गोवर्धन में मानसी गंगा की परिक्रमा


गोवर्धन ब्रजमंडल का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के गिरिराज पर्वत को ही श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाया था। यहां की हर पर्वत शिला और कुंड आदि के प्रति भक्तों की बड़ी आस्था है। यहां के कुंडों में सबसे पहला और मुख्य नाम आता है मानसी गंगा का। आज हम इसी मानसी गंगा के बारे में चर्चा करेंगे। इस कुंड के बारे में कहा जाता है कि इसमें स्नान किये बिना गिरिराज की परिक्रमा का फल नहीं मिलता।

आध्यात्मिक मान्यताएं

मानसी गंगा कुंड का दृश्य।



इस कुंड के प्रादुर्भाव को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक बार श्रीकृष्ण ने वृषभासुर दैत्य का वध किया था। चूंकि वह असुर वृषभ के रूप में आया था तो श्रीकृष्ण पर गोहत्या का पाप लगा। उस पाप के प्रायश्चित के लिए उन्हें गंगा स्नान करना था। श्रीकृष्ण ने अपने मन से पाप नाशिनी गंगा का प्राकट्य किया। वह मानसी गंगा कहलाई। एक अन्य मान्यता के अनुसार अपनी बहन यमुना पर श्रीकृष्ण का प्रेम देख गंगा को भी ब्रज में स्थान मिलने की आकांक्षा हुई। श्रीकृष्ण ने कृपा कर गंगा को ब्रज में स्थान दिया और मानसी गंगा का आगमन ब्रज में हुआ।

“गंगा हरि मानस सौ प्रकटी ब्रज में लहर लहर लहराय”

गिरिराज पर्वत के ऊपर स्थित है मानसी गंगा

मानसी गंगा कुंड का सूर्योदय के दृश्य।



गंगा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में धारण किया था। यहां गिरिराज ने मानसी गंगा को अपने ऊपर स्थान दिया है। यह कुंड बहुत विशाल है। इसके जल में तैरना बहुत खतरनाक होता है क्योंकि इसके नीचे तमाम पर्वत शिलाएं मौजूद हैं। कुंड का जलस्तर कम होने पर ये शिलाएं दिखतीं हैं।

आमेर के राजा भगवान दास ने बनवाये घाट

मानसी गंगा कुंड का विहंगम दृश्य।



यह कुंड लंबे समय तक एक कच्चे तालाब के रूप में रहा। आमेर के राजा भगवान दास ने इसके तट पर हरिदेवजी का विशाल मंदिर बनवाया था। उन्हीं ने इस कुंड के चारों ओर पक्के घाट भी बनवाए थे। ये राजा भगवान दास अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह के पिता थे। राजा मानसिंह ने भी इन घाटों का नवीनीकरण और जीर्णोद्धार कराया था। यह कुंड गोवर्धन नगर के मध्य में स्थित है। तीन कोस की परिक्रमा के रास्ते में पड़ता है। इसके चारों ओर तमाम मन्दिर बने हुए हैं। जिनमें भरतपुर के राजाओं द्वारा बनवाई गई कलात्मक छतरियां, रानी किशोरी का महल, किशोरी श्याम का मन्दिर आदि प्रमुख हैं।

सूरजमल ने यहीं मनाया था विजयोत्सव

मानसी गंगा के तट पर स्थित मुखारबिंद मन्दिर का दृश्य।



दिल्ली की लूट के बाद वापस लौटते समय भरतपुर के राजा सूरजमल यहां रुके थे। उन्होंने इस कुंड में दीपदान किया था। इसी कुंड के तट पर अपनी विनय के उपलक्ष्य में उन्होंने विजयोत्सव मनाया था। तभी महल खास का निर्माण भी कराया गया। यह रानी किशोरी के महल के नाम से प्रसिद्ध है। दुर्भाग्यवश यह अब नष्ट हो चुका है।

सनातन गोस्वामी और नन्ददास ने की थी साधना

मानसी गंगा के तट पर स्थित लक्ष्मीनारायण मन्दिर।



इसी कुंड के तट पर चैतन्य महाप्रभु के शिष्य सनातन गोस्वामी ने साधना की थी। संवत 1611 विक्रमी में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन उनका गोलोकवास हुआ। तब उनके शिष्यों ने अपने सिर मुंडवा कर सनातन गोस्वामी के पार्थिव शरीर को लेकर मानसी गंगा की परिक्रमा लगाई थी। आज भी आषाढ़ पूर्णिमा के दिन यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। दूर दूर से श्रद्धालु यहां परिक्रमा करने आते हैं। अष्टछाप के कवियों में से एक नन्ददास जी भी इसी कुंड के तट पर स्थित मनसा देवी मंदिर के पास अश्वत्थ वृक्ष के नीचे पर्णकुटी में निवास करते हुए साधना करते थे।

राजा हठी सिंह कुंतल ने कराया था मनसा देवी के मन्दिर का पुनर्निर्माण

मानसी गंगा के तट पर स्थित मुखारबिंद मन्दिर प्रवेश द्वार।



हठी सिंह कुंतल जाट जागीरदार थे। इनके पूर्वज शुरू से सौंख की गढ़ी के शासक रहे थे। हठी सिंह कुंतल दिल्ली के राजा रहे अनंगपाल तोमर के वंशज थे। औरंगजेब के समय पर यहां स्थित मनसा देवी का मन्दिर ध्वस्त कर दिया गया था। मनसा देवी हठी सिंह की कुल देवी थीं। हठी सिंह ने मनसा देवी के ध्वस्त मन्दिर को फिर से भव्य रूप दिया।

मानसी गंगा के तट पर स्थित दर्शनीय स्थान

मानसी गंगा पर स्थित किशोरी श्याम मन्दिर।



मानसी गंगा के तट पर हर और तमाम महत्त्वपूर्ण धर्मस्थल मौजूद हैं।

मानसी गंगा के पूर्व में

मानसी गंगा स्थित हरदेवजी मन्दिर।



श्रीगिरिराज जी मुकुट-मुखारबिंद, प्राचीन लक्ष्मीनारायण मन्दिर, किशोरी श्याम मन्दिर, गिरिराज मन्दिर, महाप्रभु बैठक और राधा कृष्ण मंदिर।

मानसी गंगा के पश्चिम में



गिरिराज महाराज (साक्षी गोपाल) मंदिर, विश्वकर्मा मन्दिर और राधा कृष्ण मन्दिर।

मानसी गंगा के उत्तर में



राधा बल्लभ मन्दिर, नरसिंह मंदिर, श्यामसुंदर मन्दिर, बिहारी जी मन्दिर, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्रीनाथजी मन्दिर, नन्दबाबा मन्दिर, राधारमण मन्दिर, अद्वैत बाबा की भजन कुटी, राधा गोविंद भागवत भवन, चकलेश्वर महादेव मंदिर, महाप्रभु मन्दिर, रास कुंड, झूलन क्रीड़ा स्थान और सिद्ध हनुमान मंदिर।

मानसी गंगा के दक्षिण में



हरदेवजी मन्दिर, ब्रह्म कुंड मन्दिर, मनसा देवी मंदिर, गोरे दाऊजी मन्दिर, गंधेश्वर महादेव मंदिर, यमुना मोहन मन्दिर और बिहारी जी मन्दिर।


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