काला धन (नोटबंदी का भुगता खामियाजा)

कहानी

पायल कटियार

कमला अपने पैसों को किसी डिब्बे में तो किसी अलमारी के बिछे कागजों के नीचे तो कभी तकियों के गिलाफ में छिपा-छिपाकर रखती थी। यह बात उनके घर के किसी भी सदस्य को पता न थी। यहां तक कि इस बात की भनक उन्होंने अपने जीवनसाथी को भी लगने  न दी थी। वजह क्या थी यह तो उनसे बेहतर अगर कोई बता सकता है तो हर वह अनपढ़ महिला जो ऐसे पैसों को अपने आड़े वक्त के लिए बचा कर रखती है। उसे पता है कि इन पैसों की जरूरत कब और न जाने कैसे पड़ जाए और उस पैसे से हम अपनी मुसीबतों से निकल सकें। 

कमला के जीवन में हुआ भी कुछ ऐसा ही पति की अचानक मौत ने उसे पूरी तरह से तोड़कर रख दिया था। बुजुर्ग कमला चार-चार बेटों के साथ होते हुए वह असहाय थी। पति की कफन काठी से लेकर मरने के बाद होने वाले सारे कर्मकांड का खर्चा भी उसे स्वयं उठाना पड़ रहा था। चार बेटे चार बहुएं लेकिन जब बात खर्चे की आती तो चारों एक दूसरे का मुंह देखने लगते थे। परेशान न हो- मैं दे रही हूं- कहते हुए वह अपनी जमा पूंजी खर्च कर रही थी। बिना किसी के आगे हाथ फैलाए आराम से अपना बचा जीवन जी रही थी वह वृद्ध महिला। 

बेटे बहू की शादी की सालगिरह हो या नाती पोतों का जन्मदिन या फिर कोई तीज त्यौहार सब अपनी जेब से खर्च करना होता था। मां के पास पैसे कहां से आएंगे इस बात से बेटे बहू को कोई सरोकार न था। बस उन्हें तो उससे हमेशा कुछ न कुछ लेने की ख्वाइश बनी ही रहती थी। कमला के पास जीवन यापन का कोई सहारा न था। पति एक प्राईवेट कंपनी में काम करते थे। वह भी अचानक एक एक्सीडेंट में मर गए। कंपनी ने भी यह कहकर सहयोग नहीं किया कि यह एक एक्सीडेंट केस है यह तो बीमा कंपनी का ही काम है ऐसे में कोई सहायता नहीं मिल सकती। फैक्ट्री में काम करते हुए अगर मौत होती तो शायद हम मदद करते। सब्र करके बैठ गई थी बेचारी करती भी तो क्या?

समाज में सब देखने वाले और मजे लेने वाले होते हैं लेकिन किसी के दर्द को महसूस कर सकें ऐसे बहुत कम ही होते हैं। ऐसे में उस बुजुर्ग महिला ने अपना जीवन जीने के लिए छोटे मोटे काम, जो घर बैठकर आसानी हो सकें, करना शुरू कर दिया ताकि उसका गुजारा चलता रहे। वहीं आड़े वक्त के लिए अगर उसके पास  कुछ सहारा था तो वह उस समय की जमा पूंजी थी जो उसने अपने पति के जीवित रहते यहां वहां छिपाकर रखी हुई थी। उसे न पता था सरकार क्या कर सकती है उसकी बची हुई जमा पूंजी को भी एक झटके में छीन सकती है। 

वह आज भी उस दिन को काला दिन ही कहती है जिस दिन नोटबंदी हुई थी। वह नहीं जानती जिसे कोस रही है वह प्रधानमंत्री है या राष्ट्रपति। बस उसे इतना मालूम था कि जिसने भी नोटबंदी की उसने मेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया। क्योंकि उस नोटबंदी में उसने अपने चुन-चुनकर उन सभी पैसों को अपने बेटों के सामने लाकर रख दिया जो उसने उनसे छिपाकर रखे थे। महिला बैंक की भीड़ में जाकर नोट बदलने की हालत में न थी और मोहमाया के चलते किसी अन्य पर भरोसा कर सकती थी। उसकी मजबूरी थी कि उसे सब जमापूंजी को बेटों को सौंपना पड़ा, बच्चों से गुहार की कि वह किसी तरह से यह नोट बैंक में जमा करवा दें। नोट तो जमा हो गए लेकिन अब उसकी मुसीबत असली मायने में शुरू हुई थी। कमला की जमा पूंजी अब बेटा बहुओं के सामने आ चुकी थी। बच्चों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। अब बहू बेटों का असली रूप सामने आना शुरू हो गया। नोट देखकर बेटे बहुओं के मुंह में पानी आना शुरू हो गया। किसी को अपने बेटे की फीस भरनी थी तो किसी को अपने मकान में लगाना जरूरी था। नाती बाइक लेने की जिद कर रहा था तो बहुओं की अपनी-अपनी फरमाइशें। कुल मिलाकर उसकी जमा पूंजी को छीनने की जुगत लगाने में लगे रहते थे। यहां तक कि बच्चों की छोटी सी सी बीमारी पर भी अब इलाज और दवा के लिए भी मां से पैसे मांगे जाते थे। 

मां बहाना भी न बना सकती थी कि मेरे पास पैसे कहां से आए? धीरे-धीरे सभी बच्चों ने कमला को तंग करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी जमा पूंजी पूरी तरह से समाप्त हो गई। अब वह जब भी बीमार पड़ती अपने बेटों से दवा लाने के लिए गुहार लगाती मगर सब एक दूसरे की कहकर टाल देते। दिन रात रोते हुए बस यही कहती कि आज जब उसका काला धन ठिकाने लग गया तो अब उसे दवा लेकर देने वाला भी कोई नहीं है।

पायल कटियार

(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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