दो खामोश आंखें – 17

योगेन्द्र सिंह छोंकर
करने को सुबह शाम
क्यों देती हो
होठों को थिरकन
हो जाएगी
दिन से रात
जो एक बार
पलक झुका लें
दो खामोश ऑंखें

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