दो खामोश आंखें – 22

योगेन्द्र सिंह छोंकर जाकर मुझ से दूर न छीन पायीं मेरा सुकूं शायद इसलिए  मुझसे  दूर हो गयीं दो खामोश ऑंखें

दो ख़ामोश आंखें -24

योगेन्द्र सिंह छोंकर महबूबा की, मजलूम की, कवि की, किसान की, इंसान की भगवान की सबकी हैं दो खामोश ऑंखें

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