उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के इतिहास में मथुरा जिले की राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा के क्रम में पिछले अंक में हमने जाना था कि यहां कुल पांच विधानसभा क्षेत्र थे जिनमें से मांट कम सादाबाद वेस्ट पर दो सीटें थीं। इस तरह जिले से कुल छह विधायक चुन कर लखनऊ भेजे गए। प्रदेश में सरकार बनी कांग्रेस की और मुख्यमंत्री बने गोविंद बल्लभ पंत। पंत जी दिसम्बर 1954 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके त्यागपत्र देने के बाद फिर से सरकार का गठन किया गया। इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली डॉ. संपूर्णानंद ने। इनके मंत्रिमंडल में मथुरा जिले को भरपूर स्थान मिला। मथुरा दक्षिण क्षेत्र से विधायक आचार्य जुगल किशोर को श्रम एवं समाज कल्याण विभाग का मंत्री बनाया गया साथ ही मांट कम सादाबाद वेस्ट के विधायक लक्ष्मी रमण आचार्य को सार्वजनिक निर्माण विभाग में उप मंत्री बनाया गया।
विधानसभा का दूसरा चुनाव हुआ वर्ष 1957 में
इस बार क्षेत्रों में नाम तथा उनकी क्रम संख्या में परिवर्तन देखने को मिला। यह परिवर्तन इस प्रकार था
- मथुरा (103)
- गोवर्धन (104)
- छाता (105)
- मांट (106) [ दो सीट]
- सादाबाद (107)
इस प्रकार हम देखते हैं कि इस चुनाव में पिछली बार वाले क्षेत्रों के नाम बदले गए। गोवर्धन के नाम से एक नया क्षेत्र पहली बार अस्तित्व में आया। मांट क्षेत्र के लिए इस बार भी दो सीटें रखीं गईं जिनमें से एक दलितों के लिए आरक्षित थी। इस बार मतदान की तारीख थी 25 फरवरी 1957।
एक नजर चुनाव परिणामों पर
मथुरा विधानसभा क्षेत्र
इस क्षेत्र पर कांग्रेस के विधायक श्रीनाथ भार्गव ने फिर से अपनी विजय दोहराई। इस बार उनका मुकाबला था भारतीय जनसंघ के लक्ष्मण प्रसाद से। श्रीनाथ भार्गव को कुल 25923 वोट मिले थे जबकि लक्ष्मण प्रसाद को 17008 वोट मिले। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी लछमन को 2444, राम राज्य परिषद के व्रज मोहन शर्मा को 1372 तथा निर्दलीय श्रीधर को 670 वोट मिले।
गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र
इस क्षेत्र पर कांग्रेस के विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आचार्य जुगल किशोर ने विजय हासिल की। उनका मुकाबला रहा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के किशन लाल से। आचार्य जुगल किशोर को 21218 वोट मिले जबकि किशन लाल को 12715 वोट मिले। भारतीय जनसंघ के गिर्राज प्रसाद को 9923, सीपीआई के भमरी को 4572, निर्दलीय राधेश्याम को 4020 तथा राम राज्य परिषद के व्रज मोहन शर्मा को 870 वोट मिले।
छाता विधानसभा क्षेत्र
इस क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रहे रामहेत सिंह फिर से चुनाव जीत गए। उनका मुकाबला रहा निर्दलीय टीकम सिंह के साथ। रामहेत सिंह को 23151 वोट मिले जबकि टीकम सिंह को 17581 वोट मिले। तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय लक्खी सिंह को 10585 तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मोहर सिंह को 5191 वोट मिले। इस चुनाव में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे टीकम सिंह और लक्खी सिंह का भाग्योदय आगे के चुनावों में होना शेष है।
मांट विधानसभा क्षेत्र
इस दो सीटों वाले क्षेत्र से बाजी मारी पूर्व में विधायक और प्रदेश सरकार में उपमंत्री रहे लक्ष्मी रमण आचार्य ने तथा दूसरी आरक्षित सीट पर चुने गए श्याम लाल। दोनों ही विजेता प्रत्याशी कांग्रेस के थे। लक्ष्मी रमण आचार्य को 41951 वोट तथा श्याम लाल को 27443 वोट मिले। इनके मुकाबले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के गंगा प्रसाद व राधेश्याम को क्रमशः 17798 एवं 15574 वोट मिले। भारतीय जनसंघ के जगदेव सिंह एवं राजा राम को क्रमशः 12177 एवं 6612 वोट मिले। निर्दलीय बेनी राम, बेद राम एवं बसन्त लाल को क्रमशः 12804, 7900 एवं 3884 वोट मिले।
सादाबाद विधानसभा क्षेत्र
इस क्षेत्र पर चुनाव परिणाम में परिवर्तन देखने को मिला। यहां बाजी मारी निर्दलीय टीकाराम पुजारी ने। उन्होंने पूर्व विधायक अशरफ अली को परिजित किया। टीका राम पुजारी को 22364 वोट मिले जबकि कांग्रेस के अशरफ अली खान को 17967 वोट मिले। इस क्षेत्र से मात्र तीन ही प्रत्याशी मैदान में थे। तीसरे स्थान पर रहे भारतीय जनसंघ के महेंद्र सिंह को कुल 2312 वोट मिले।
कांग्रेस ने गवां दी एक सीट
इस चुनाव में मथुरा जिले की छह में से पांच सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। सादाबाद की सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी अशरफ अली खान को निर्दलीय टीका राम पुजारी के सामने हार का सामना करना पड़ा। मांट की दोनों सीटें कांग्रेस को मिलीं। छाता में निर्दलीय टीकम सिंह मुकाबले में रहे। मथुरा में भारतीय जनसंघ के लक्ष्मण प्रसाद मुख्य मुकाबले में जगह बना पाए वहीं गोवर्धन और सादाबाद में जनसंघ के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी ने गोवर्धन में मुख्य मुकाबले में जगह बनाई।
