योगेन्द्र सिंह छोंकर
ज़बर के
जूतों तले
मसली जाने के बाद
ज़माने के साथ साथ
खुद
अपनी आँखों से भी
गिर जाती हैं
दो खामोश ऑंखें
ज़बर के
जूतों तले
मसली जाने के बाद
ज़माने के साथ साथ
खुद
अपनी आँखों से भी
गिर जाती हैं
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर चंद गहने रुपये रंगीन टीवी या किसी दुपहिया की खातिर जल भी जाती हैं दो खामोश ऑंखें
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