भारतीय लोक संस्कृति के प्राचीनतम देव हैं शिव

महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर समूचा जनमानस शिव की उपासना के उत्साह से झूम उठता है। ब्रजमंडल में शिव की भक्ति देखते ही बनती है। भगवान शिव के विवाह का दिन माना जाने वाला शिवरात्रि का व्रत भला कौन नहीं रखता। इस वर्ष महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान शिव की सनातन लोक संस्कृति में उपस्थिति को समझने के लिए गोपाल शरण शर्मा का यह आलेख पठनीय है।

सारी दुनिया में प्रचलित हैं शिव की कथाएं

सावन और भाद्रपद मास वर्ष के दो ऐसे महीने है जिनमें उत्सवों का उत्साह अधिकता से दिखाई देता है। सावन माह भगवान शिव की आराधना का माह है। सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति में शिव एक सर्व प्रमुख देवता हैं, जिन्हें महादेव कह कर उनकी महत्ता का प्रतिपादन किया जाता है। प्राचीन साहित्य के अध्यनन और ऐतिहासिक साक्ष्यों के प्रमाण से यह सिद्ध हो चुका है कि शिव भारतीय सनातन संस्कृति के प्राचीनतम देवता है। वैदिक साहित्य में भगवान शिव और शिवतत्त्व के ऊपर बेहद गम्भीर चिन्तन-मनन हुआ है। भगवान शिव से सम्बंधित अनेक लोक कथाएं जग में फैली हुई है। नगरीय और ग्रामीण अंचल में शिव की लोक प्रियता एवं उनके प्रति अगाध श्रद्धा लोक संस्कृति में उनके महत्वपूर्ण स्थान को रेखांकित करती है। मंदिरों, पीपल या वट वृक्ष के नीचे, सुनसान वीराने में या कस्बे की चहल-पहल में मूर्तिमान अथवा लिंग के रूप में स्थापित शिव आपको सहज ही प्राप्त हो जाएंगे।

सबके आराध्य देव हैं शिव

गोपेश्वर महादेव, वृंदावन

शिव वन्य संस्कृति के देवता भी है। शिव-पार्वती को प्रकृति और पुरुष की अवधारणा से जोड़ कर देखा जाता है। शिव लोक कल्याण करने वाले देवता है। शिव सरल अर्चना से सहज ही प्रसन्न होने वाले देवता है,वे अपने उपासक का कल्याण करने को सदैव तत्पर रहते है। आक,धतूरे और केवल जल मात्र से प्रसन्न हो जाने के कारण वे आषुतोष नाम से जगत में विख्यात है। अपने सरल स्वभाव के कारण शिव ज्ञानी, अज्ञानी, धनी, निर्धन, साधू, सन्यासी सभी के आराध्य देव है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नही होगा कि जहां भगवान श्री राम और कृष्ण जन-जन के आदर्श और पथ-प्रदर्शक देव है वही शिव लोक के अधिष्ठाता के रूप में स्थापित है। पूरब से पश्चिम तक,उत्तर से दक्षिण तक शिव लोक हृदयों में गहरे तक अपनी पैठ बना कर रखते है। 

शिव से जुड़े हैं तमाम त्योहार

रेतेश्वर महादेव, वृंदावन

भारतीय व्रत त्यौहारों की परंपरा में भी शिव से जुड़े अनेक त्यौहार हैं। सावन के सोलह सोमवार सहित गणगौर, हरतालिका व्रत, महाशिव रात्रि आदि अनेक ऐसे त्यौहार है जो शिव -पार्वती से जुड़े है। शिव औघड़दानी है जब भी किसी को संस्कारवान पति या पत्नी, धन-संपदा, विद्या-बुद्धि आदि मनोकामना के रूप में मांगना होता है तो वह सहज ही शिव से इस की याचना करता है। लोक जीवन में शिव आस्था की जड़े गहरे तक जमी हुई है। 6वीं,7वीं शताब्दियों में शिव की लीलाएं मूर्ति स्थापत्य कला का प्रमुख विषय थी। सिंधु घाटी सभ्यता में पशुपति शिव ही प्रमुख देव के रूप में स्थापित थे। महाराष्ट्र में स्थित एलोरा व एलीफैंटा की गुफाओं में उकेरी गई शिव-पार्वती से सम्बंधित मूर्तियां शिव की महिमा का मुखर गान करती है। प्राचीन संस्कृत वाङ्ग्मय, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं में शिव-महिमा का वर्णन मिलता है। वैदिक साहित्य में रुद्र देवता शिव ही हैं। कालान्तर में तंत्र, आगम, योग के ग्रंथों में शिव उपासना को विस्तृत रूप दिया गया। 

विदेशों तक फैली है शिव संस्कृति

वनखंडेश्वर महादेव, वृंदावन

महान वैयाकरण पाणिनी शिव के उपासक थे जिन्हें भगवान शिव ने डमरू नाद के द्वारा 14 माहेश्वर सूत्रों का ज्ञान कराया था। वाल्मीकीय रामायण, महाभारत एवं परवर्ती संस्कृत साहित्य में शिव की उपासना एवं उनकी महत्ता की झलक प्राप्त होती है। वहीं दूसरी ओर लोक में गो. तुलसीदास जी कृत पार्वती मंगल के साथ महादेव का ब्याहुला जैसी अनेक लोक गाथाएं पायी जाती है। यह शिव संस्कृति न सिर्फ भारत में फैली बल्कि वह इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, बाली, मॉरीशस जैसे देशों में भी व्यापकता से पली और पल्लवित हुई। भारतीय लोक संस्कृति में शिव की लोकप्रियता  काफी गहरे तक विद्यमान है। शिव से विलग भारतीय लोक संस्कृति को समझना बेमानी है। यह शिव की आस्था का ही असर है कि सावन माह में कांवर लिए श्रद्धालु ग्रीष्म और वर्षा के बीच नँगे पाँव सैकड़ो किलोमीटर पैदल यात्रा कर शिव के अभिषेक के लिए गंगाजल लाते है। कोई भी परिस्थिति उनकी आस्था को डिगा नही पाती।

ब्रजमंडल भी रंगा है शिव के रंग में

ब्रज मण्डल में भी सावन मास में शिव भक्ति का असर देखने को मिलता है। सावन के प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिरों में विभिन्न प्रकार के बंगले बना कर शिव का श्रृंगार किया जाता है। इतना ही नही यहां अन्य मंदिरों में स्थित विग्रहों को भगवान शिव के रूप में सजाया जाता है। शिव भारतीय लोक संस्कृति के ऐसे देवता है जो पूर्ब से पश्चिम तक ,उत्तर से दक्षिण तक की सभी संस्कृतियों में एक सामंजस्य बनाये रखते है।

गोपाल शरण शर्मा

(हिस्ट्रीपण्डित डॉटकॉम के लिए यह आलेख गोपाल शरण शर्मा ने लिखा है। गोपाल वृंदावन में रहते हैं और ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन में प्रकाशन अधिकारी हैं।)

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