मथुरा की कहानी भाग चार



पूर्व कथा

पिछले भागों में हमने मथुरा के इतिहास की जानकारी के सन्दर्भ स्रोतों से शुरू करके यदुवंश की स्थापना से होते हुए श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण जीवनकाल को समझा। उसके बाद नागों का उत्थान और महाजनपद काल के सभी महाजनपदों के बारे में जाना। अब आगे…

मगध साम्राज्य के अंतर्गत शूरसेन

(ईसवी पूर्व 600 से ईसवी पूर्व 100 तक का कालखंड)

महात्मा बुद्ध के समय शूरसेन की स्थिति


यह महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म के उद्भव का काल था। महात्मा बुद्ध का जीवनकाल ईसवी पूर्व 623 से ईसवी पूर्व 543 तक रहा था। उस कालखंड की राजनीतिक स्थिति का परिचय तत्कालीन साहित्य से लगता है। 

अवंति के तत्कालीन शासक चंड प्रद्योत ने अपनी पुत्री का विवाह शूरसेन के राजा के साथ किया था। जिससे अवन्तिपुत्र का जन्म हुआ। उस दौर में अवन्ति एक विशाल और समृद्ध राज्य था। उस राज्य की राजकुमारी का विवाह शूरसेन के राजा से हुआ। इससे अनुमान किया जा सकता है कि उस समय भी शूरसेन जनपद की स्थिति महत्त्वपूर्ण रही होगी। 

बौद्ध साहित्य में मथुरा


अवन्तिपुत्र का नाम बौद्ध साहित्य में कई स्थानों पर मिलता है। मज्झिनिकाय आदि ग्रंथों से पता चलता है कि अवन्तिपुत्र पहले वैदिक धर्म का अनुयायी था पर बाद में वह बौद्ध हो गया। ललितविस्तर ग्रन्थ में शूरसेन के राजा सुबाहु का भी उल्लेख आया है। 

अंगुत्तर निकाय ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि बुद्ध शूरसेन जनपद में कई बार आये थे। शुरू में उन्हें यहां बड़ी कठिनाई का अनुभव हुआ। 

बुद्ध ने गिनाए मथुरा के दोष


बुद्ध ने मथुरा के कई दोष गिनाए हैं। यहां की भूमि में उन्हें कोई आकर्षण नहीं दिखा क्योंकि यहां धूल और रेत की अधिकता थी और भूमि ऊबड़खाबड़ थी। मथुरा में उन दिनों भीषण कुत्तों का जोर था और यक्ष लोग बाहर से आये लोगों को तंग करते थे। यहां भिक्षा मिलने में भी कठिनाई होती थी। लेकिन ऐसा भी नहीं था कि बुद्ध को मथुरा में बिल्कुल भी सम्मान न मिला हो। बौद्ध साहित्य में विमानवत्थु के अनुसार उत्तर मथुरा की एक स्त्री ने बुद्ध को भिक्षा दी थी। अंगुत्तर निकाय के अनुसार एक बार बुद्ध मथुरा के समीप एक पेड़ के नीचे बैठे थे, वहां बहुत से गृहस्थ नर-नारी आये और बुद्ध की पूजा की। बुद्ध के शिष्य महाकाश्यप की पत्नी भद्रा कपिलानी मथुरा की निवासिनी थी। 

एक श्रेष्ठ नगर के रूप में मथुरा


सिंहली बौद्ध साहित्य में मथुरा को एक अत्यंत श्रेष्ठ नगर कहा गया है और उसे एक विशाल राज्य की राजधानी बताया है।

बुद्ध के मथुरा आने से यहां के लोगों का बौद्ध धर्म की और थोड़ा बहुत झुकाव हुआ होगा। अवन्तिपुत्र के बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद यहां की कुछ जनता ने भी इसे स्वीकार किया होगा। मौर्यकाल में तो मथुरा में बौद्ध धर्म का एक अच्छा केंद्र बन गया था जो कई शताब्दियों तक विकसित होता रहा।

