योगेन्द्र सिंह छोंकर
महबूबा की, मजलूम की,
कवि की, किसान की,
इंसान की
भगवान की
सबकी हैं
दो खामोश ऑंखें
महबूबा की, मजलूम की,
कवि की, किसान की,
इंसान की
भगवान की
सबकी हैं
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर मेरी ही बदकिस्मती थी जो न हो सका उनका मुझे अपना बनाना ही तो चाहती थी दो […]
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