हुमायूंनामा और गुलबदन बेगम

भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाला बाबर था, जिसके बाद उसका बड़ा पुत्र हुमायूं उसकी गद्दी पर बैठा। हुमायूं को अपने जीवन में बहुत सी उठापटक का सामना करना पड़ा। हुमायूं के समय की घटनाओं के अध्ययन के लिए हुमायूंनामा एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इस ग्रन्थ न केवल तात्कालिक राजनीतिक गतिविधियों पर प्रकाश डालता है साथ ही मुगल परिवार का भी विस्तृत वर्णन इसमें मिलता है। तत्कालीन पेशेवर इतिहास लेखक भी मुगल हरम का इतना विस्तृत वर्णन नहीं कर पाते हैं जितना हुमायूंनामा में देखने को मिलता है। हुमायूंनामा को गुलबदन बेगम ने लिखा है। गुलबदन बेगम बादशाह बाबर की पुत्री और हुमायूं की छोटी सौतेली बहन थी। 

कैसे प्रकाश में आया हुमायूंनामा

हुमायूंनामा लंबे समय तक अंधकार में रहा। बादशाह अकबर के इतिहास लेखक अबुल फजल ने आईने अकबरी में गुलबदन बेगम के इस ग्रन्थ का उल्लेख तो किया है पर वहां इसका नाम दर्ज नहीं किया है। बाद में यह नाम और ग्रंथ दोनों ही कभी चर्चा में नहीं आये। सम्भव है इस ग्रन्थ की एक ही प्रति बनी हो जो स्वयं बेगम के हाथ की लिखी थी या हो सकता है उसकी कुछ ही प्रतियां बनाई गईं हों जो समय के साथ लुप्त हो गईं हों। बहरहाल किसी तरह इसकी एक प्रति बची रह गई। भारत में जब ब्रिटिश शासन आया तब कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने फ़ारसी पांडुलिपियों के संग्रह का कार्य किया। कर्नल हैमिल्टन इन्हीं में से एक था। कर्नल ने दिल्ली और लखनऊ से एक हजार फ़ारसी में लिखी पाण्डुपियों का संग्रह किया। जब वह लंदन वापिस गया तो उन पाण्डुलियों को अपने साथ ले गया। कर्नल हैमिल्टन की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ने सन 1868 ईसवी में इन पांडुलिपियों में से 352 पांडुलिपियों को ब्रिटिश म्यूजियम को बेच दिया। हुमायूंनामा इन पांडुलिपियों में से एक था। इस प्रकार यह हुमायूंनामा ब्रिटिश म्यूजियम तक पहुंच गया। पर वहां भी यह डॉ रियू द्वारा सूचीबद्ध किए जाने के पूर्व तक महत्त्वहीन दशा में पड़ा रहा। प्रोफेसर ब्लौकमैन और अर्सकिन जैसे विद्वान उस समय पर फ़ारसी दस्तावेजों के गहन अध्ययन में जुटे थे और उनके अंग्रेजी अनुवादों पर काम कर रहे थे पर यह हुमायूंनामा उनकी नजर से भी अछूता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी में अंत में मिसेज बेवरिज ने इस ग्रंथ का काम अपने हाथ में लिया और इसके अनुवाद को परिशिष्ट और टिप्पणी आदि से विभूषित करके रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के ओरिएंटल ट्रांसलेशन फड़ की नई माला में छपवाया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद भारत में ब्रजरत्न दास ने इसके हिंदी अनुवाद पर काम किया। हिंदी अनुवाद मूल फारसी पांडुलिपि से किया गया है जिसे देवीप्रसाद ऐतिहासिक पुस्तक माला के अंतर्गत नागरी प्रचारिणी काशी द्वारा प्रकाशित किया गया। इस प्रकार इतिहास में अपना विशिष्ट योगदान रखने वाली यह पुस्तक आमजन के लिए उपलब्ध हो सकी। 

