लोकदेवता जाहरवीर गोगाजी


लोकदेवता गोगाजी राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं में से एक हैं। ये पँचपीरों में भी शामिल हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही संप्रदायों के लोग समान आस्था से इनकी पूजा करते हैं। इन्हें सांपों के सबसे बड़े देवता भी माना जाता है। हिन्दू इन्हें जाहरवीर कह कर पूजते हैं वहीं मुस्लिम इन्हें जाहरपीर कह कर पूजते हैं।

गोगाजी का सामान्य परिचय


गोगाजी चौहान वंश के राजपूत थे। इनका जन्म 946 ईसवी में राजस्थान के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था। ददरेवा वर्तमान में चुरू जिले के अंतर्गत आता है। इनके पिता जेवर सिंह चौहान ददरेवा के जागीरदार थे। इनकी माता का नाम बाछलदे था। इनका विवाह केमलदे के साथ हुआ था। केमलदे कोलूमण्ड गांव की थीं। कोलूमण्ड गांव वर्तमान में जोधपुर जिले में आता है। इसी कोलूमण्ड गांव में लोकदेवता पाबूजी राठौड़ का जन्म हुआ था। इनके गुरु गोरखनाथ थे।

गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ जन्म


गोगाजी का जन्म गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। कहते हैं कि विवाह के बहुत समय बाद तक भी जेवर सिंह चौहान और बाछलदे के घर संतान का जन्म नहीं हुआ था। चौहान दम्पति ने गोरखनाथ की सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने बाछलदे को एक गूगल फल दिया। इस फल के सेवन से बाछलदे गर्भवती हुईं और गोगाजी का जन्म हुआ।

सर्पदंश के उपचारक के रूप में गोगाजी


गोगाजी विवाह होने के उपरांत जब अपनी पत्नी केमलदे के साथ गृहप्रवेश कर रहे थे। तभी किसी सांप ने आकर उनकी पत्नी केमलदे का डंस लिया। सर्पदंश से केमलदे अचेत हो गईं। इस पर गोगाजी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने यज्ञ करना शुरू किया। इस यज्ञ में गोगाजी की मंत्र शक्ति के बल से सभी सर्प आकर यज्ञ कुंड में भस्म होने लगे। कहते हैं तभी नागदेवता वहां प्रकट हुए और उन्होंने केमलदे को स्वस्थ कर दिया। नागदेवता ने गोगाजी को वरदान के रूप में सर्पदंश के उपचार की शक्ति भी प्रदान की। इससे गोगाजी सर्पदंश के उपचार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। आज भी इन्हें सर्पदंश के उपचारक देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि ददरेवा की मिट्टी लगाने से सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाते हैं।

गोगाजी की वीरगति


गोगाजी की वीरगति प्राप्त होने को लेकर दो अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता है कि इनकी मृत्यु महमूद गजनवी के साथ गायों की रक्षा के लिए युद्ध करते समय हुई थी। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार उनकी मृत्यु उनके चचेरे भाइयों अर्जुन और सुर्जन के साथ युद्ध करते समय हुई। हम यहां दोनों ही मान्यताओं का उल्लेख कर रहे हैं।

गजनवी के साथ युद्ध में वीरगति


गोगाजी चौहान की मृत्यु महमूद गजनवी के साथ युद्ध करते समय हुई थी। यह उल्लेख सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा लिखित वंश भास्कर में मिलता है। इस विवरण के अनुसार गोगाजी और उनके चचेरे भाइयों अर्जुन और सुर्जन के मध्य राज्य को लेकर विवाद था। इस विवाद के चलते एक बार अर्जुन और सुर्जन गोगाजी के राज्य की सारी गायों को हांक कर ले गए। उसी समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया था। गजनवी उस समय ददरेवा के पास ही था। अर्जुन और सुर्जन उन गायों को ले जाकर महमूद गजनवी के शिविर में छोड़ आये। गोगाजी इस कृत्य पर बहुत नाराज हुए। अपने राज्य की गायों की रक्षा के लिए गोगाजी ने महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया। कहते हैं गजनवी और गोगाजी के मध्य नौ बार युद्ध हुआ था। नवें युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध में गोगाजी के युद्ध कौशल को देखकर महमूद गजनवी भी आश्चर्यचकित हो गया था। उसने गोगाजी की वीरता से प्रभावित होकर उन्हें ‘जाहरपीर’ की संज्ञा दी थी। जाहरपीर का अर्थ है जीवित देवता। कवि मेह ने ‘गोगाजी का रसावाला’ में मुसलमानों के साथ युद्ध में गोगाजी की असाधारण वीरता का वर्णन किया है।

