दो खामोश आंखें – 31

योगेन्द्र सिंह छोंकर
मंदिर हो
या कोई मजार
किसी नदी का पुल हो,
कटोरा किसी भिखारी  का
या शाहजहाँ की कब्र
एक ही भाव सिक्का फैंकती है
दो खामोश ऑंखें

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