दो खामोश आंखें – 16

योगेन्द्र सिंह छोंकर
सामने रहकर
न हुआ कभी
जिस प्यास का अहसास
उसे बुझाने
दुबारा कभी
मेरे पहलु में आएँगी
दो खामोश ऑंखें

दो खामोश आंखें – 15

योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला […]

दो खामोश आंखें – 17

योगेन्द्र सिंह छोंकर करने को सुबह शाम क्यों देती हो होठों को थिरकन हो जाएगी दिन से रात जो एक […]

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