दो खामोश आंखें – 17

योगेन्द्र सिंह छोंकर
करने को सुबह शाम
क्यों देती हो
होठों को थिरकन
हो जाएगी
दिन से रात
जो एक बार
पलक झुका लें
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 16

योगेन्द्र सिंह छोंकर सामने रहकर न हुआ कभी जिस प्यास का अहसास उसे बुझाने दुबारा कभी मेरे पहलु में आएँगी […]

दो खामोश आंखें – 18

योगेन्द्र  सिंह छोंकर देख बर्तन किसी गरीब के चढ़ते सट्टे की बलि आखिर क्यों नहीं सुलगती दो खामोश ऑंखें

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