दो खामोश आंखें – 30

योगेन्द्र सिंह छोंकर
ज़बर के
जूतों तले
मसली जाने के बाद
ज़माने के साथ साथ
खुद
अपनी आँखों से भी
गिर जाती हैं
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 29

योगेन्द्र सिंह छोंकर चंद गहने रुपये रंगीन टीवी या किसी दुपहिया की खातिर जल  भी जाती हैं दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 31

योगेन्द्र सिंह छोंकर मंदिर हो या कोई मजार किसी नदी का पुल हो, कटोरा किसी भिखारी  का या शाहजहाँ की कब्र एक […]

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