बरसाना का युद्ध

वैसे तो एक प्रसिद्ध धर्मस्थल है बरसाना। पर यह अपने इतिहास में कुछ भयावह यादें भी समेटे हुए है। एक समय था जब यहां एक युद्ध लड़ा गया। यह युद्ध था भी बहुत भयानक। इस युद्ध का परिणाम विपरीत रहा। इस युद्ध की कीमत भी बरसाना को चुकानी पड़ी।

कब और किस-किसके मध्य लड़ा गया यह युद्ध

इस युद्ध को बैटल ऑफ़ बरसाना कहा गया है।यह युद्ध अक्टूबर 1773 में लड़ा गया।
दिल्ली के मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय के सिपहसालार नजफ़ खां और भरतपुर के शासक नवल सिंह की सेनाओं के बीच लड़ा गया था।

तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति

उन दिनों मुग़लों की शक्ति बेहद क्षीण हो चुकी थी और भरतपुर के सूरजमल एवं जवाहर सिंह जैसे प्रतापी शासक दिल्ली को पददलित कर उसके राज्य के तमाम इलाके कब्ज़ा चुके थे। उस समय कोटवन, छाता, साहर और बरसाना आदि स्थान भरतपुर के शासन के अधीन थे।

युद्ध का शुरुआती घटनाक्रम

नजफ़ खां ने 12 हजार सैनिकों के साथ इन इलाकों को कब्जाने के लिए अभियान चलाया। मथुरा की सीमा में पहुंचकर नजफ़ खां ने पैंतरेबाजी से काम लिया और कोटवन पर नवल सिंह की मजबूत स्थिति जानकार हमला नहीं किया। वह कोटवन से बचते हुए गांवों के बीच होते हुए छाता और फिर साहर पहुंचा। इस दौरान उसने रास्ते में पड़ने वाले गांवों को लूट कर धन इकट्ठा किया। नवल सिंह ने उसे जवाब देने के लिए कूच किया। बरसाना की और से नवल सिंह और साहर की ओर से नजफ़ खां एक दूसरे की और बढे।

30 अक्टूबर को हुई निर्णायक भिड़ंत

बरसाना और साहर की बीच यह युद्ध लड़ा गया। कुछ झड़पों के बाद निर्णायक युद्ध 30 अक्टूबर को लड़ा गया। बंगाल प्रेसेंडेंसी के बाहर उत्तर भारत का यह पहला युद्ध था जिसमें यूरोपीयन और यूरोपियनों द्वारा प्रशिक्षित सैनिक दस्तों ने दोनों पक्षों की ओर से भाग लिया था।

कौन-कौन थे प्रमुख लड़ाके

नवल सिंह की ओर से समरू नाम का एक जर्मन सेनानायक अपने पांच हजार सिपाहियों के साथ लड़ा था। बालानंद गुसाईं के नेतृत्व में हजारों नागाओं ने बंदूक धारण कर नवल सिंह का साथ दिया। नजफ़ खां की ओर से मौसम कुली खां, रुहेला सेनानायक रहीमदाद खां अपने पांच हजार सिपाहियों के साथ था।

युद्ध का परिणाम

भाग्य ने इस युद्ध में नवल सिंह का साथ नहीं दिया और उसे पीछे हटना पड़ा। युद्ध में विजेता पक्ष के लगभग 2300 सैनिक मारे गए और भारी संख्या में घायल हुए। दूसरे पक्ष को करीब दो हजार सैनिकों की क्षति हुई। जीतने के बाद नजफ़ खां ने बरसाना की हवेलियों को लूटा और उनमें खजाने की खोज की। इसके लिए हवेलियों में आग भी लगाई गई। ऐसे में बरसाना ने जो आर्थिक वैभव भरतपुर रियासत से प्राप्त किया था बहुत जल्द ही बर्बाद हो गया।

पुजारियों ने की राधारानी की प्रतिमा की हिफाज़त

इस युद्ध में भरतपुर की सेनाओं के हारने की खबर बरसाना पहुंची। मन्दिर के पुजारी इस समाचार से विचलित हो गए। उन्हें राधारानी की मूर्ति की सुरक्षा की फिक्र हुई। उन्होंने उसी समय प्रतिमा को मन्दिर से निकाल कर रजवाड़ों की ओर यात्रा शुरू कर दी। मन्दिर के पुजारी मूर्ति को लेकर मध्यप्रदेश स्थित श्योपुर राज्य में पहुंचे। वहां के राजा किशोरदास ने राधारानी के लिए एक मन्दिर बनवाया। यह मंदिर राधा कुंज कहलाता है। यह राधा कुंज श्योपुर के किले में स्थित है। हालात सामान्य होने पर राधारानी की मूर्ति को वापस बरसाना लाया गया।
राधे राधे
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. Fall of mughal empire (yadunath sarkar)
2. Farjana : the woman who saved an empire ( Julia kray)
3. Mathura : a district memoir (f s growse )
प्रस्तुति – योगेंद्र सिंह छोंकर
error: Content is protected !!