कहानी
पायल कटियार
(पुत्र के मोह में उसकी गलतियों को नज़रंदाज करने वाले माता-पिता को अंत में पछतावे के सिवा कुछ हाथ न लगा।)
प्रवीन बाबू सरकारी मुलाजिम थे। बड़े अधिकारी थे। अच्छी खासी तनख्वाह के साथ अपने कामों को करवाने वालों की रिश्वत के नोटों का चट्टा हमेशा उनके पास लगा ही रहता था। अच्छा खासा परिवार था। उनकी शादी भी एक बड़े घराने में हुई थी। पत्नी उनसे भी ज्यादा पैसे वाले घर से थीं। प्रवीन बाबू की अपेक्षा पत्नी का नाक-नक्शा ज्यादा अच्छा न था लेकिन उन्हें विवाह में उनकी हैसियत से चारगुना मिला सो बेमेल विवाह भी कर लिया। जो भी हो फिलहाल उनका जीवन सुखद बीत रहा था। बस एक ही अभिलाषा शेष बची थी कि उनके कोई बेटा न था।
बेटे की चाह में चार बेटियां हो गईं। पाचवां बच्चा शायद इसलिए न किया होगा कि कहीं फिर से बेटी न हो जाए। खैर जो भी हो चारों बेटियां भी काफी सुंदर नाक नक्श में अपने पिता पर ही गईं थीं। बेटियां आज के समय भी बोझ होती हैं यह बात उन पर तो बिल्कुल भी सटीक न बैठती थी। लेकिन सोच के लिए किसे किसी ने रोका है। देखा जाए तो एक मजदूर पिता अपनी बेटियों को लिखा पढ़ाकर कलेक्टर बना लेता है और जिसकी सोच घटिया हो तो वह कलेक्टर भी हो तो भी अपनी बेटियों को सही से नहीं रख सकता है। सो वही हाल प्रवीन बाबू का था। प्रवीन साहब और उनकी पत्नी बेटियों को हमेशा बोझ ही समझते थे। यही वजह थी कि उनकी बड़ी बेटी की अपनी मां से बिल्कुल भी न पटती थी।
प्रवीन की पत्नी अपनी बड़ी बेटी को फूंटी आंख नहीं देख पाती थीं। हालांकि घर में किसी भी चीज की कमी न थी उसके बावजूद भी बेटियों के लिए कंजूसी ही बरती जाती थी। उनके खाने पहनने तक का हिसाब बहुत सोच समझकर खर्च किया जाता था। उनकी इस आदतों की वजह से बड़ी बेटी अक्सर अपनी मां से झगड़ा करते ही देखी जाती थी। मां हमेशा उसे गिनकर ही पैसे देतीं थीं। उनकी पत्नी को बेटे का इतना ज्यादा लोभ था कि उन्होंने अपनी चार बेटियों के होने के बावजूद भी एक बेटे को गोद लेने का विचार बना ही लिया। एक दिन उन्होंने अपनी बेटियों के सामने यह प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम तुम्हारे लिए एक भाई ले आएं? रक्षाबंधन पर एक भाई तो होना ही चाहिए आखिर राखी किसे बांधोगी तुम लोग? बेटियों को पता था कि पापा मम्मी ने पहले ही बेटे को गोद लेने का मन बना लिया है अब हमारी सहमति तो सिर्फ बहाना है। सो बेटियों ने भी कह दिया ले आओ अच्छा है।
प्रवीन पहले से ही किसी से बेटे को गोद लेने के लिए अपनी सैटिंग बैठा चुके थे। दो माह बाद ही प्रवीन और उसकी पत्नी एक बेटे को गोद लेकर आ गए। बेटे की परवरिश के चलते दंपत्ति का बेटियों के प्रति लगाव धीरे-धीरे और भी कम होता चला गया। घर के पहले से ही इतने ज्यादा काम थे ऊपर से बेटे की देखभाल में भी बेटियों को आयागिरी करनी पड़ती थी। नतीजा यह हुआ कि बेटियां और भी ज्यादा अपने परिवार से दूर होती चलीं गईं। कहते हैं कि जिसे घर में प्यार न मिले वह बाहर प्यार तलाशता है। अब प्रवीन बेटियां अक्सर घर से बाहर स्कूल कॉलेज में या फिर पड़ौस में दूसरों के साथ समय बिताने लगीं। प्रवीन की पत्नी को भी बेटियों से लगाव कम होता जा रहा था। हर वक्त बेटियों के साथ दुर्व्यवहार करतीं। मां की हरकतों की वजह से बेटियां भी मां से दूर होती चली गईं। खैर वक्त बहुत बलवान होता है।