चचेरे भाइयों के साथ युद्ध में वीरगति


कुछ संदर्भ ऐसे भी हैं जो यह पुष्ट करते हैं कि गोगाजी की मृत्यु अपने चचेरे भाइयों अर्जुन और सुर्जन के साथ युद्ध के दौरान हुई थी। दयालदास री ख्यात, रणकपुर प्रशस्ति और गुजराती भाषा के ग्रन्थ श्रावक वृतादि अतिचार में गोगाजी की मृत्यु उनके चचेरे भाइयों के साथ युद्ध में होने का वर्णन मिलता है। 

शीर्षमेंडी और धुरमेंडी


कहते हैं कि गोगाजी की मृत्यु जिस युद्ध में हुई थी उसमें उन्होंने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया था। युद्ध में उनका सिर कट कर गिर गया उसके बाद में उनका धड़ निस्तेज नहीं हुआ। वे अपने हाथों से तलवार चलाते रहे। इस प्रकार वे सिर कट जाने के बाद भी शत्रुओं का संहार करते रहे। जिस स्थान पर उनका सिर गिरा था वह स्थान सिरमेंडी या शीर्षमेंडी कहलाता है। यह स्थान चुरू जिले के ददरेवा में हैं। वहीं जिस स्थान पर उनका धड़ गिरा था वह स्थान धुरमेंडी या धड़मेंडी कहलाता है। इसे गोगामेड़ी भी कहते हैं। यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है।

गांव-गांव खेजड़ी, गांव-गांव गोगो


गोगाजी के मन्दिर राजस्थान के लगभग हर गांव में हैं। राजस्थान में एक कहावत है ‘गांव-गांव खेजड़ी, गांव-गांव गोगो।’ अधिकांश स्थानों पर गांवों में खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी के थान बने हुए होते हैं। इन थानों पर सर्प की आकृति बनी हुई होती है। गोगाजी की मान्यता राजस्थान के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी है। 

गोगाजी के प्रमुख पूजा स्थल


गोगाजी का प्रमुख मन्दिर हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में गोगामेड़ी में इनका प्रमुख मन्दिर है। इस मंदिर में गोगाजी की समाधि भी है। इस मंदिर का निर्माण सर्वप्रथम तुगलक वंश के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने कराया था। यह एक मकबरेनुमा मन्दिर था। जिसके प्रवेशद्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा था। बाद में बीकानेर के राजा गंगासिंह ने इसे हिन्दू शैली में निर्मित कराया। इस मन्दिर में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी को एक विशाल मेला लगता है। यह गोगाजी का सबसे बड़ा मेला होता है। नवमी के अगले दिन दशमी को गोरखनाथ का मेला लगता है। यहीं पास ही में गोरख तालाब या गोरखना तालाब है। यहां गोरखनाथ ने बारह वर्ष तक तपस्या की थी। इसके अलावा ददरेवा में भी गोगाजी का मन्दिर है। जालौर जिले की सांचौर तहसील में किलोरियों की ढाणी में ‘गोगाजी की ओल्डी’ है। राजस्थान में झोंपड़ीनुमा मन्दिर को ओल्डी कहते हैं। 

गोगामेड़ी के हिन्दू-मुस्लिम पुजारी


गोगामेड़ी में गोगाजी का मन्दिर साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस मंदिर में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों के लोग समान आस्था रखते हैं। इस मंदिर में वर्ष में एक माह यानी भाद्रपद माह में हिन्दू पुजारी होते हैं। ये हिन्दू पुजारी गोगाजी के वंश के चौहान राजपूत होते हैं। वर्ष के शेष ग्यारह महीने तक यहां कायमखानी मुसलमान पुजारी होते हैं। इसकी वजह यह है कि गोगाजी के ग्यारहवीं पीढ़ी के वंशजों में एक कायम सिंह हुए थे। ये कायमसिंह किसी वजह से धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गए। मुसलमान बनने पर कायम सिंह का नाम कायम खां हो गया। इनके वंशज कायमखानी मुसलमान कहलाये। ये कायमखानी मुस्लिम फिरोजशाह तुगलक की सेना में भर्ती हो गए थे। इन्हीं के कहने पर फिरोजशाह तुगलक ने यहां पहला मन्दिर बनवाया था। आज भी वर्ष के ग्यारह महीने तक ये कायमखानी मुस्लिम गोगामेड़ी के मन्दिर के पुजारी होते हैं।

लोकदेवता के रूप में गोगाजी


गोगाजी ने गायों की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की थी। वे सर्पदंश के उपचारक के रूप में भी प्रसिद्ध थे। इसी वजह से वे लोकदेवताओं में गिने गए। आज भी पश्चिमी राजस्थान में खेत जोतते समय हल और हाली (हल जोतने वाला हलवाहा) को गोगाजी की राखी बांधी जाती है। यह राखी एक धागे की होती है जिसपर नौ गांठें लगी होती हैं। इस राखी को गोगारखिणी भी कहते हैं।

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