योगेन्द्र सिंह छोंकर
देख
बर्तन
किसी गरीब के
चढ़ते सट्टे की बलि
आखिर
क्यों नहीं सुलगती
दो खामोश ऑंखें
देख
बर्तन
किसी गरीब के
चढ़ते सट्टे की बलि
आखिर
क्यों नहीं सुलगती
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर करने को सुबह शाम क्यों देती हो होठों को थिरकन हो जाएगी दिन से रात जो एक […]
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