दो खामोश आंखें – 20 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर जी जाऊं पी विसमता विष रस समता बरसाऊँ रहे सदा से रोते जो उनको जाय हसाऊँ जो एक बार फिर से देख पाऊँ दो खामोश ऑंखें
साहित्य दानलीला का निहितार्थ:-ब्रज सम्पत्ति का संरक्षण और रस संवर्धन Yogendra Singh Chhonkar 26th September 2023 0 यामिनी कौशिक श्री कृष्ण लीला में जो रस संचरण हुआ है वह दान लीला के कारण हुआ है। प्राय: जैसा कि कहा जाता है कि […]
साहित्य श्री शिव चालीसा Yogendra Singh Chhonkar 29th April 2020 0 ।।दोहा। । श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल […]
साहित्य कभी आबाद घर यां थे Yogendra Singh Chhonkar 18th July 2020 0 जहां वीराना है, पहले कभी आबाद घर यां थे, शगाल अब हैं जहां बसते, कभी रहते बशर यां थे। जहां फिरते बगूले हैं, उड़ाते खाक […]
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