भारत की सीमा में समुद्र में कुल 1208 द्वीप हैं जो भारत का ही हिस्सा हैं। अंडमान और निकोबार को तो आप बखूबी जानते होंगे जो आज एक केंद्र शासित प्रदेश है, अंग्रेजों के समय पर इसे काला पानी के नाम से जाना जाता था। अंडमान और निकोबार में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में 349 द्वीप हैं इनमें से एक है नार्थ सेंटिनल आइलैंड।
नार्थ सेंटिनल आइलैंड : भारत के इस टापू पर रहते हैं आदिमानव युग के आदिवासी
हाल ही में इस आइलैंड पर एक अमेरिकी पर्यटक की हत्या होने के कारण यह चर्चा में है।
आपको यह जानकर हैरत होगी कि अंडमान और निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से महज 50 किमी दूर स्थित इस आइलैंड पर रहने वाली आदिवासी वर्तमान सभ्यता से 50 हजार वर्ष पीछे का जीवन जी रहे हैं। दक्षिणी अंडमान प्रशासनिक जिले के अंतर्गत आने वाले इस आइलैंड के निवासियों का शेष संसार से कोई संपर्क तक नहीं है। इन आदिवासियों को अपनी प्राइवेसी इतनी पसन्द है कि इस आइलैंड पर बाहरी दुनिया से पहुंचने वाली हर व्यक्ति पर वे लकड़ी के तीरों और पत्थर से औजारों से हमला कर देते हैं। हाल ही में जॉन एलन चाऊ नाम के अमेरिकी पर्यटक की हत्या भी इसी कड़ी में हुई है।
शेष संसार से अलग किस तरह रहते हैं ये आदिवासी
सेंटिनली आदिवासी आज भी सभ्यता विकास के क्रम में आधुनिक समाज से 50 से 60 हजार वर्ष पीछे की जिंदगी जी रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि ये लोग आज भी पाषाण काल में रह रहे हैं तो भी गलत नहीं होगा। कृषि से ये लोग अनजान हैं। कपड़े पहनना अभी इन्होंने सीखा नहीं है। जंगली फल, नारियल और सी फ़ूड इनका आहार है। ये लोग बाहर से जाने वालों पर जिस तरह से पत्थर और लकड़ी से हथियारों से हमलावर होते हैं उससे साफ है कि इनका ताम्र युग आना अभी शेष है।
सेंटिनली आदिवासियों की नस्ल और जनसंख्या
सेंटिनली आदिवासी लोग प्री-नियोलिथिक समूह के हैं। अनुवांशिक रूप से ये लीग निग्रितो श्रेणी के हैं और इनकी भाषा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ये लोग अफ्रीकी लोगों से मिलते जुलते प्रतीत होते हैं। जनसंख्या की बात करें तो कोई जनगणना अधिकारी रजिस्टर लेकर तो गिनती करने गया नहीं था अतः स्पष्ट आंकड़ा तो है नहीं। 2011 कि जनगणना में इनकी संख्या 12 पुरुष और 3 महिला की थी। जो उस समय हेलीकॉप्टर द्वारा देखे गए थे। यह संख्या अधिक भी हो सकती है। लेकिन पिछली सदी के मुकाबले अब ये बहुत कम ही बचे हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या 40 से 100 के बीच हो सकती है। चूंकि ये आदिवासी वर्तमान सभ्यता से बहुत पीछे हैं इसलिए इनपर कोई भी अपराध के लिए मुक़दमा भी नहीं चलाया जा सकता।
रोगप्रतिरोधक क्षमता के मामले में कमजोर
सेंटिनली आदिवासियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है। इसलिए बाहरी संसार के किसी भी व्यक्ति के संपर्क में आने के कारण उन्हें किसी भी तरह का कोई संक्रमण हुआ तो इन आदिवासियों की जान जा सकती है। यही वजह है कि सरकार ने भी इनके द्वीप पर किसी के भी जाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था।
बाहरी दुनिया द्वारा इनसे सम्पर्क के प्रयास
बाहरी दुनिया को इनके बारे में 1880 में पता चला। उस समय ब्रिटिश नौसेना के अधिकारी मॉरीश वीडल पोर्टमैन ने इनसे संपर्क करने की कोशिश की थी। पोर्टमैन ने कई सेंटिनली आदिवासियों को पकड़ लिया। लेकिन बाहरी दुनिया के लोगों के संपर्क में आने के चलते मामूली संक्रमण के चलते दो आदिवासी मर गए तो पोर्टमैन ने इन्हें वापस इनके आइलैंड पर इन्हें छोड़ दिया।
साल 2004 में भारत के पूर्वी तट पर आई भयंकर सुनामी के बाद भारत सरकार का एक हेलीकॉप्टर इनकी खोज खबर लेने इनके टापू पर भेजा गया। हेलीकॉप्टर को देखते ही आदिवासियों ने उस पर तीर मारने शुरू कर दिए। हेलिकॉप्टर में गए लोगों के यह देखकर संतोष हुआ कि इतनी भंयकर सुनामी के बाद भी ये लोग सुरक्षित थे।
साल 2006 में इनकी भंयकरता का एक नजारा दुनिया के सामने आया। दो मछुआरे अपनी नाव लेकर इनके टापू से कुछ दूरी पर मछली पकड़ रहे थे। नींद आने पर मछुआरे नाव में सो गए और नाव का एंकर निकल जाने के कारण नाव बहकर इनके टापू के तट पर पहुंच गई। इन आदिवासियों ने उन दोनों मछुआरों को मौत के घाट उतार दिया।
सरकार ने इनकी कमजोर इम्युनिटी और शेष संसार से अलग रहने की भावना को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्य टापुओं के साथ प्रतिबंधित क्षेत्र आज्ञा पत्र की सूची में डाल कर यहां बाहरी व्यक्ति के प्रवेश की वर्जित कर दिया। हाल ही में अगस्त में सरकार ने इन टापू की प्रतिबंधित क्षेत्र आज्ञापत्र की सूची से इसे बाहर के दिया था। जिसके बाद विदेशी लोग सरकार की अनुमति से इन द्वीपों पर जा सकते थे।
क्या लोह युग में प्रवेश कर रहे हैं सेंटिनली आदिवासी?
यह एक बेहद रोचक तथ्य है। 1981 में एक शिप क्षतिग्रस्त होकर इस आइलैंड के उत्तरी तट पर पहुंच गया था। इस टूटे हुए जहाज की तस्वीर गूगल मैप पर भी दिखती है। पिछले समय के मुकाबले अब इस शिप का आकार अब घटता जा रहा है। मतलब समझे?
क्या सच में ये लोग शिप का लोहा टुकड़े टुकड़े कर ले रहे हैं? क्या अब ये उस लोहे का प्रयोग कर लोहे के हथियार विकसित करेंगे? ये मानव सभ्यता के विकास क्रम की उसी श्रृंखला से रहे हैं जिससे कभी हम मानवों के पूर्वज गुजरे थे। अगर ये दुर्लभ जनजाति जीवित रही तो क्या इन्हें वर्तमान सभ्यता जितना विकसित होने में सचमुच 50 हजार वर्ष का समय लगेगा??