सपना – एक महिला के अंतहीन संघर्ष की गाथा

कहानी

पायल कटियार

कभी कभी जिंदगी वह सब करने के लिए मजबूर कर देती है जिसे मनुष्य करना नहीं चाहता है। लेकिन कहते हैं मजबूरी एक बड़ी चीज है। कुछ ऐसा ही सपना के साथ भी हुआ था वह जो नहीं चाहती थी उसे वह सबकुछ करना पड़ा सिर्फ अपने बेटे की परवरिश के लिए। सपना एक अच्छे घर से थी। उसके ससुरालवालों का बहुत नाम था। उसके ससुर को लोग नेता जी के नाम से जानते थे। पिता के घर से भी वह संपन्न थी लेकिन यह सब अब एक सपना के लिए सपना ही तो था।

सबकुछ होकर भी वह आज दर-दर की ठोकरें खा रही थी। एक फैक्ट्री में जॉब करने के लिए मजबूर थी। ऐसी फैक्ट्री जहां पर सिर्फ अशिक्षित लोग ही काम करते थे। लोग एक दूसरे के साथ गंदी- गंदी मजाक करते थे। महिला को देखकर गंदी नजर रखते थे। सपना यह सब बर्दाश्त न कर सकी और उसने एक माह बाद ही फैक्ट्री से नौकरी छोड़ दी अब वह खाली समय में किसी मंदिर में भजन संध्या के लिए चली जाती तो कभी किसी की भजन मंडली में। कभी किसी के कपड़े सिल देती तो कभी किसी के आचार पापड़ बना देती। उसकी रोजी रोटी का कोई एक निश्चित काम तय न था।घर के कामों के अलावा मोहल्ले भर के कामों को निपटा देती थी। जिसे भी जरूरत होती वह उसे याद करता।

पति को मरे हुए पूरे पंद्रह साल से भी ज्यादा हो चुके थे। अपने पति को लेकर कभी वह रोती तो कभी उसकी यादों को लेकर जोर-जोर से हंसती थी। सपना से मेरी पहली मुलाकात महिला हेल्पलाइन के कार्यालय में हुई थी। सच कहूं तो पहली बार उससे मिलकर मुझे उसमें कोई ज्यादा दिलचस्पी न थी। साधारण सी दिखने वाली सपना साधारण तरीके से ही रहती थी। बात भी इस कदर करती थी कि जैसे कोई अनपढ़ हो। उसे देखकर पहली बार मुझे यही लगा कि सरकार ने कैसे-कैसे लोगों की भर्ती कर ली है? एम ए समाजशास्त्र से किये हुए सपना दूसरे का मनोविज्ञान अच्छे से समझती थी। यह बात उस वक्त मैं नहीं समझ सकी थी। उसे समझने का मौका मुझे जब मिला जब मैं भी महिलाओं की काउंसिलिंग करने के लिए उसके साथ जॉब करने लगी। धीरे-धीरे मेरी उससे दोस्ती गहरी होती चली गई। वह घर से बिखरी हुई महिलाओं की काउंसिलिंग बहुत अच्छे से करती थी।

जब हम सब काउंसलिंग करते हुए थक जाते थे तब सपना अकेले ही काउंसलिंग करती रहती थी और जब तक रिजल्ट अच्छा न बने तब तक वह उन लोगों से बात करती ही रहती थी। काउंसिलिंग करने वाले दंपत्ति के साथ उनके परिवार वालों के साथ ऐसे घुलमिल जाती थी मानों कि वह उनके घर की ही हो। उसे हर केस अच्छे से याद रहते थे। मुझे पुराने केस को देखने के लिए रजिस्टर देखना होता था लेकिन सपना को सालों पुराने केस भी पूरी तरह से याद रहते थे। यहां तक कि उनके नाम पते भी याद रहते थे। इसी बीच एक बार सपना ने बताया कि उसने लव मैरिज की थी। लव मैरिज के बाद उसके ससुरालवालों ने उसे कभी नहीं अपनाया जिस वजह से वह कभी भी अपने ससुराल नहीं गई। ससुरालवालों ने उसकी इस शादी को नहीं अपनाया जिस वजह से उसका पति काफी टेंशन में रहता था जिस वजह से पति ने शराब पीना शुरू कर दिया। शराब भी इतना ज्यादा कि उसने शराब पी-पीकर अपनी जान गंवा दी।

अब सपना के पास जीने का एकमात्र सहारा उसका बेटा ही था। सपना कभी-कभी पति को याद कर कहती बहुत प्यार करता था, उसके बारे में बताते-बताते वह रोने लगती थी तो कभी कहने लगती अच्छा हुआ मर गया साला, बहुत मारता था। उसने मेरी पूरी देह तोड़ डाली। हाथ पांव उगरियां सब टेड़ी कर दीं। उसे हमने पल में हंसते तो पल में रोते देखा था। सपना वाकई में औरों से हटकर ही थी शायद इसीलिए वह मेरी दोस्त थी। हम लोग जब भी खाली बैठे होते उससे भजन सुनाने की जिद करते थे। उसकी सुरली आवाज में मानों जादू था। भजन ऐसा गाती कि सुनने वाले भाव विभोर होकर सुधबुध गंवा बैठते थे। कभी-कभी उसके भजन सुनकर हम सब की आंखों से आंसुओं का झरना फूट पड़ता था। कहते हैं इस धरती पर कुछ लोग सिर्फ संघर्ष के लिए ही भेजे गए हैं। सपना की किस्मत भी शायद ऐसी ही थी। तीन साल की नौकरी के बाद ही सपना का सपना एक बार फिर से बिखर गया। यूपी सरकार ने 181 महिला हेल्प लाइन बंद करने का निर्णय लिया और पूरे उप्र की महिला कर्मचारियों के साथ ही सपना भी सड़क पर आ गई। अब वह एक फैक्ट्री में गई नौकरी करने के लिए लेकिन इस तरह का जब उसने वहां का माहौल देखा तो वह नौकरी छोड़कर घर बैठ गई।

आज नारी सशक्तिकरण की बात करने वाले लोगों से मैं पूछना चाहती हूं कि क्या सपना जैसी महिलाओं के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं है उनकी? क्या सरकार को इस बात का ध्यान नहीं रखना चाहिए था कि अगर हम इन सभी महिलाओं को बेरोजगार कर रहे हैं तो इनमें से कितनी सिंगल मदर होगीं वह कैसे अपने बच्चों का पेट भरेगीं? सरकार अपनी ही योजनाओं को बनाती है और खुद ही उन्हें बंद कर लाखो सपना का सपना चूर-चूर कर देती है। फिर कुछ सपना मजबूरी में अंधेरी गर्त में समां जाती हैं तो कुछ आत्महत्या कर अपनी जिंदगी को ही समाप्त कर देती हैं। यह कहानी सिर्फ एक सपना की ही नहीं हजारों ऐसी सपना की है जो 181 बंद होने के बाद भी आज भी अपनी रोजी रोटी की तलाश में सरकार की ओर इस आशा से तांक रहीं हैं कि कभी तो उस सरकार को हमारी याद आयेगी जो सीता की रसोई तो तैयार कर रही है लेकिन जीती जागती सीता के पेट भरने का उसने कोई इंतजाम नहीं किया है।

पायल कटियार

(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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