दो खामोश आंखें – 21 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती या मुझे खिलाती दो खामोश ऑंखें
साहित्य श्री दुर्गा चालीसा Yogendra Singh Chhonkar 28th April 2020 0 नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि […]
साहित्य दो खामोश आंखें – 5 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर हो जाऊं जहाँ के लिए मसीहा या फिर कातिल मैं क्या हूँ जानती हैं बखूबी दो खामोश ऑंखें
साहित्य ब्रज की वर्त्तमान आतंरिक गतिकी – एक बाहरी अध्येता के नोट्स Yogendra Singh Chhonkar 21st August 2023 0 अमनदीप वशिष्ठ ब्रज में पिछले कुछ समय से एक संश्लिष्ट वैचारिक मंथन चल रहा है। इस वैचारिक मंथन का स्वरूप बहुत से कारकों से मिलकर […]