लोकदेवता हड़बूजी सांखला

लोकदेवता हड़बूजी सांखला पंचपीरों में से एक हैं। ये शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे। ये रामदेवजी के समकालीन थे और उनके मौसेरे भाई थे। रामदेवजी इन्हें अपना दूसरा रूप ही बताते थे। इनके और रामदेवजी दोनों के गुरु एक ही थे – योगी बालीनाथ।

जन्म एवम सामान्य परिचय


हड़बूजी सांखला गोत्र के राजपूत थे। सांखला राजपूत पंवार राजपूतों की ही एक शाखा है। कहते हैं कि पंवार राजपूतों में एक बाघसिंह नाम के व्यक्ति हुए थे। जिनके पिता की हत्या सिंध प्रांत के शासक ने कर दी थी। अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बाघसिंह ने भटियाणी माता की तपस्या की। भटियाणी माता ने उसे एक शंख प्रदान किया था। इस शंख को बजाने पर बाघसिंह के बिछड़े हुए साथी उससे आ मिले। और बाघसिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लिया। इस तरह इन लोगों ने उस शंख को पूज्यनीय मानकर उसकी पूजा करना शुरू कर दिया। शंख की पूजा करने से ही ये लोग सांखला कहलाने लगे। हड़बूजी के पिता का नाम मेहराजजी सांखला था। मेहराजजी भुण्डेल गांव के जागीरदार थे। यह गांव वर्तमान में नागौर जिले में आता है। इनकी माता का नाम सौभाग था। ये लोकदेवता रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। इन्होंने रामदेवजी के गुरु योगी बालीनाथ को अपना गुरु बनाया था। 

चाखू गांव में की तपस्या


गुरु योगी बालीनाथ ने हड़बूजी को शिष्य बनाने के बाद तपस्या करने को कहा। गुरु के आदेश से हड़बूजी चाखू गांव में जाकर कठिन तपस्या करने लगे। तपस्या के साथ-साथ हड़बूजी लोककल्याण के कार्यों में भी लगे रहते थे। एक साधारण व्यक्ति की तरह जीवन जीने और लोककल्याण को ही अपने जीवन का ध्येय बनाने के कारण हड़बूजी लोकदेवताओं में शामिल किए गए। 

राव जोधा को दिया आशीर्वाद


हड़बूजी के समकालीन मारवाड़ के शासक राव जोधा थे। राव जोधा राव रणमल के पुत्र थे। मेवाड़ के राणा कुम्भा द्वारा राव रणमल की हत्या कराये जाने के बाद मारवाड़ पर कब्जा कर लिया गया था। राव जोधा उस समय राज्यहीन अवस्था में भटकते हुए राज्य प्राप्ति के लिए प्रयासरत थे। उस समय हड़बूजी की प्रसिद्धि सुनकर राव जोधा उनके पास पहुंचे। हड़बूजी ने राव जोधा को अपनी कटार भेंट की। साथ ही हड़बूजी ने राव जोधा को आशीर्वाद दिया कि मारवाड़ का राज्य उन्हें वापस मिल जाएगा। तभी राव जोधा की बुआ और मेवाड़ की राजमाता हंसाबाई ने मेवाड़ के शासक राणा कुम्भा को जोधा को मारवाड़ का राज्य वापस करने को कहा। इस तरह राव जोधा को अपने पूर्वजों का राज्य प्राप्त हुआ। इसके बाद राव जोधा की आस्था हड़बूजी के प्रति बढ़ गयी।

राव जोधा ने भेंट की बावनी जागीर

हड़बूजी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए राव जोधा ने उन्हें बावन हजार बीघा भूमि प्रदान की। जब किसी को बावन हजार बीघा जमीन दी जाती है तो उसे बावनी जागीर कहते हैं। इस भूमि पर बेंगटी गांव बसाया गया। यह बेंगटी गांव चाखू के पास ही है और वर्तमान में जोधपुर जिले में आता है। हड़बूजी यहीं रहते हुए जनकल्याण के कार्य करते रहे।

रामदेवजी ने भेंट किया प्याला और छड़ी

रामदेवजी अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय लोकदेवता थे। वे हड़बूजी को अपना ही दूसरा रूप कहते थे। कहते हैं जब रामदेवजी ने जीवित समाधि ली तब वे अपना प्याला और छड़ी अपने साथ समाधि में ले गए थे। मान्यता है बाद में प्रकट होकर रामदेवजी ने ये प्याला और छड़ी हड़बूजी को प्रदान की थीं। रामदेवजी को यह प्याला और छड़ी मक्का-मदीना से आये पीरों ने दीं थीं। रामदेवजी के प्याले का नाम रतन कटोरा तथा छड़ी का नाम सोवन चिरिया था। 

अकाल के समय जनसेवा

एक बार मारवाड़ में भीषण अकाल पड़ा। उन दिनों हड़बूजी अपनी बैलगाड़ी पर एक बोरी बाजरा लेकर गांव गांव जाते थे। और हर जरूरतमंद को बाजरे की बारी से प्याला भर भरकर बाजरा देते थे। कहते हैं कि रामदेवजी के दिव्य प्याले का ऐसा चमत्कार था कि बाजरे की बारी कभी खाली नहीं होती थी। इसी तरह अकाल के दौरान पशुओं के खाने के लिए घास भी बैलगाड़ी पर रखकर गांव गांव में पशुओं को ले जाकर देते थे। इस तरह के परोपकार के कार्य हड़बूजी आजीवन करते रहे। 

हड़बूजी का मंदिर


लोकदेवता हड़बूजी सांखला का मुख्य मंदिर जोधपुर के बेंगटी गांव में बना हुआ है। हड़बूजी ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं बिताया था। हड़बूजी ने यहीं समाधि ली थी। यहां पर उनका मन्दिर बनाया गया। इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यहां मन्दिर में हड़बूजी की बैलगाड़ी की पूजा की जाती है। यह वही बैलगाड़ी है जिस पर बाजरा और घास रखकर हड़बूजी लोगों की मदद किया करते थे। इस बैलगाड़ी को हड़बूजी का वाहन भी माना जाता है। इस बैलगाड़ी का नाम सिया था। इस मंदिर का पुजारी सांखला राजपूत होता है।

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