दो खामोश आंखें – 15

योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला भी पाएंगी दो खामोश ऑंखें  

दो खामोश आंखें – 14

योगेन्द्र सिंह छोंकर चंद कतरे उनके लफ़्ज़ों के चंद हर्फ़ उनकी मुस्कराहट के वो मन भावन मिठास उनके जज्बात की सहेजने को ताउम्र मुझे सौंप […]

दो खामोश आंखें – 13

योगेन्द्र सिंह छोंकर जिनके होने का अहसास है दिल का सुकून जिनमे  डूबने की हशरत है मेरा जूनून पल में हँसाने और रुलाने वाली खुद को […]

दो खामोश आंखें – 3

योगेन्द्र सिंह छोंकर तेरे जाने का ख्याल मुझे दहशत नहीं देता मत समझना मैं तुम्हे दिल से नहीं लेता न होऊंगा उदास पर करूँगा तलाश […]

error: Content is protected !!