मत देख नज़र तिरछी करके

 योगेन्द्र सिंह छोंकर
मत देख नज़र तिरछी करके
मैं होश गंवाने वाला हूँ!
अब तक मैं अनजान रहा
कुदरत की इस नेमत से
पा प्रेम प्रसून पल्लव पोरों से
प्रेमिल हो जाने वाला हूँ!
रहा सदा से आदि मैं
टक्कर और प्रहारों का
कातिल के कोमल कंगने से
घायल हो जाने वाला हूँ!
चूमा न कभी कोई बुत
अब तक के जीवन में
लेकर बोसा प्यारी पलकों का
काफ़िर हो जाने वाला हूँ!
जादू से भरी मदमस्त बड़ी
अंजन से सजी तेरी ऑंखें
ज़रा पलक झुका ए होशरुबा
मैं तेरा चाहने वाला हूँ!
मिश्री की डाली और शहद मिली
सुनने में भली तेरी बोली
दो बोल सुना छोंकर हंसकर
मैं रुखसत होने वाला हूँ! 

दो खामोश आंखें – 31

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दो खामोश आंखें पीठ में सुराख किये जाती हैं

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