नंदगांव का कण कण श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी है। यहां श्रीकृष्ण की हर उस लीला के चिन्ह हैं जिनका वर्णन पुराणों में किया गया है। ऐसी ही एक लीला थी मोतियों की खेती की। इस लीला का स्थल है मोती कुंड।
गोपों ने ली परीक्षा, कृष्ण ने उगाये मोती
गर्ग संहिता में प्राप्त विवरण के अनुसार यह कथा इस प्रकार है। श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत उठा कर सबको आश्चर्य में डाल दिया था। सब गोप यह समझ गए कि कृष्ण असाधारण हैं। सब गोप मिलकर नन्दबाबा के पास पहुंचे।
गोपों ने नन्दबाबा से पूछी कृष्ण की असलियत
गोपों ने नन्दबाबा पर आरोप लगाया कि कृष्ण उनके पुत्र नहीं हैं। उन्होंने कृष्ण के बारे में सब साफ साफ पूछा। नन्दबाबा ने गर्ग मुनि द्वारा बताई सभी बातें गोपों को बता दीं। यह कि कृष्ण असाधारण हैं। उनके अंश से नाना अवतार होते हैं। कृष्ण राधापति हैं आदि आदि।
गोप लेना चाहते थे कृष्ण की परीक्षा
कृष्ण वृषभानु के जमाता होने वाले हैं। यह जानकर गोप वृषभानु के घर पहुंच गए। दरअसल गोपों को श्रीकृष्ण के ईश्वर होने पर संदेह था। वे उनकी परीक्षा करना चाहते थे। वे लोग उनकी दैवीय शक्तियों को प्रत्यक्ष देखना चाहते थे।
गोपों ने वृषभानु को बनाया माध्यम
गोपों ने वृषभानु के माध्यम से श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने की योजना बनाई। गोपों के कहने पर वृषभानु ने कीमती मोतियों के हार शगुन के तौर पर नन्दबाबा के घर भेज दिए।
कीमती शगुन देखकर चिंतित हुए नन्दबाबा
इन हारों में जड़ा हर मोती करोड़ों का था। इतना भारी भरकम शगुन देखकर नन्दबाबा चिंतित हो उठे। क्योंकि उन्हें बदले में इससे भी ज्यादा कीमत का शगुन भेजना था। अगर ज्यादा कीमत का शगुन न भेज पाते तो समाज में मानहानि होती।
कृष्ण ने की मोतियों की खेती
श्रीकृष्ण अपने पिता की दुविधा समझ गए। उन्होंने बाललीला करते हुए कई मालाएं तोड़कर मोती जमीन में बो दिए। शुरुआत में तो सब इसे कृष्ण की नादानी समझ कर हंसे। पर जब मोतियों के पौधे उगे और बड़ी संख्या में मोती पैदा हुए तो सब आश्चर्यचकित रह गए। कृष्ण के उगाए हुए मोती शगुन के तौर पर वृषभानु के घर भेजे गए। इन मोतियों को देखकर सबको श्रीकृष्ण के ईश्वर होने पर विश्वास हो गया।
जहां बोये थे मोती वहां बन गया मोती कुंड
जिस स्थान पर श्रीकृष्ण में मोतियों की खेती की थी वहां एक सरोवर प्रकट हो गया। यह सरोवर मुक्ता सरोवर कहलाता है। इसे मोती कुंड या तीर्थराज भी कहते हैं।
मोती रूपी फलों के प्रति है आस्था
इस कुंड के तट पर आज भी कुछ ऐसे वृक्ष हैं जिन पर मोतियों के समान फल उगते हैं। असलियत में यह पीलू के वृक्षों की ही एक प्रजाति है। ये फल मोतियों के समान ही लगते हैं। मान्यता है कि इन मोतियों को भंडार घर या बटुए में रखने से धनाभाव नहीं होता।
मोती बिहारी के नाम से पूजे जाते हैं श्रीकृष्ण
मोतियों की खेती करने वाले श्रीकृष्ण मोती बिहारी के नाम से पूजे जाते हैं। कुंड के तट पर एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है। यहां मोती बिहारी के सुंदर दर्शन हैं। यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां भंडारों का आयोजन भी होता है। इस मंदिर में अखण्ड रामायण पाठ चलता रहता है।
कैसे पहुंचें
मोती कुंड नंदगांव से गिडोह के रास्ते पर एक किलोमीटर चलकर है। कामां जाने वाली सड़क से पावन सरोवर के पास से यह सड़क निकलती है।