दिव्य यशोदा कुंड और जीर्ण हाऊ-बिलाऊ

यशोदा कुंड नन्दगांव में स्थित है। इस कुंड का बड़ा महत्त्व है। यह श्रीकृष्ण की माँ के नाम पर है। इसी कुंड के तट पर पत्थर की दो प्राचीन प्रतिमाएं भग्न अवस्था में हैं। ये हाऊ-बिलाऊ कहे जाते हैं। कुंड के पास ही यशोदा जी का मंदिर बना हुआ है।

यशोदा कुंड की उपासना का मंत्र


यशोदा कुंड पर मन्दिर में यशोदा जी के दर्शन।

‘धनधान्यसुखं देहि तीर्थराज नमोस्तु ते।

वैकुण्ठपदलाभाय प्रार्थयामि नमस्तु ते।।’


इस मंत्र में इस कुंड को तीर्थराज की संज्ञा दी गई है। प्रार्थना की गई है कि इस लोक में धन-धान्य का सुख मिले और अंत में वैकुण्ठ की प्राप्ति हो।मान्यता है कि इस कुंड में यशोदा मैया स्नान करने आती थीं। इसी वजह से यह उनके नाम पर यशोदा कुंड कहलाता है।

कुंड के पास ही हैं हाऊ-बिलाऊ

यशोदा कुंड पर स्थित हाऊ-बिलाऊ की प्रतिमाएं।

कुंड के समीप एक छोटी सी पर्वत शिला पर पत्थर की टूटी हुई दो मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां कुछ डरावनी सी जान पड़ती हैं। ये हाऊ-बिलाऊ की मूर्तियां कही जाती हैं। इनके बारे में यह मान्यता है की नंदीश्वर पर्वत पर किसी जमाने में शांडिल्य ऋषि तपस्या किया करते थे। कुछ राक्षस उनके तप में बाधा पहुंचाते थे। कुपित होकर ऋषि ने श्राप दिया कि जो भी असुर प्रवत्ति का व्यक्ति इस पर्वत क्षेत्र में आएगा वह पाषाण बन जाएगा। हाऊ-बिलाऊ इस श्राप की जद में आकर पाषाण बम गए। शांडिल्य मुनि के श्राप की वजह से यह स्थान असुरों से सुरक्षित हो गया। यही वजह थी कि कंस के असुर केशी के आतंकित नन्दबाबा अपने सभी सम्बन्धियो के साथ महावन छोड़कर नंदीश्वर पर्वत पर आ बसे। एक अन्य मान्यता यह भी है कि इन हाऊ-बिलाऊ से बालक कृष्ण-बलराम को डराया करती थीं। इनकी प्रार्थना के मंत्र यह है :-

‘नमः कृष्णेक्षकास्तुभ्यं धर्मकामार्थ मोक्षिणः।

पाषाणरूपिणो देवाः यशोदाशीषसंस्थिताः।।’

भग्न प्रतिमाएं करती हैं इशारा, पूर्व में रहा होगा कोई भव्य मंदिर

यशोदा कुंड के समीप मौजूद भग्न प्रतिमाओं के अवशेष।

यशोदा कुंड के समीप हाऊ-बिलाऊ की भारी प्रतिमाएं हैं। ये प्रतिमाएं भग्न दशा में हैं। पास ही एक चबूतरे पर टूटी हुई प्रतिमाओं का ढेर है। हाऊ-बिलाऊ की एक प्रतिमा यहां पहले थी जो करीब बीस वर्ष पहले चोरी हो गई। इस कुंड के आसपास इस तरह पुरानी प्रतिमाओं का होना संकेत करता है कि पहले यहां कोई भव्य मंदिर रहा होगा। नंदगांव में कभी भी कोई मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा मन्दिर तोड़े जाने का उल्लेख नहीं मिलता है। ये प्राचीन भग्न मूर्तियां देखकर लगता है कि ये मुस्लिमकाल से पहले की हैं। बहरहाल यह शोध का विषय है। स्थानीय पत्रकार यतीन्द्र तिवारी कहते हैं कि कार्बन डेटिंग कर इन मूर्तियों का निर्माण काल तय किये जाने की जरूरत है।

यहां पर बरसाना के हुरियारों का होता है स्वागत

कुंड पर स्थित यशोदा मन्दिर।

नंदगांव की लठामार होली में इस कुंड का बड़ा महत्त्व है। बरसाना से फ़ाग खेलने के पहुंचने वाले हुरियारों का स्वागत यहीं किया जाता है। यशोदा कुंड पर ही हुरियारों के सत्कार के लिए भांग-ठंडाई पेश की जाती है। यहीं रुक कर बरसाना के हुरियारे अपनी पाग बांधते हैं। कुंड के तट पर यशोदा जी का सुंदर मन्दिर बना हुआ है। गोपाष्टमी के दिन यशोदा कुंड के घाट पर गोस्वामीजन समाज गायन करते हैं।

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