बेटा दिन पर दिन लाड़ प्यार से बिगड़ता चला गया। बेटियों को छोटे से छोटे खर्च के लिए अपने ही माता-पिता के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता था वहीं बेटे की हर इच्छा पूरी कर दी जाती थी। प्रवीन और उसकी पत्नी को बेटियां बोझ लग रहीं थी इसलिए शायद उनकी परवरिश पर ध्यान ही न दिया। बेटियों को शिक्षा के नाम पर भी सिर्फ खाना पूर्ति कर दी गई। समय बीतता गया बच्चे बराबर के हो गए। प्रवीन बाबू ने बेटियों को बोझ समझते हुए उनकी एक के बाद एक करके चारों बेटियों की शादी कर दी। मां बाप की आदतों के कारण वह कम ही मायके आती थीं। इधर बेटे को इतना ज्यादा सिर पर बैठा लिया कि वह अक्सर मां को बराबर जबाव देता और पिता पर भी अकड़-अकड़ कर आने लगा। पुत्र प्रेम में धृतराष्ट्र बने माता-पिता को समझ ही न आ रहा कि हम इसे कहां ले जा रहे हैं। धीरे-धीरे बेटे की आदतें इतनी ज्यादा खराब हो गईं कि वह अपने ही घर में चोरी करने लगा।
कई बार पड़ौस से शिकायतें आने लगीं कि बच्चा बिगड़ रहा है, वजाए बच्चे को समझाने के प्रवीन की पत्नी ने पड़ौस के लोगों को ही अपना दुश्मन समझ लिया। हर बात में बेटे का पक्ष लेने के कारण अब लोग उनसे कटने लगे थे। दंपत्ति पहले बेटियों से अब समाज से भी दूर होते जा रहे थे। बेटे की आदतों ने दोनों दंपत्ति को आसपास के लोगों का बुरा बनवा दिया था। चोरी की कहानियां उसके रिश्तेदारों तक को पता लगने लगीं। अब प्रवीन के रिश्तेदार भी प्रवीन और उसकी पत्नी को उलाहना देने लगे। यहां ध्रतराष्ट बने दंपत्ति को यही लगता कि सब हमारे बेटे से जलते हैं। वहीं अब चारों बेटियों की शादी हो चुकी थी। सभी अपने-अपने परिवार में आराम से रह रहीं थीं।
इधर बेटे का बिगड़ना दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन अचानक उनके घर के दरवाजे पर घंटी बजी प्रवीन बाबू ने दरवाजा खोला तो पुलिस खड़ी थी। पुलिस वाले ने पूछा अंकित आपके ही बेटे का नाम है? जी हां प्रवीन बाबू ने कहा, क्यों क्या हुआ? उसे थाने ले जाना है। प्रवीन बाबू के चेहरे की हवाईयां उड़ गईं। क्यों क्या किया है उसने? प्रवीन ने पुलिसवालों से पूछा। यह आपको थाने आकर ही पता चलेगा। लेकिन अंकित तो घर पर है ही नहीं, प्रवीन बाबू ने अपने माथे से पसीना पोछते हुए कहा। क्यों कहां गया है पुलिस वाले ने पूछा। पता नहीं कुछ बताकर नहीं गया है प्रवीन बाबू ने घबराते हुए जबाव दिया। पुलिस वाला- कैसे बाप हो आप अपने बेटे की खबर तक नहीं रखते हो। खैर आ जाए तो उसे लेकर तुरंत पुलिस स्टेशन आ जाना नहीं तो क्या फायदा आपको दिक्कत हो जाए। कहते हुए पुलिस वाला वहां से जा चुका था। इधर अंदर से प्रवीन बाबू की पत्नी दोनों की बातें सुन रहीं थीं। पता नहीं क्या किया होगा इस लड़के ने पत्नी ने बुदबुदाया। प्रवीन ने पत्नी को फटकार लगाते हुए कहा यह सब तुम्हारे ही प्यार का नतीजा है उससे कभी कुछ कहती नहीं हो मैं डांटू तो भी तुम्हें परहेज है अब झेलो यह सब।
