दो खामोश आंखें – 31

योगेन्द्र सिंह छोंकर
मंदिर हो
या कोई मजार
किसी नदी का पुल हो,
कटोरा किसी भिखारी  का
या शाहजहाँ की कब्र
एक ही भाव सिक्का फैंकती है
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 30

योगेन्द्र सिंह छोंकर ज़बर के जूतों तले मसली जाने के बाद ज़माने के साथ साथ खुद अपनी आँखों से भी […]

मत देख नज़र तिरछी करके

 योगेन्द्र सिंह छोंकर मत देख नज़र तिरछी करके मैं होश गंवाने वाला हूँ! अब तक मैं अनजान रहा कुदरत की इस नेमत से पा […]

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