सिकन्दर का आक्रमण


अब कहानी थोड़ा सा आगे बढ़ती है ईसवी पूर्व 400 में मगध के शासक महापद्मनन्द नन्द ने कलिंग, चेदि, मिथिला, काशी, कुरु, पंचाल और शूरसेन आदि जनपदों को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। महापद्मनन्द के कई वंशजों ने मगध पर राज्य किया। घनानन्द के समय पर ईसवी पूर्व 327 में यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। पर सिकन्दर पंजाब से आगे नहीं बढ़ सका। पंजाब के पश्चिमी भाग तक सिकन्दर का राज्य हो गया।

मौर्यवंश का शासन

ईसवी पूर्व 325 से ईसवी पूर्व 185

मौर्यवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने प्रधानमंत्री चाणक्य की सहायता से की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ईसवी पूर्व 325 में मगध की गद्दी पर बैठा। चंद्रगुप्त ने यूनानियों द्वारा कब्जाए गए बहुत से भारतीय प्रदेशों को फिर से जीत लिया। चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर के प्रशासक सिल्यूकस को पराजित करके उससे काबुल, हिरात, कन्दहार और मकरान के प्रदेश छीन लिए। सिल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के साथ सन्धि की और अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया। सिल्यूकस ने मेगस्थनीज को अपना राजदूत बनाकर चंद्रगुप्त के दरबार में भी भेजा। उस समय की राजनीतिक और सामाजिक दशा का वर्णन मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में किया है। मेगस्थनीज ने मथुरा के बारे में भी लिखा है। 

चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार मगध का शासक हुआ और बिंदुसार के बाद उसका पुत्र अशोक मगध की गद्दी पर बैठा। 

अशोक द्वारा मथुरा में बहुत से कार्य कराए गए जिनका वर्णन मिलता है। 

अशोक के समय पर मथुरा


मथुरा में अशोक ने यमुना के तट पर विशाल स्तूपों का निर्माण कराया था। जब चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं शती ईसवी में मथुरा आया था तब उसने मथुरा में अशोक द्वारा बनवाये हुए तीन स्तूप देखे थे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मौर्यों के शासनकाल में मथुरा की बहुत उन्नति हुई। अशोक ने पाटिलपुत्र के लेकर पुरुषपुर (पेशावर) तक जाने वाली 1850 किमी लम्बी सड़क का निर्माण कराया था यह सड़क मथुरा से होकर गुजरती थी।

यूनानियों द्वारा शूरसेन प्रदेश का वर्णन


मेगस्थनीज ने शूरसेन प्रदेश की चर्चा की है। एरियन नामक एक यूनानी लेखक ने मेगस्थनीज को उद्भत करते हुए लिखा है कि शौरसेनाई लोग हेराक्लीज को बहुत आदर की दृष्टि से देखते थे। शौरसेनाई का अभिप्राय शूरसेन के निवासी और हेराक्लीज का अर्थ श्रीकृष्ण से है। शौरसेनाई लोगों के दो बड़े नगर हैं मेथोरा और क्लीसोबोरा। उनके राज में जोबेरस नदी बहती है जिसमें नावें चल सकती हैं। यहां मेथोरा का अभिप्राय मथुरा नगर से है और जोबेरस नदी का अर्थ यमुना नदी है। प्लिनी नामक एक दूसरे यूनानी लेखक ने लिखा है कि जोमेनस नदी मेथोरा और क्लीसोबोरा के बीच बहती है। यह क्लीसोबोरा नगर कौनसा है इसकी पहचान अभी तक तय नहीं हो पाई है। तमाम विद्वान इसे लेकर अलग-अलग राय रखते हैं। टॉलमी नामक एक यूनानी लेखक ने मथुरा का नाम मोदुरा दिया है और देवताओं का नगर कहा है।

मौर्य वंश का पतन


अशोक की मृत्यु ईसवी पूर्व 232 में हुई। अशोक के बाद एक-एक करके सात मौर्य शासकों ने मगध पर राज्य किया। मथुरा इनके आधिपत्य में ही रहा। मौर्य वंश का आखरी शासक बृहद्रथ था। इसके समय पर ईसवी पूर्व 190 में यूनानी शासक डेमेट्रियस ने भारत पर आक्रमण करके मौर्य साम्राज्य से उत्तर-पश्चिमी भाग छीन लिया।

(आगे किश्तों में जारी)

error: Content is protected !!