रात को एक बज चुका था पति-पत्नी दोनों ही चिंता की वजह से सो नहीं पाए थे। तभी घंटी बजती है प्रवीन बाबू ने पूछा कौन है? दरवाजे के बाहर से आवाज आई पापा गेट खोलो अंकित ने उत्तर देते हुए कहा। प्रवीन की पत्नी ने हड़बड़ाते हुए गेट खोल दिया। बेटा लड़खड़ाते हुए अंदर प्रवेश कर गया। उसने इतनी ज्यादा शराब पी रखी थी कि उसे शायद यह होश न था कि गेट पापा ने खोला या मम्मी ने, बस जल्दी से अंदर आया और अपने कमरे में घुस गया। अंकित के पीछे-पीछे प्रवीन बाबू आ गये। इतनी रात को कहां से आ रहा है पिता के जबाव पर अंकित बुरी तरह से बिगड़ पड़ा पापा आपको कितनी बार बोला है मुझसे रात को कोई बात मत किया करो। मुझे नींद आ रही है जाओ यहां से सुबह बात करना। अंकित का इस तरह से जबाव देना कोई पहली बार न था। इससे पहले भी कई बार वह इस तरह देर रात शराब पीकर आ चुका था और मां बाप उसकी आदतों के आदी। शुरूआत में जब रोकटोक की तो उसने अपनी मां बाप पर हाथ तक उठा दिया था। इसलिए अब उससे मुंह नहीं लगते थे दोनों।
पुलिस आई थी तुझे ढूढ़ने – प्रवीन बाबू ने अंकित की आंखों में झांकते हुए गुस्से से कहा। अंकित का मानों सारा नशा उचक चुका था। कब? क्या कहा आपने अंकित ने घबराते हुए पूछा। क्या कहता मुझे पता होता कि तू कहां है तो बता ही न देता। प्रवीन की बातें सुन अंकित को और गुस्सा आ गया, कैसे बाप हो अपने ही बेटे को पुलिस के हवाले करना चाहते हो? गुस्से में अंकित प्रवीन को धक्का देते हुए कहा। अंकित से आहत हुए पति और पत्नी चुपचाप अपने कमरे में आ चुके थे। दूसरे दिन होने से पहले ही अंकित अपने कपड़ों से भरा बैग लेकर जाने लगा, प्रवीन की पत्नी ने अंकित से पूछते हुए कहा कहां जा रहा है? मुझे कुछ दिनों के लिए बाहर जाना होगा यहां पर पुलिस नहीं छोड़ेगी अंकित ने अपनी मां की ओर देखते हुए कहा। मगर तूने करा क्या है यह तो बता अंकित का हाथ पकड़ते हुए प्रवीन की पत्नी ने पूछा। कुछ नहीं किया बस कहते हुए वह तेजी से निकल जाता है।
काफी दिनों तक अंकित और उसके माता-पिता का कोई संपर्क नहीं हो पाया। मां-बाप भी परेशान होकर अपनी बड़ी बेटी के घर पर चले जाते हैं। इधर एक दिन प्रवीन बाबू के पास एक मैसेज आता है जिसे देखकर वह चीख पड़ते हैं उनकी चीख सुनकर उनकी पत्नी तेजी से उनके पास आ जाती हैं। पत्नी-क्या हुआ? इतना तेज क्यों चीख रहे हो? बर्बाद कर दिया प्रवीन बाबू के हांथ पांव कांप रहे थे। पत्नी- किसने बर्बाद कर दिया? आखिर हुआ क्या कुछ बताओगे? प्रवीन बाबू-तुम्हारे लाड़ले ने बर्बाद कर दिया। अंकित ने सारा बैंक बैलेंस निल कर दिया है। क्या? प्रवीन की पत्नी को जैसे अटैक पड़ गया वह वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ीं। कुछ देर बाद जब उन्हें होश आया तो पता चला कि वह किसी अस्पताल में हैं। आसपास उनकी चारों