कुम्हेर का किला महाराजा सूरजमल की फौलादी शक्ति का जीता जागता प्रमाण है। इस किले ने अपनी मजबूती और अजेयता हर बार साबित की थी। यही वजह थी कि अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय और खांडेराव होलकर के आक्रमण के समय सूरजमल ने इसी किले के प्राचीरों को ही अपने लिए सुरक्षित समझा। हर बार यह किला सूरजमल के लिए सौभाग्यशाली रहा।
महारानी किशोरी के नाम पर रखा है नाम
इस किले का नाम महारानी किशोरी के नाम पर किशोरी महल रखा गया था। भरतपुर के किले में भी किशोरी महल है लेकिन महारानी के जीवन के तमाम उतार चढ़ाव जितने इस किले ने देखे उतने भरतपुर के किशोरी महल ने नहीं देखे होंगे। इस किले की नींव महाराजा सूरजमल ने 1726 ईस्वी में रखी थी। यह किला करीब आठ वर्ष में बनकर पूर्ण हुआ।
सात मंजिला किले में हैं सात चौक
यह किला सात मंजिल का है। इन सात मंजिलों में से चार मंजिले तो घूमने के दौरान आसानी से दिखती हैं। एक मंजिल नीचे तहखाने में भी दिखाई देती है। ऐसे में इसकी पांच मंजिले तो हर पर्यटक देख सकता है। पर यहां के निवासियों का मानना है कि इस किले में सात मंजिले हैं। शेष दो मंजिले भी भूमिगत तहखानों में हैं। ऐसा संभव हो भी सकता है। अब बात करते हैं किले में चौकों की संख्या की। इस किले में कुल सात विशाल आंगन हैं। इन आंगनों को चौक कहते हैं। हर चौक के चारों ओर चार मंजिला भवन बने हुए हैं। इन भवनों की खासियत यह है कि ये सातों चौक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यानी यहां रहने वाला व्यक्ति कभी भी महल के किसी भी हिस्से से दूसरे हिस्से में आ जा सकता था।
आज भी मजबूत है किले की इमारत
मुख्यद्वार से प्रवेश करने पर बायीं तरह एक ऊंचा चबूतरा है जिसके दो तरह तिबारी बनी हुई हैं। यह स्थान आम दरबार के तौर पर प्रयोग होता था। मुख्यद्वार के दायीं तरफ से किले के अंदर के मुख्यभवन में जाने का रास्ता है। यहां एक सैयद की मजार बनी हुई है। किले के भीतर लंबे चौड़े आंगन हैं। इन आंगनों के चारों तरफ चार मंजिला भवन बने हुए हैं। इन भवनों के खंभों और छजलियों के पत्थर पर शानदार नक्काशी की गई है। इस किले की अधिकांश इमारत अभी बेहद मजबूत दशा में है।
सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था किला
यह किला सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। सूरजमल के समय पर यहां रहकला, हथनाल, गजनाल, सुतरनाल और जुजर्वा आदि हथियार ढाले जाते थे। इस किले की बाहरी दीवारें इतनी ऊंची और मजबूत थीं कि दुश्मन के पास इन्हें तोड़ने लायक तोपें ही नहीं थीं। इस किले के अंदर भूमिगत अस्तबल भी था जहां युद्ध के समय घोड़े भी सुरक्षित रह सकते थे।
कुम्हेर के जलमहल हैं दर्शनीय
किला अत्यंत विशाल है। इसकी बाहरी दीवार के अंदर इतना क्षेत्र आता था कि आज यहां एक विद्यालय, तहसील भवन और कोर्ट आदि यहां बने हुए हैं। किले के पीछे कुएं वाली चामड़ (देवी) का मन्दिर है। किले के पीछे पक्का तालाब है। इस तालाब के किनारे तीन मंजिला जलमहल बने हुए हैं। इस तालाब के दूसरे तट पर भैरव का एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर बना है।जलमहलों की इमारत बहुत मजबूत है और आज भी अच्छी हालात में है। इन जलमहलों की मरम्मत का कार्य अभी चल रहा है। किले के अंदरूनी हिस्सों की थोड़ी बहुत मरम्मत की सरकार ने कराई है। यह सभी प्रयास अच्छे तो कहे जा सकते हैं पर इस विशाल दुर्ग के जीर्णोद्धार के लिए नाकाफी हैं।
इसी दुर्ग के दम पर दी थी अब्दाली को चुनौती
यह कुम्हेर का ही किला था जिसकी मजबूती पर सूरजमल की इतना भरोसा था कि उसने ईरान के शाह अहमदशाह अब्दाली को चुनौती दे डाली थी। दिल्ली को बुरी तरह रौंद कर अब्दाली मथुरा की ओर बढ़ा था। सूरजमल ने ब्रज प्रदेश को अब्दाली के कहर से बचाने के लिए जवाहर सिंह को भेजा था। जवाहर सिंह अपने दस हजार सिपाहियों के साथ अब्दाली की फौज के साथ चौमुहां पर वीरतापूर्वक लड़ा। जवाहर सिंह के अधिकांश साथी इस युद्ध में वीरगति की प्राप्त हुए। उस समय सूरजमल उत्तर भारत के सर्वाधिक समृद्ध शासक थे। अब्दाली उनसे धन वसूलना चाहता था। वह सूरजमल के राज्य पर हमले के इरादे से ही दिल्ली से आगे बढ़ा था। वक्त की नाजुकता देखकर सूरजमल ने कुम्हेर के किले में रहकर अब्दाली का सामना करने की तैयारी की थी। अब्दाली ने सूरजमल से धन की मांग की। बदले में सूरजमल ने उसे चुनौती दी कि वह उसपर आक्रमण करे। सूरजमल को कुम्हेर के किले की मजबूती पर इतना भरोसा था कि उसने अब्दाली से यह तक कह दिया कि आप आक्रमण करो ताकि मेरे किले की मजबूती की परीक्षा हो सके।अब्दाली इस किले पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर पाया।
