लोकदेवता मेहाजी मांगलिया


मेहाजी मांगलिया पँचपीरों में से एक हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समुदायों के लोग इनकी पूजा करते हैं। इनकी गायों के रक्षक लोकदेवता के रूप में ख्याति है। मेहाजी को उज्ज्वल क्षत्रिय भी कहते हैं।

मेहाजी का सामान्य परिचय 


मेहाजी के पिता का नाम कीतू करणोत था। ये तापू गांव के जागीरदार थे। यह तापू गांव वर्तमान में जोधपुर जिले में आता है। इनकी माता का नाम मायड़दे था। मेहाजी मारवाड़ के शासक राव चूड़ा के समकालीन थे। राव चूड़ा को इनका आशीर्वाद प्राप्त था। राव चूड़ा का शासनकाल ईसवी 1384 से 1423 के तक था। 

राव चूड़ा को दी तलवार


मेहाजी के समकालीन मारवाड़ नरेश राव चूड़ा को मेहाजी ने आशीर्वाद दिया था और उन्हें एक तलवार प्रदान की थी। पहले मारवाड़ की राजधानी पाली में थी। मारवाड़ की दूसरी राजधानी खेड़ में बनी। मारवाड़ की तीसरी राजधानी मंडोर में बनी। मंडोर पहले मारवाड़ का हिस्सा नहीं था। मेहाजी के आशीर्वाद से राव चूड़ा ने मंडोर का दुर्ग जीता था। इस दुर्ग को जीतने के लिए राव चूड़ा को मेहाजी ने तलवार दी थी।

धर्म बहन पानां गूजरी

मेहाजी के बारे में एक कथा के अनुसार मेहाजी अपने पिता की अस्थियां प्रवाहित करने पुष्कर गए थे। पुष्कर में उनकी भेंट पानां गूजरी से हुई। मेहाजी ने उसे अपनी धर्म बहन बना लिया। मेहाजी ने पानां गूजरी को वचन दिया कि कभी भी संकट के समय वह इसकी मदद करेंगे। इसके बहुत समय बाद एक बार पुष्कर में भीषण अकाल पड़ा। अकाल के दौरान पानां गूजरी की हजारों गायों के लिए चारे पानी का संकट खड़ा हो गया। मुसीबत के समय पर पानां को अपने धर्म भाई मेहाजी के वचन की याद आयी। पानां अपनी गायों को लेकर मेहाजी के गांव तापू में पहुंच गई। 

मेहाजी की वीरगति


तापू में पानां गूजरी की गायों को जैसलमेर का शासक दुर्जनसाल भाटी खोल ले गया। यह दुर्जनसाल भाटी दूदा भाटी के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। पानां गूजरी की गायों की रक्षा के लिए मेहाजी ने दूदा भाटी से युद्ध किया था। इस युद्ध में मेहाजी वीरगति को प्राप्त हुए थे। यह युद्ध बापिणी गांव में हुआ था। इसी बापिणी गांव में उनका मन्दिर बना हुआ है। यह गांव वर्तमान में जोधपुर में है। मेहाजी से युद्ध करने वाला दूदा भाटी बाद में अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था।

मेहाजी का मुख्य पूजा स्थल


मेहाजी का मुख्य मंदिर जोधपुर के बापणी गांव में हैं। इस मंदिर में मेहाजी की घुड़सवार प्रतिमा है। मेहाजी के घोड़े का नाम किरड काबरा था। इस मंदिर में मांगलिया जाति के पुजारी होते हैं। यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां के पुजारी के वंश में वृद्धि नहीं होती है। गोद ली हुई संतानों से वंश आगे बढ़ता है। 

मेहाजी का मेला


भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन बापणी गांव में मेहाजी का मेला लगता है। वैसे तो इस दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी होती है पर यहां मेहाजीजन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है। 

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