नन्दगाँव और बरसाना का समाज गायन

बरसाना-नंदगांव की साझी समाज गायन परम्परा
योगेंद्र सिंह छोंकर
बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित श्रीलाडिलीजी मंदिर और नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत पर स्थित नन्दबाबा मंदिर दोनों की एक साझी परंपरा है जिसका निर्वहन साढ़े पांच सौ वर्ष से किया जा रहा है। बरसाना राधाजी का मायका है जहाँ वे कृष्णजी के साथ विराजती हैं वहीं नंदगांव में उनकी ससुराल है जहाँ वे नन्द बाबा मंदिर में कृष्ण जी के परिवार के साथ दर्शन देतीं हैं। सनातन परंपरा के अलग अलग मत भले ही राधा और कृष्ण के विवाह को लेकर अलग अलग राय रखते हैं पर नंदगांव बरसाना की साझी परंपरा और मान्यता यही है कि उनका विवाह हुआ है। इन दिनों फाल्गुन चल रहा है और लठामार होली आने को है तो थोड़ी चर्चा होली के समाज गायन की परंपरा पर। बसंत पंचमी से लेकर धुलेंडी तक यहाँ होली का उल्लास रहता है इसीलिए कहा जाता है कि ब्रज में फाल्गुन चालीस दिन का होता है। बसंत पंचमी के दिन से दोनों मंदिरों में आधिकारिक रूप से होली की शुरुआत होती है। होली के डांडे रोप दिए जाते हैं और समाज गायन का क्रम शुरू हो जाता है। इसी दिन से मंदिरों में गुलाल उड़ने लगता है, पखावज बजने लगती है और ढप पर थाप पड़ने लगती है। बसंत पंचमी के दिन आदि रसिक कवि जयदेव के पद ‘ललित लवंग लता परिसीलन, कोमल मलय शरीरे’ से समाज गायन शुरू होता है। इसी क्रम में हरि जीवन का पद ‘श्री पंचमि परम् मंगल दिन, मदन महोत्सव आज बसंत बनाय चलीं ब्रज सुन्दरि, लै लै पूजा कौ थार’ का गायन होता है। हित हरिवंश का पद ‘प्रथम समाज आज वृन्दावन, विहरति लाल बिहारी, पांचें नवल बसन्त बंधावन, उमगि चलें ब्रजनारि’ गाया जाता है। कविवर चतुर्भुज के पद ‘गावत चलीं बसन्त बंधावन, नंदराय दरबार, बानिक बन बन चौख मौख सौं, ब्रजजन सब इकसार’ का गायन वातावरण में बसन्त की मादकता भर देता है। इसी क्रम में चतुर दास, वृन्दावन दास, मुरारी दास, माधौ दास, नन्द दास, गरीब दास, गोविन्द, परमानंद दास, गजाधर, चतुर्भुज, हरिवंश, सदानन्द, नागरीदास और कटहरिया आदि रसिकों के पदों का गायन चलता रहता है। महाशिव रात्रि, बरसाना से नंदगांव के लिये होली का आमंत्रण जाना, पांडे लीला, बरसाना की लठामार होली और बरसाना की सखियों द्वारा नंदगांव में फगुआ मांगने जाना आदि लीलाओं का चित्रण इन्ही पदों के गायन से होता रहता है। धुलेंडी के दिन ‘जीवेगो सो खेलेगो, ढप धर दे यार गई परकी’ के गायन के साथ चालीस दिवसीय समाज गायन का यह क्रम पूर्ण हो जाता है। राधे राधे

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