दो खामोश आंखें – 20

योगेन्द्र सिंह छोंकर
जी जाऊं
पी विसमता विष
रस समता बरसाऊँ
रहे सदा से
रोते जो
उनको जाय हसाऊँ
जो एक बार
फिर से देख पाऊँ
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 19

योगेन्द्र सिंह छोंकर उमड़ते मेघ सावनी दमकती चपल दामिनी मंद शीतल बयार बारिश की फुहार कुदरत का देख रूमानी मिजाज़ […]

दो खामोश आंखें – 21

योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती […]

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