दो खामोश आंखें – 18 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर देख बर्तन किसी गरीब के चढ़ते सट्टे की बलि आखिर क्यों नहीं सुलगती दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 4 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर तेरी हैं या मेरी हैं या हैंं किसी और की किसकी हैं ये तो खुद भी नहीं जानती दो खामोश ऑंखें
साहित्य सपना – एक महिला के अंतहीन संघर्ष की गाथा Yogendra Singh Chhonkar 29th August 2023 0 कहानी पायल कटियार कभी कभी जिंदगी वह सब करने के लिए मजबूर कर देती है जिसे मनुष्य करना नहीं चाहता है। लेकिन कहते हैं मजबूरी […]
साहित्य दो खामोश आंखें पीठ में सुराख किये जाती हैं Yogendra Singh Chhonkar 4th March 2011 1 योगेन्द्र सिंह छोंकर दो खामोश ऑंखें मेरी पीठ में सुराख़ किए जाती हैं! माना इश्क है खुदा क्यों मुझ काफ़िर को पाक किए जाती हैं! भागता हूँ […]