दो खामोश आंखें – 17 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर करने को सुबह शाम क्यों देती हो होठों को थिरकन हो जाएगी दिन से रात जो एक बार पलक झुका लें दो खामोश ऑंखें
साहित्य बनी ठनी प्रेमकथा से चित्रकला तक Yogendra Singh Chhonkar 13th October 2021 0 भारतीय चित्रकला की लघु चित्र शैली के जानकारों में ऐसा कौन होगा जो ‘बनी-ठनी’ को न जानता हो! पर वह महिला जो इस शैली की […]
साहित्य टिफिन (पेट भरने के लिये जूठन खाने को मजबूर एक वृद्धा की करुण कहानी) Yogendra Singh Chhonkar 6th October 2023 0 कहानी पायल कटियार रागिनी को बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि किट्टू (उसका बेटा) अब अपना पूरा लंच फिनिश कर लेता है। पहले तो रोज […]
साहित्य दो खामोश आंखें – 9 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर जो बेखुदी न दे पाया तेरा मयखाना साकी दे गईं दो खामोश ऑंखें