विधायकों का परिचय
विधायक लक्ष्मी रमण आचार्य (मांट)
लक्ष्मी रमण आचार्य का जन्म 1915 ईसवी में मथुरा में हुआ था। इन्होंने महाराजा कॉलेज जयपुर और आगरा कॉलेज आगरा से शिक्षा ग्रहण की थी। इन्होंने वर्ष 1938 में मथुरा ने वकालत की प्रैक्टिस शुरू की और ये मथुरा के प्रमुख वकीलों में शामिल थे। इन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और जेल गए। ये कई बार जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। इनकी ब्रज साहित्य में गहरी रुचि थी और ये ब्रज साहित्य मंडल से भी जुड़े रहे। ये पहली बार वर्ष 1952 के विधानसभा चुनाव में चुने गए। जनवरी 1955 में इन्हें प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और सार्वजनिक निर्माण विभाग में राज्य मंत्री का पद दिया गया।
विधायक श्याम लाल (मांट)
श्याम लाल कांग्रेस दल से मांट आरक्षित सीट पर चुने गए। इनका जन्म वर्ष 1916 में ग्राम बाठोन पोस्ट आयराखेड़ा जिला मथुरा में हुआ था। इनका विवाह रामश्री देवी से हुआ था। इनका व्यवसाय काश्तकारी था।
विधायक राम हेत सिंह (छाता)
इनका जन्म वर्ष 1924 में छाता विधानसभा क्षेत्र के गांव आझई में हुआ था। इनके पिता का नाम नारायण सिंह था। इनका विवाह 1940 में सरस्वती देवी जसावत के साथ हुआ। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण वर्ष 1941 में इन्हें एक वर्ष की कैद हुई और 200 रुपये का जुर्माना भी हुआ। इनका व्यवसाय कृषि था और ये डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्य भी रहे थे। इनकी देशाटन में विशेष रुचि थी तथा नशामुक्ति के लिये इन्होंने उल्लेखनीय कार्य किये थे। ये वर्ष 1951 में भी इसी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे।
विधायक आचार्य जुगल किशोर (गोवर्धन)
इनका जन्म वर्ष 1894 सहारनपुर जिले के पतेहर में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रभु दयाल था। ये उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वर्ष 1913 से 1920 तक इंग्लैंड में रहे। इन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की। 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान ये एक जत्था लेकर आगरा गए जिसके कारण उन्हें कैद हुई। वर्ष 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण एक वर्ष का कारावास और 100 रुपये जुर्माना की सजा हुई। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण 1940 में उन्हें एक वर्ष का कारावास मिला। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण ये नजरबंद किये गए। ये वर्ष 1937 में पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए। वर्ष 1946 में ये विधान निर्मात्री परिषद के सदस्य भी चुने गए थे। आजादी के बाद ये मथुरा दक्षिण सीट से विधायक बने और राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। इनकी पत्नी शांति देवी आचार्या भी स्वतंत्रता आंदोलन में बराबर सक्रिय रहीं। श्रीमती शांति देवी ने 1933 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में सहभागिता की और छह मास का कारावास दण्ड मिला। व्यक्तिगत सत्याग्रह में सहभागिता करने के कारण श्रीमती शांति देवी को 1940 में तीन मास के कारावास का दंड मिला। भारत छोड़ो आंदोलन में 1942 में उन्हें नजरबंद किया गया। श्रीमती शांति देवी आजादी के बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य चुनी गईं।
विधायक श्रीनाथ भार्गव (मथुरा)
श्रीनाथ भार्गव स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका चित्र उपलब्ध नहीं है। विधानसभा सदस्यों की पुस्तिका में इनका मुख्यावास भरतपुर दरवाजा, जिला मथुरा दर्ज है। ये वर्ष 1951 में भी इसी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे।
टीकाराम पुजारी (सादाबाद)
इनके पिता का मोहन दास था। ये सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे पर छह चुनाव इन्होंने निर्दलीय लड़ा था। इन्होंने सादाबाद के प्रभावशाली नेता कुंवर अशरफ अली खान को हराया था। ये सुसायन उर्फ ऊंचागांव, पोस्ट नसीरपुर जिला मथुरा के निवासी थे। इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता की थी। नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण वर्ष 1930 में छह मास और 1932 में एक वर्ष की कैद पाई थी। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में सन 1941 में एक वर्ष कैद और 200 रुपये जुर्माने की सजा पाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सन 1942 में इन्हें नजरबंद किया गया था।
इनकी पत्नी खेम कुमारी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण श्रीमती खेम कुमारी को सन 1932 में तीन वर्ष के कारावास का दंड और 30 रुपये जुर्माने की सजा मिली थी।
(आंकड़े निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से लिये गए हैं)