योगेन्द्र सिंह छोंकर
जो बेखुदी
न दे पाया
तेरा मयखाना साकी
दे गईं
दो खामोश ऑंखें
जो बेखुदी
न दे पाया
तेरा मयखाना साकी
दे गईं
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर पीने को दो घूँट जो रोपी अंजुली उसके गोल घड़े के सामने पाया घड़ा खाली है हर […]
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