कान्हा को प्रिय है पनिहारी कुंड का पानी

भारत के किसी गांव का चित्र बनाएं तो बिना पनघट के वह अधूरा होगा। सिर पर मटकियों में जल भर के लाती स्त्रियों गांव के चित्रण का अनिवार्य अंग हैं। एक समय था जब हर गांव में यह दृश्य दिखाई देता था। वक्त बदलने के साथ पेयजल के दूसरे साधन उपलब्ध हुए। अब पनघट और पनिहारी बीते दिनों की बात हो गए हैं। फिर भी देहातों में ऐसे दृश्य अब भी बहुत दिखाई देते हैं। कृष्ण के गांव नन्दगांव में कृष्णकालीन पनघट आज भी मौजूद है। यह एक कुंड है जो पनिहारी कुंड कहलाता है।

श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है यह कुंड

पनिहारी कुंड जहां से यशोदा मैया खुद जल भरकर ले जाती थीं।

इस कुंड का जल श्रीकृष्ण को बचपन से ही प्रिय था। मुरलिका शर्मा द्वारा लिखित रसीली ब्रजयात्रा ग्रंथ के अनुसार कन्हैया को इस सरोवर से बहुत प्रेम है। इस कुंड के जल के बिना श्रीकृष्ण भोजन नहीं करते थे। मैया यशोदा स्वयं एक घड़ा लेकर इस कुंड का जल भरने जाती थीं। 

प्रदेश सरकार करा चुकी है जीर्णोद्धार

वर्ष 2014-15 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नंदगांव के पांच कुंडों का जीर्णोद्धार कराया गया था। जिनमें इस पनिहारी कुंड को भी शामिल किया गया। उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन द्वारा इस कुंड के दो तरह पक्की सीढियां और घाट बनवाये गए। कुंड के बगल में स्थित रासमण्डप का भी जीर्णोद्धार किया गया। पर्यटकों के बैठने के किये बेंच आदि भी यहां बनाई गईं हैं। 

प्राचीन रास मंडप में होती है रासलीला

इस रासमण्डप में आषाढ़ माह में होती है रासलीला।

पनिहारी कुंड के किनारे एक प्राचीन रासमण्डप बना हुआ है। अब इस रासमण्डप का जीर्णोद्धार कर नया स्वरूप दिया गया है। इस रासमण्डप में रासलीला का आयोजन होता है। रासलीला की शुरुआत मध्यकाल में हुई थी। आज भी हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यहां रासलीला की जाती है। रासलीला के दौरान यहां पनिहारी लीला का मंचन किया जाता है। 

अत्यंत रमणीक है यह स्थान

पनिहारी कुंड पर बड़ी संख्या में मौजूद हैं पीलू के वृक्ष जो अब हर जगह नहीं दिखते।

नंदगांव से कामां जाने वाले रास्ते पर करीब एक किमी आगे चलकर बायीं ओर मुड़ने पर यह कुंड मिलता है। यह स्थान एकांतिक है। यहां चहल पहल कम है। कुंड का वातावरण शान्त है। शांति की वजह से इस स्थान पर बड़ी संख्या में मयूर रहते हैं। हालांकि ब्रज में अन्य स्थानों पर से मयूर तेजी से लुप्त हो रहे हैं पर यहां खूब दिखते हैं। कुंड के किनारे कदम्ब और पीलू के वृक्ष बड़ी संख्या में हैं।  कुंड के तट पर बने मन्दिर में युगल सरकार के दर्शन होते हैं।

आज भी पनिहारी कुंड का ही पानी पीते हैं नंदगांव के लोग

सिर पर घड़े में पानी भरकर लाने की परंपरा दशकों पहले खत्म हो चुकी है। कस्बे में पेजयल आपूर्ति अब ट्यूबवेल से पाइपलाइन के द्वारा होती है। स्थानीय पत्रकार यतीन्द्र तिवारी बताते हैं कि नंदगांव का पानी खारी है। लेकिन गांव के बाहर के जलस्रोतों का पानी पीने योग्य है। पनिहारी कुंड के आसपास के पानी का स्वाद सबसे अच्छा है। यही वजह है कि नगर पंचायत द्वारा पेयजल आपूर्ति के लिए बोरिंग पनिहारी कुंड के पास ही कराए गए हैं।

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