दो खामोश आंखें – 20 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर जी जाऊं पी विसमता विष रस समता बरसाऊँ रहे सदा से रोते जो उनको जाय हसाऊँ जो एक बार फिर से देख पाऊँ दो खामोश ऑंखें
साहित्य कार्तिक शुक्ला दशमी: मथुरा का कंस मेला Yogendra Singh Chhonkar 31st October 2025 0 गोपाल शरण शर्मा (साहित्यकार) ब्रज संस्कृति आस्था,समर्पण और समन्वय की संस्कृति है। यह संस्कृति त्याग, वैराग्य की नही प्रेम-अनुराग और जीवन के समस्त रसों से […]
साहित्य स्टीम नेविगेशन के क्षेत्र में भारतीय व्यापारियों के संघर्ष की अनकही कहानी : सागर के सेनानी Yogendra Singh Chhonkar 3rd April 2023 0 सागरिक परिवहन का किसी भी राष्ट्र की सामरिक और व्यापारिक प्रगति के क्षेत्र में बड़ा योगदान होता है। यूरोपियन लोगों ने अपनी इसी सागरिक क्षमता […]
साहित्य दो खामोश आंखें – 18 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर देख बर्तन किसी गरीब के चढ़ते सट्टे की बलि आखिर क्यों नहीं सुलगती दो खामोश ऑंखें