बेटियों ने उन्हें घेर रखा है। आंख खुलने के बाद भी जैसे वह उन्हें आंख मिलाने के काबिल खुद को नहीं समझ पा रहीं थीं। आंखों में आंसू ही बहे जा रहे थे। खैर एक हफ्ते हॉस्पिटल में रहने के बाद जब वह घर लौटीं तो सबसे पहले उन्होंने अखबार में एक इश्तिहार निकलवाया कि मेरा मेरे बेटे अंकित से अब कोई लेना देना नहीं है। ताकि बचे हुए घर को वह अंकित के हाथों से बचा सकें। अपने घर पर वापस लौटे पति पत्नी को करीब पांच साल बीत चुके थे।
इधर अंकित किसी के मर्डर केस में जेल जा चुका था। अंकित के जेल जाने से दोनों सुकून से रह ही रहे थे कि एक दिन गेट की घंटी बजती है, इतनी रात को कौन हो सकता है? आपस में एक दूसरे का चेहरा देखकर बिना कुछ आवाज किये सवाल सा किया। प्रवीन बाबू ने दरवाजा खोला तो सामने अंकित खड़ा था। उसके हाथों में एक पिस्टल थी जिसे देख प्रवीन बाबू और उनकी पत्नी बुरी तरह से घबरा जाते हैं। प्रवीन बाबू- अब क्या बचा है? अब क्या लेने आया है? अंकित- पिता जी अभी तो आप बचे हैं आपकी पत्नी बची है आपकी पत्नी के गहने बचे हैं और यह मकान बचा है। पूस की सर्द रात में भी प्रवीन बाबू और उनकी पत्नी पूरे पसीने से तरबतर हो चुके थे। दोनों की हवाईयां उड़ चुकी थीं।
प्रवीन बाबू ने पूछा-तुम बाहर कैसे आए? तुम तो मर्डर केस में जेल में थे? अंकित- तुम दोनों क्या चाहते हो मैं जिंदगी भर जेल में ही रहूं?पति-पत्नी घबराते हुए- हमारे पास अब कोई जेवर नहीं है वह तो हमने चारों को (बेटियों को) दे दिया। अंकित- अच्छा तो चलो जो पहने हो वही दे दो कहते हुए उसने अपनी मां के गले में पड़ी चेन अंगूठी और हाथों के कंगन कानों में पड़े झुमके सब उतरवा लिए। प्रवीन बाबू अपनी चेन को छिपा ही रहे थे कि अंकित मुस्कराने लगा चलो दे दो अब मुझसे क्यों छिपा रहे हो पापा। मर गया तेरा पापा और मर गई तेरी मां तू मर चुका है हमारे लिए – प्रवीन की आवाज में क्रोध था। ठीक है मर जाओ पर यह सब तो दे दो कहते हुए उसने पिस्टल दिखाते हुए सारे जेवर उतरवा लिये। जाते-जाते उसने एक बार फिर से पलटकर प्रवीन बाबू और उनकी पत्नी की ओर मुड़ा, पास आते हुए बोला सुनो यह मकान भी अब तुम्हारा नहीं है कहते हुए वह वहां से तेजी से निकल गया।
प्रवीन बाबू ने घबराते हुए तुरंत पुलिस को सूचना दी। दूसरे दिन खबर आग की तरह सभी रिश्तेदारों में फैल गई। कुछ दिनों बाद ही एक वकील का मकान खाली करने के लिए नोटिस आता है पता चलता है कि यह मकान भी अंकित ने चार सौ बीसी करके किसी को बेच दिया है। दोनों सिर पर हाथ रखकर धम्म से वहीं पास रखे सोफे पर बैठ जाते हैं। सामने रखे एक फोटो फ्रेम पर नजर पड़ती है जिसमें वह और उनकी पत्नी सोफे पर अंकित को गोद में लेकर बैठे हैं और चारों बेटियां उनके सामने जमीन पर बैठी हैं। प्रवीन की पत्नी तस्वीर उठा लेती हैं, दोनों एक दूसरे का चेहरा देखते हैं और मकान खाली करने के लिए सामान पैक करना शुरू कर देते हैं।
(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]
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