए कहा। तुम्हारी बेटी तुम्हारे कितने काम में हाथ बंटाती थी नेहा? पति ने पूछा। वह कितने बजे सोकर उठती थी? उसे तो तुमने कभी नहीं टोका? जब तक उसकी शादी नहीं हुई तुमने कितना सत्संग किया?  नेहा 

तब भी तो घर के सारे काम करतीं थीं? पति एक के बाद एक सवाल करते जा रहे थे और नेहा शांत होकर पति को निहार रही थी।

मैं यह नहीं कह रहा कि तुम सत्संग बिल्कुल ही न करो, वह भी करो मगर जिस की तुम भक्ति करती हो वही तुम्हारे भगवाने कृष्ण स्वयं गीता में कहा है -कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

 अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर।

पति- नेहा, बहू भी हमारी बेटी ही तो है, वह भी हमारी बेटी की तरह से अपने घर की जिम्मेदारी उठाती हुई तो नहीं आई होगी? वह भी अपनी मां के घर देर से ही उठती होगी? फिर अचानक से अगर उस पर इतनी ढेर सारी एक साथ जिम्मेदारी डाल दोगी तो क्या होगा? समझने की कोशिश करो नेहा। क्या तुम्हारा फर्ज नहीं कि उसके कामों में हाथ बंटवाओ? क्या धैर्य तुम्हारा नाती नहीं है? इसके होमवर्क से लेकर इसको तैयार करवाने में क्या तुम्हें सहयोग नहीं करना चाहिए? नेहा के पति सवालों के बाद खुद ही उत्तर देते जा रहे थे।

पति की बातें सुनकर नेहा को लगने लगा जिस सत्संग को सुनने के लिए मैने अपना पूरा जीवन निकाल दिया उससे ज्यादा कीमती सत्संग को तो मैं अपने हाथों से ही गंवा रही थीं। उसने सत्संग का थैला कंधों से उतार लिया और अपने नाती का बस्ता उठा लिया। उसने बहू को आदेश दिया जा धैर्य को मेरे पास भेज दे मैं उसे तैयार करके आज स्कूल छोड़ने जाऊंगी। लेकिन मम्मी आप सत्संग के लिए लेट हो जाओगी बहू ने चिंतित होते हुए कहा। नहीं देर हो जाती अगर आज तेरे पापा ने मुझे सही सत्संग का सही अर्थ न समझाया होता। आज से इन दोनों की जिम्मेदारी मेरी है तू बस मेरा सहयोग करेंगी। और हां तू कह रही थी न कि तुझे पार्लर का काम सीखना है? आज से चली जाना मैं हूं इन्हें संभालने के लिए। नेहा की बातें सुनकर बहू की आंखें भर आईं। जी मम्मी कहते हुए वह चहकती हुई दौड़कर अपने कमरे की ओर चली गई। इधर नेहा ने अपने नाती को तैयार किया और उसे लेकर सत्संग की जगह स्कूल चल दी।

(कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती है और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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