योगेन्द्र सिंह छोंकर
सामने रहकर
न हुआ कभी
जिस प्यास का अहसास
उसे बुझाने
दुबारा कभी
मेरे पहलु में आएँगी
दो खामोश ऑंखें
सामने रहकर
न हुआ कभी
जिस प्यास का अहसास
उसे बुझाने
दुबारा कभी
मेरे पहलु में आएँगी
दो खामोश ऑंखें
योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला […]
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