इसी किले ने चूर किया था होलकर का घमंड
इस किले पर एक बार मराठों ने घेराबंदी की। मराठों के सरदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खांडेराव होलकर के नेतृत्व में यह अभियान हुआ। खांडेराव बड़े ही घमंड के साथ दक्षिण से आया था। वह इस किले को ध्वस्त करके सूरजमल को पराजित करना चाहता था। लेकिन जब वह यहां पहुंचा तो मैदान में बने इस किले की सपाट दीवारों की ऊंचाई और मजबूती देखकर दंग रह गया। उसने किले की घेराबंदी की। सूरजमल उस समय इसी किले में थे। खांडेराव ने किले के चारों तरफ खन्दक खुदवाई। इस खंदकों में तोपें रखकर किले पर गोले बरसाए गए। पर इन गोलों की मार किले को नुकसान नहीं पहुंचा पाई। तब खांडेराव ने इस किले को तोड़ने के लिए खास लम्बी दूरी तक मार करने वाली तोपों की मांग आगरा के किलेदार से की। उस समय उत्तर भारत में ऐसी तोपें सिर्फ आगरा के किले में थीं। किलेदार ने बादशाह की अनुमति के बिना तोपें देने से इनकार कर दिया।
इसी किले से चली तोप से हुई खांडेराव की मृत्यु
महीनों के घेरे के बाद एक दिन खांडेराव खंदकों का निरीक्षण करने निकला। उसी समय कुम्हेर के किले से एक तोप ने गोला दाग दिया। गोला सीधे जाकर खांडेराव की पालकी में लगा और खांडेराव की मौत हो गई। यह खांडेराव प्रसिद्ध महिला शासक अहिल्याबाई होलकर के पति थे। खांडेराव की मृत्यु के बाद उसके पिता मल्हारराव होलकर ने सूरजमल के राज्य को नष्ट करने की प्रतिज्ञा की। वह समय सूरजमल के लिए बहुत कठिन था। पूरे हिंदुस्तान में उसका कोई हिमायती नहीं था जो मराठों के खिलाफ जाकर उसकी मदद कर सके।
महारानी किशोरी बनीं संकटमोचक
इस विकराल परिस्थिति को इस किले ने भोगा पर हिम्मत नहीं हारी। इसकी दीवारें अजेय बनकर खड़ी थीं। समस्या का हल भी इसी किले के भीतर से निकला। जिस महारानी किशोरी के नाम पर यह किला किशोरी महल कहलाता है उन्हीं ने इस संकट का हल सुझाया। दूसरे संकटमोचक की भूमिका में आये राजगुरु रूपराम कटारा। राजगुरु और महारानी ने मन्त्रणा कर मराठा सरदार सिंधिया से मैत्री के प्रयास किए। सूरजमल की ओर से मैत्री के प्रस्ताव को लेकर रूपराम कटारा का पुत्र तेजराम कटारा सिंधिया के शिविर में गया और सिंधिया को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गया। धीरे धीरे माहौल सूरजमल के पक्ष में होने लगा और मल्हारराव को अपनी जिद छोड़कर सूरजमल के साथ समझौता करना पड़ा। इस तरह कुम्हेर का किला एक बार फिर सूरजमल के लिए भाग्यशाली साबित हुआ।
नजफ़ खान का किले पर कब्जा और महारानी किशोरी
यह कथा थोड़े समय बाद की है। सूरजमल के सबसे छोटे पुत्र रणजीत सिंह शासक थे। नजफ़ खान मुग़ल बादशाह शाह आलम का सेनापति था। वह समय भरतपुर राज्य के लिए बहुत विपरीत था। कई योग्य शासक और सरदार काल कलवित हो चुके थे। राज्य परिवार भी आंतरिक कलह से जूझ कर चुका था। रणजीत सिंह को नजफ़ खान के सामने से डीग छोड़कर हटना पड़ा था। रणजीत सिंह कुम्हेर के किले में थे। नजफ़ खान का पक्ष भारी था। भरतपुर राज्य लम्बा युद्ध भोगने के बाद कमजोर हो गया था। किले में पर्याप्त युद्ध सामग्री और भोजन तक नहीं था। मजबूर होकर एक रात को रणजीत सिंह कुम्हेर के किले से निकल गए। महारानी किशोरी तब तक बहुत बुजुर्ग हो चुकी थीं। उन्हें मुग़ल सैनिकों ने पकड़ लिया। महारानी किशोरी को नजफ़ खान के सामने लाया गया। महारानी के प्रति आदर दिखाते हुए मुग़ल सेनापति ने उनका सम्मान किया और कुम्हेर का किला उनके निवास के लिए उन्हें वापस सौंप दिया। महारानी किशोरी के प्रयास से ही रणजीत सिंह और मुगलों के बीच संधि हो गई। जिसके बाद रणजीत सिंह को भरतपुर का किला और सात लाख की जागीर मिली। यह रणजीत सिंह के लिए टर्निंग पॉइंट था। रणजीत सिंह एक बार फिर से अपने पूर्वजों की विरासत हासिल करने में कामयाब हो सके। इसलिए निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि भरतपुर राज्य के लिए कुम्हेर का किला सर्वाधिक भाग्यशाली साबित हुआ है।