बरसाना के प्रमुख इतिहास पुरुषों में से एक
रूपराम कटारा बरसाना के प्रमुख इतिहास पुरुषों में से एक थे। रूपराम कटारा, श्रीलालजी टांटिया ठाकुर, लवानियां, नारायण स्वामी, जयसमंद ठाकुर जैसे कई नाम है जिनका जिक्र बरसाना के इतिहास में किया जाना चाहिए। ये वो लोग थे जो अपने दौर में बरसाना के गौरव थे और दूर दूर तक जाने जाते थे। बरसाना के इतिहास के अध्ययन के क्रम में आज चर्चा करते हैं रूपराम कटारा के बारे में। आज से 140 साल पहले ब्रिटिश कलेक्टर फ्रेडरिक सोलोमन ग्रॉउस ने अपनी कलम से रूपराम कटारा को बरसाना की अल्पकालिक तेजस्विता का संस्थापक बताया था।
कटारा, कटारिया या कोठारी
इनके नाम को लेकर इतिहासकारों की राय अलग अलग है। ग्रॉउस ने इनका नाम रूपराम कटारा लिखा है जबकि भरतपुर राजघराने का इतिहास लिखने वाले कुछ लेखकों ने इन्हें रूपराम कटारिया लिखा है। तुलनात्मक अध्ययन करने पर इस बात में कोई संदेह नहीं रहता कि ये दोनों नाम एक ही व्यक्ति के हैं। महाराज जवाहर सिंह के बारे में पुुुस्तक लिखने वाले मनोहर सिंह राणावत ने इन्हें कोठारी बताते हैं।
आरम्भिक जीवन और भाग्योदय
रूपराम एक अत्यंत बुद्धिमान, सुसंस्कृत और निष्ठावान ब्राह्मण थे। जिनका जन्म 1710 ईस्वी में बरसाना में हुआ था। ये चार भाई थे और इनका पारिवारिक पेशा पुरोहिताई का था। इनके सम्बन्ध भरतपुर, जयपुर, ग्वालियर, करौली तथा जोधपुर के राज परिवारों से थे। भरतपुर के राजा बदनसिंह एक बार तीर्थयात्रा के लिए बरसाना आये जहाँ उनकी मुलाकात रूपराम से हुई। मनुष्य के गुणों को परखने में माहिर बदन सिंह ने रूपराम की काबिलियत को भांप लिया और उन्हें अपना वित्तीय सलाहकार एवं पुरोहित बनाकर डीग ले गए। रूपराम ने बदन सिंह के बाद सूरजमल के समय पर भी उनका साथ दिया। वे सूरजमल के मित्र, पुरोहित और मार्गदर्शक की भूमिका में रहे।
जयपुर दरबार में भरतपुर के राजदूत थे इनके बड़े भाई
रूपराम कटारा के बड़े भाई हेमराज कटारा थे। हेमराज रूपराम से पहले भरतपुर राज्य की सेवा में पहुंचे। उन्हें दरबार में वकील का पद हासिल था। बाद में हेमराज कटारा जयपुर दरबार में भरतपुर राज्य के राजदूत की हैसियत से रहे। ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के विवाद के दौरान इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण थी।
रूपराम की भरतपुर राज्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका
सूरजमल के राज्य में रूपराम ने कई उल्लेखनीय कार्य किए। और राज्य के संकटों को दूर किया।
जवाहर के विद्रोह के समय
भरतपुर राज्य की स्थापना के शुरुआत से ही रूपराम कटारा की भूमिका दिखाई देती है। जवाहर सिंह द्वारा सूरजमल के विरुद्ध विद्रोह के समय पर महारानी किशोरी और रूपराम ने पिता-पुत्र के बीच ऐका कराने के बहुत प्रयास किये थे।
कुम्हेर के घेरे के समय
सूरजमल द्वारा दिल्ली लूटने के बाद मराठा सरदार खांडेराव ने सूरजमल से चौथ वसूलने के लिए कुम्हेर पर घेरा डाल दिया और दो करोड़ की मांग की थी। उस समय एक गोला फटने से खांडेेराव की मौत हो गई थी जिससे गुस्साए खांडेराव के पिता मल्हारराव ने जाटों के समूल नाश की कसम खाई थी। सूरजमल के लिए वह कठिन समय था और उसे दूसरे राजाओं से भी मदद नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में रूपराम के पुत्र तेजराम ने सूरजमल की रानी हंसिया का पत्र सिंधिया के पास पहुंचा कर उसकी मदद हासिल की। रूपराम ने अपने कौशल से मल्हारराव के साथ वार्ता की। इस वार्ता के दौरान रूपराम ने मल्हारराव को तीन वर्ष में चालीस लाख देने का वायदा किया। उस समय सूरजमल को कुल दो लाख देने पड़े और कुम्हेर से मराठों का घेरा हट गया। यह एक कूटनीतिक सफलता थी।
मराठों की छावनी से सूरजमल की वापसी के समय
पानीपत के तीसरे युद्ध में जाने से ठीक पहले दिल्ली पड़ाव के दौरान सूरजमल मराठों के व्यवहार से आहत थे। मराठा सरदार भाऊ ने उन पर पहरा बिठा दिया था। इसी समय रूपराम को पता चला कि सूरजमल के प्राण संकट में हैं। रूपराम ने उसी समय सूरजमल को वापस लौटने की सलाह दी।
रूपराम के निर्माण कार्य
रूपराम भरतपुर के साथ साथ सिंधिया और होल्कर राजघरानो के भी राजपुरोहित भी रहे। इन राजाओं ने उन्हें खूब दान दक्षिणा दीं जिससे वे बहुत धनी हो गए थे। उन्होंने इस धन का प्रयोग ब्रज के कई धार्मिक स्थलों की साज संवार में किया। बरसाना में कटारा हवेली, कांच महल, वृषभानु कुंड का जीर्णोद्धार के साथ साथ कई अन्य निर्माण कार्य रूपराम कटारा ने कराये। रूपनगर नाम का गांव और रूपकुंड उनके ही नाम पर हैं। सूरजमल की मृत्यु के बाद रूपराम ने जवाहर सिंह की और उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह की सेवा की। रूपराम की मृत्यु 1780 ईस्वी में हुई थी।