गोवर्धन में भरतपुर के राजाओं की छतरियां

राजा बलवंत सिंह की छतरी।

गोवर्धन और गिरिराज के प्रति भरतपुर के राजाओं की अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने बड़े मन से इस नगर को संवारा और तमाम निर्माण कराए। बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि गोवर्धन में भरतपुर के राजाओं का दाह संस्कार स्थल भी है। यह मानसी गंगा के तट पर स्थित है। यह स्थान गंगा बाग कहलाता है। सूरजमल और जवाहर सिंह के अग्नि संस्कार कुसुम सरोवर पर किये गए। बाद के अधिकांश राजाओं का दाह संस्कार गंगा बाग में ही किया गया। यहां इन राजाओं की स्मृति में सुंदर और विशाल छतरियां बनी हुई हैं।

मानसी गंगा के किनारे पर है गंगा बाग

गंगा बाग की छतरियों की सुंदर नक्काशी।


गंगा बाग मानसी गंगा के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यह करीब सवा चार एकड़ क्षेत्र में फैला है। इसकी देखरेख उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की आगरा इकाई द्वारा की जाती है। इस परिसर में राजा बलदेव सिंह और उनके पुत्र राजा बलवंत सिंह की छतरियां बनी हुई हैं। इस परिसर के बाहर मानसी गंगा और गंगा बाग के बीच में राजा रणधीर सिंह की छतरी बनी हुई है। यह छतरी करीब एक एकड़ क्षेत्र में स्थित है। गंगा बाग परिसर में एक विशाल कोठी भी बनी हुई है।कहते हैं कि इस कोठी का प्रयोग दाह संस्कार के बाद के अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता था।

राजा रणधीर सिंह की छतरी

राजा रणधीर सिंह की छतरी।


यह छतरी सबसे पहले बनी थी। यह मानसी गंगा के ठीक किनारे पर उत्तर दिशा में है। यह तीन मंजिल की है। प्रथम तल पर राजा की समाधि है। जिसके ऊपर छतरी बनाई गई है। राजा रणधीर सिंह राजा रणजीत सिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। रणधीर सिंह 1805 ईसवी में भरतपुर की गद्दी पर बैठे थे। उन्होंने 18 वर्ष तक शांतिपूर्वक राज्य किया था। उन्होंने पिंडारियों के दमन ने अंग्रेजों की सहायता की थी। राजा रणधीर सिंह निःसंतान थे इसलिए उनके बाद उनके भाई बलदेव सिंह भरतपुर के राजा बने।

राजा बलदेव सिंह की छतरी

राजा बलदेव सिंह की छतरी।


यह छतरी सबसे विशाल और भव्य है। यह राजा रणधीर सिंह की छतरी के ठीक सामने बनाई गई है। यह भी तीन मंजिला है। राजा रणधीर सिंह की छतरी और राजा राजा बलदेव सिंह की छतरी के बीच एक पक्का कुंड है। बलदेव सिंह 1823 ईसवी में भरतपुर के राजा बने थे। उन्हें राज्य के आंतरिक टकरावों का सामना करना पड़ा था। उनके भतीजे दुर्जनसाल और माधो सिंह ने उनके खिलाफ बगावत कर दी थी। राजा बलदेव सिंह को लगने लगा था कि ये लोग उनके बाद उनके पुत्र बलवंत सिंह को राजा नहीं बनने देंगे। इसलिए उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी सर डेविड अक्टरलोनी के सामने बालक बलवंत सिंह को उत्तराधिकारी स्वीकृत करा दिया था। इसके कुछ ही वर्ष बाद फरवरी 1825 में राजा बलदेव सिंह का स्वर्गवास हो गया। 

राजा बलवंत सिंह की छतरी

राजा बलवन्त सिंह की छतरी । (कुंड की तरफ से)



यह छतरी बलदेव सिंह और रणधीर सिंह की छतरियों के मध्य स्थित कुंड के पूर्वी तट पर बनी हुई है। गंगा बाग के वर्तमान प्रवेश द्वार से जाने पर यह सबसे पहले पड़ती है। यह भी तिमंजिला है। अपने पिता राजा बलदेव सिंह की मृत्यु के समय बलवंत सिंह महज 5 वर्ष के थे। उनके चचेरे भाई दुर्जनसाल और माधो सिंह ने राजा बलदेव सिंह के मरते ही राज्य पर कब्जा कर लिया था और युवराज बलवन्तसिंह और उसकी माता अमृतकौर को कैद कर लिया था। ब्रिटिश अधिकारी चार्ल्स मेटकॉफ ने बलवंत सिंह को उसका हक दिलाने के लिए भरतपुर पर हमला किया। यह हमला लार्ड केम्बलमियर के नेतृत्व में किया गया। अंग्रेजों ने भरतपुर को जीतकर फरवरी 1826 ईसवी में बलवंत सिंह को राजगद्दी पर बिठाया। राजा बलवंत सिंह ने मार्च1853 तक भरतपुर पर राज्य किया।

छतरियों का शिल्प और विशेषताएं

बलदेव सिंह की छतरी ।



तीनों ही छतरियां तीन मंजिला हैं। इन छतरियों में भूतल पर कक्ष बने हैं। प्रथम तल पर राजाओं की समाधि हैं। इन समाधियों के ऊपर छतरियों का मुख्य गुम्बद बनाया गया है। छतरियों के निर्माण में बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। इनमें विभिन्न प्रकार के मेहराबदार द्वार, मोर और तोता जैसे पक्षियों का अंकन, सुंदर नक्काशी युक्त जालियां तथा पत्र-पुष्प आदि का अलंकरण आकर्षण का केंद्र है। प्रथम तल और भूतल पर विभिन्न आकार के अनेक कक्षों का निर्माण इस दार्शनिक विश्वास से कराया गया कि मरणोपरांत भी राजा अपने अनुचरों के साथ महलनुमा इन छतरियों में निवास कर सकें। शायद यही वजह है कि इन छतरियों में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। इन छतरियों की आंतरिक भित्तियों में राजाओं के जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं को सुंदर चित्रों द्वारा दर्शाया गया है। 

बलदेव सिंह की छतरी की सुन्द्र नक्काशी ।


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