कौन थी गुलबदन बेगम

गुलबदन बेगम का पिता बाबर था जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य का बीजारोपण किया था। गुलबदन बेगम की मां का नाम दिलदार बेगम था जो बाबर की पांचवीं पत्नी थी। दिलदार बेगम ने पांच संतानों को जन्म दिया था जिनमें दो पुत्र तथा तीन पुत्रियां थीं। गुलबदन बेगम का जन्म 1523 ईसवी में हुआ था। माहम बेगम बाबर की मुख्य बेगम थी। यह माहम बेगम हुमांयू की माता थी। इसी माहम बेगम ने 1525 ईसवी में दो वर्ष की बालिका गुलबदन बेगम को इसकी माता दिलदार बेगम से गोद ले लिया था और उसका लालन पालन किया। 

छह वर्ष की गुलबदन भारत आई

1526 में पानीपत और 1527 में खानवा के युद्धों को जीतकर भारत में बाबर ने अपनी सत्ता की जड़ें जमाईं। उस समय तक उसकी तमाम बेगमें उसके हरम के साथ काबुल में ही थीं। 1529 ईसवी के जून महीने में बाबर की मुख्य बेगम माहम बेगम भारत पहुंची। गुलबदन बेगम भी माहम बेगम के साथ भारत आई। इस समय गुलबदन बेगम की आयु मात्र छह वर्ष की थी।

गुलबदन का विवाह और निजी जीवन

गुलबदन बेगम का विवाह ख़िज्रख्वाजा खां के साथ 17 वर्ष की उम्र में हुआ। गुलबदन बेगम के एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम सआदतयार खां था। इनका नाती मुहम्मदयार खां था जिसे किसी कारणवश अकबर ने दरबार से निकाल दिया था, इस वक्त बेगम की उम्र 70 वर्ष की थी। बेगम का पति अकबर के शासनकाल में पांच हजारी मनसबदार था। यह ज्यादातर अकबर की माता हमीदा बानू बेगम के साथ रहती थीं। अकबर के शासनकाल की प्रमुख घटनाओं में हमीदाबानू बेगम के साथ इनकी उपस्थिति मिलती है। इन्होंने अपने दिवंगत भाई हुमायूं की जीवनी हुमायूंनामा की रचना अकबर के शासनकाल में ही की। अपनी वृद्धावस्था में यह हज करने के लिए गईं। फरवरी 1603 ईसवी में अस्सी वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु ज्वर आने से हुई। इनके जनाजे को स्वयं अकबर ने उठाया था।

हुमायूंनामा का वर्णन

बेगम की पुस्तक हुमायूंनामा में युद्धों का वर्णन करने के स्थान पर महज उल्लेख किया गया है जबकि आयोजनों का वर्णन विस्तार से किया गया है। आयोजन में किसे क्या भेंट मिली यह सविस्तार लिखा गया है। बाबर और हुमांयू के पारिवारिक वातावरण का वर्णन इन्होंने प्रमुखता से किया है। हुमायूंनामा की कहानी बाबर से शुरू होती है। हालांकि बाबर को बेगम ने बहुत कम देखा था और जब बाबर मरा तब भी गुलबदन बेगम की उम्र बहुत कम थी। ऐसे में जब बाबर के मरने के करीब 50 वर्ष बाद जब वह इस हुमायूंनामा को लिख रही थी, जाहिर है तमाम सुनी सुनाई बातें ही दर्ज की होंगी आँखोदेखी नहीं। पर हुमांयू के समय वर्णन आंखों देखा है लेकिन वह कालखंड, जब हुमांयू शेरशाह के द्वारा पदच्युत कर दिया गया था और वह यहां वहां भटकता हुआ संघर्ष कर रहा था, गुलबदन बेगम काबुल में कामरान के संरक्षण में थी। ऐसे में उस दौर का वर्णन भी सुना हुआ ही लिखा गया होगा। फिर भी उस विदुषी महिला ने अपने भाई की जीवनी लिखी जो एक महत्त्वपूर्ण बात है।  

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