योगेन्द्र सिंह छोंकर
अभाव के ईंधन से
भूख की आग में जलते
इंसानों की देख
बेबसी
क्यों नहीं बरसती
दो खामोश ऑंखें
अभाव के ईंधन से
भूख की आग में जलते
इंसानों की देख
बेबसी
क्यों नहीं बरसती
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर जो बेखुदी न दे पाया तेरा मयखाना साकी दे गईं दो खामोश ऑंखें
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