नंदगांव को भला कौन नहीं जानता? ब्रजवास के दौरान श्रीकृष्ण ने यहीं निवास किया था। उनकी अनेक लीलाओं के साक्षी है नंदगांव। यहां के नंदीश्वर पर्वत पर स्थित है नंदरायजी का मंदिर जिसे नन्दभवन भी कहा जाता है। इस मंदिर में बाबा नन्दराय अपने परिवार के साथ विराजमान हैं।
बाबा आनन्दघन ने किया था प्राकट्य
बात है विक्रमी संवत 1285 की। खरोठ गांव के निवासी बाबा आनंदघन ने इस स्थल की खोज की थी। हरिकृपा से उन्हें स्वप्न में पर्वत पर मूर्तियों के होने का भान हुआ। बाबा ने मूर्तियों की सेवा पूजा एक पर्वतीय गुफा में शुरू की। आज यह एक भव्य मंदिर बन चुका है। वर्तमान में इस मन्दिर की सेवा का दायित्व बाबा आनंदघन के वंशजों पर है।
चैतन्य महाप्रभु ने किए थे दर्शन
ब्रजयात्रा करने आये चैतन्य महाप्रभु ने इस स्थान पर दर्शन किये थे। इसका उल्लेख श्री चैतन्य चरितामृत में मिलता है।
“तहां लीलास्थली देखि गेला नन्दीश्वर।
नन्दीश्वर देखि प्रेमे हइला विह्वल।।
पावनादि सब कुंडे स्नान करिया।
लोकेर पूछिल पर्वत उपरे याइया।।
किछु देवमूर्ति हय पर्वत उपरे?
लोक कहे मूर्ति हय गोफार भितरे।।
दुइदके माता-पिता पुष्ट कलेवर।
मध्ये एक शिशु हय त्रिभंग सुंदर।।
सुनि महाप्रभु मने आंनद राइया।
तिन मूर्ति देखिला सेइ गोफा उघाडिया।
ब्रजेन्द्र ब्रजेश्वरी कैल चरण वंदन।
प्रेमावेश कृष्णेर कैल सर्वांग स्पर्शन।।”
श्री चैतन्य चरितामृत में मध्यलीला के 18वें परिच्छेद में संख्या 51 से 56 तक इस वर्णन में कृष्ण दास कविराज ने लिखा है कि “महाप्रभु जी ने नन्दगांव के पावन कुंडों में स्नान कर वहां की देव मूर्तियों के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की थी। तब लोगों ने उन्हें बतलाया कि पहाड़ी के ऊपर एक गुफा में कुछ देवमूर्तियां हैं। उनमें दो मूर्तियां पुष्ट कलेवर माता-पिता की हैं और एक उनके बीच में त्रिभंगी सुंदर बालक की है। यह सुनकर चैतन्य देव आनंद पूर्वक गुफा में गए और वहां उन्होंने नन्दरायजी, यशोदाजी और श्रीकृष्ण जी के दर्शन किए।”
कविराज के उक्त कथन से ज्ञात होता है कि 16वीं शताब्दी में नन्दरायजी का कोई मन्दिर नहीं था। वहां की पहाड़ी गुफा में ही तीन देव मूर्तियों के दर्शन होते थे। बाद में श्रद्धालुओं द्वारा समय-समय पर यहां मन्दिर का निर्माण और विस्तार किया गया।
जाट सरदार रूपसिंह ने बनवाया भव्य मंदिर
सन 1720 के आसपास एक जाट सरदार रूपसिंह द्वारा इस स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवाया गया। यह चूना पत्थर से बनाया गया था। यह जाट सरदार रूप सिंह कोई गुमनाम व्यक्ति नहीं थे वे भरतपुर राजवंश के संस्थापक बदन सिंह के बड़े भाई और प्रख्यात जाट शासक सूरजमल के ताऊ थे।
जवाहर सिंह के लगवाए फाटक आज भी हैं मौजूद
इस मंदिर के विस्तार और जीर्णोद्धार में राजा जवाहर सिंह का भी योगदान रहा। जवाहर सिंह ने दिल्ली अभियान से वापस लौटकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि मन्दिर के मुख्यद्वार पर लगा फाटक जवाहर सिंह ने ही लगवाया था। लोग यह भी कहते हैं कि यह फाटक वे दिल्ली अभियान के दौरान दिल्ली की किसी इमारत से उखाड़ कर लाये थे।
नंदभवन के दीपक को देखकर मनती थी भरतपुर में दीवाली
भरतपुर राज्य के शासक बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। श्रीकृष्ण को वे अपना पूर्वज मानते थे। यही वजह थी कि ब्रज के धर्मस्थलों के प्रति उनमें अगाध श्रद्धा थी। उन दिनों दीवाली की रात को नंदभवन के शिखर पर एक विशाल दीपक जलाया जाता था। इस दीपक को बहुत दूर स्व देखा जा सकता था। कहते हैं कि नंदभवन के शिखर पर इस दीपक को देखने के बाद ही भरतपुर में दीवाली के दीपक जलाए जाते थे। आज भी दीवाली की रात को पांच किलो घी का एक दीपक नन्दभवन के शिखर पर प्रज्वलित किया जाता है।
नंदीश्वर महादेव के दर्शन बिना मनोरथ अधूरा
नंदभवन के दूसरे प्रवेश द्वार से घुसते ही बायीं ओर नंदीश्वर महादेव का छोटा सा मन्दिर है। नंदीश्वर महादेव की महत्ता बहुत है। यहां आने वाले श्रद्धालु इनके दर्शन अवश्य करते हैं। सफेद संगमरमर की छतरी में इनकी छटा निराली दिखती है।
वर्षभर आयोजनों की रहती है भरमार
इस मंदिर में वर्तमान में नन्दबाबा, यशोदा मैया, श्रीकृष्ण, बलराम, राधारानी और सखाओं के विग्रह विराजमान हैं। यह यहां का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर नंदगांव-बरसाना की साझी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। यहां के आयोजनों एवं बरसाना के राधा रानी मन्दिर के आयोजनों को मिलाकर ही साझी संस्कृति बनी हुई है। यहां कृष्णजन्माष्टमी, रंगीली होली, गोपाष्टमी आदि अवसरों पर भव्य आयोजन होते हैं।